अवैध, अमान्य या शून्य करार दिए गए विवाह से जन्में बच्चों को भी अपने मृत माता-पिता की पैतृिक संपति में अब अधिकार मिलेंगा। सुप्रीम कोर्ट के शुक्रवार को दिए गए एक फैसले के बाद अब यह संभव है। कोर्ट ने अपने फैसले में शुक्रवार को कहा है कि इस तरह की संतान को कानून अवैध नहीं मानता है।
कोर्ट ने कहा है कि ऐसे विवाह से जन्मी संतानों को उस संपति से वंचित नहीं किया जा सकता है जो संयुक्त हिंदू परिवार में उसके पिता या उसकी माता के हिस्से से आयी है। कोर्ट ने इससे जुड़े केस में सुनाए अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि ऐसे बच्चे मिताक्षरा कानून द्वारा शासित संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति में ही अपने माता-पिता का हिस्सा प्राप्त कर सकते हैं।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की खंडपीठ रेवनासिद्दप्पा बनाम मल्लिकार्जुन (2011) मामले में दो-जजों की खंडपीठ के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस मामले पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने यह भी स्पष्ट किया है कि ऐसा बच्चा परिवार में किसी अन्य व्यक्ति की संपत्ति में या उसके अधिकार का हकदार नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इसलिए भी काफी अहम माना जाता है कि हिंदू अविभाजित परिवारों को नियंत्रित करने वाला उत्तराधिकार का मिताक्षरा कानून पश्चिम बंगाल और असम को छोड़कर पूरे भारत में लागू होता है।
ये बच्चे हिस्सेदारी में अपने हिस्से के हकदार होंगे
द हिंदू अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक सीजेआई ने कहा कि शून्य या अमान्य विवाह से पैदा बच्चे की विरासत के लिए पहला कदम पैतृक संपत्ति में उसके माता-पिता की सटीक हिस्सेदारी का पता लगाना होगा। यह पैतृक संपत्ति का "काल्पनिक विभाजन" करके और यह गणना करके किया जा सकता है कि माता-पिता को उनकी मृत्यु से ठीक पहले कितनी संपत्ति मिली होगी। उन्होंने कहा कि एक बार जब इस तरह के काल्पनिक विभाजन के माध्यम से संपत्ति में मृत माता-पिता की हिस्सेदारी सुनिश्चित हो जाती है, तो उसके उत्तराधिकारी, जिसमें शून्य या अमान्य विवाह के माध्यम से उसके बच्चे भी शामिल हैं, हिस्सेदारी में अपने हिस्से के हकदार होंगे।
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इसे नाजायज नहीं माना जा सकता है
द हिंदू अखबार की एक रिपोर्ट के मुताबिक फैसले को समझाते हुए सीजेआई ने मामले में उपस्थित वकीलों से कहा कि आपको पहले सहदायिक संपत्ति में माता-पिता के हित का पता लगाना होगा, और इसमें जिन बच्चों को वैधता दी गई है, उनके हिस्से होंगे। उन्होंने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16 वैधानिक रूप से शून्य या अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को वैधता प्रदान करती है। धारा 16(3) में कहा गया है कि ऐसे विवाह से होने वाले बच्चों को अपने माता-पिता की संपत्ति पर अधिकार होगा।कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम में ऐसे बच्चों को वैधता प्रदान करने का इरादा हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में भी प्रतिबिंबित होना चाहिए, जो विरासत को नियंत्रित करता है। शून्य या अमान्य विवाह से हुए बच्चे वैध रिश्तेदारी के दायरे में आते हैं और जब विरासत की बात आती है तो हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत इसे नाजायज नहीं माना जा सकता है।
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बिना वसीयत के भी मिल सकता है उत्तराधिकार में हिस्सा
द हिंदू की रिपोर्ट कहती है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस सुनवाई में यह भी कहा कि हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के लागू होने के बाद, मिताक्षरा कानून द्वारा शासित संयुक्त हिंदू परिवार में मृत व्यक्ति का हिस्सा उसके उत्तराधिकारियों को वसीयत या बिना वसीयत उत्तराधिकार के हस्तांतरित किया जा सकता है। संशोधन से पहले, हस्तांतरण केवल उत्तरजीविता के माध्यम से होता था। इसके अलावा, संशोधन ने महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों को भी उत्तराधिकार का समान अधिकार दिया।तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष मामला हिंदू विवाह अधिनियम, धारा 16(3) में संशोधित प्रावधान पर केंद्रित था। 2011 में शीर्ष अदालत की एक डिवीजन बेंच द्वारा पिछले उदाहरणों का पालन करने से इंकार करने और नाजायज विवाह से पैदा हुए बच्चों के मुद्दे की वकालत करने के बाद मामले को एक बड़ी बेंच को भेजा गया था।
इससे पहले वर्ष 2011 में रेवनासिडप्पा बनाम मल्लिकार्जुन मामले में सुनवाई करते हुए तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ऐसे रिश्ते में बच्चे के जन्म को माता-पिता के रिश्ते से स्वतंत्र रूप से देखा जाना चाहिए। ऐसे रिश्ते में पैदा हुआ बच्चा निर्दोष होता है और वह उन सभी अधिकारों का हकदार होता है जो वैध विवाह से पैदा हुए अन्य बच्चों को मिलते हैं। यह धारा 16(3) में संशोधन का सार है। उस समय डिवीजन बेंच ने माना था कि ऐसे बच्चों को अपने माता-पिता की किसी भी संपत्ति पर अधिकार होगा, चाहे वे स्व-अर्जित हों या पैतृक हों। बेंच ने हालांकि स्पष्ट किया था कि बच्चों के दावे उनके माता-पिता की संपत्ति तक ही सीमित होंगे और किसी अन्य संबंध तक नहीं।
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