दिल्ली राज्य पर मनमाने अंकुश के लिए लाए गए मोदी सरकार के अध्यादेश को लोकसभा में तो आसानी से पास करा लिया जाएगा लेकिन अगर विपक्ष एकजुट रहा तो राज्यसभा में इस अध्यादेश को रोका जा सकता है। हालांकि इसमें बहुत कुछ आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविन्द केजरीवाल के तमाम पार्टियों से रिश्ते पर निर्भर करेगा। इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका आंध्र प्रदेश के सीएम जगनमोहन रेड्डी और ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक की होगी, जो फिलहाल मोदी सरकार को लेकर तटस्थ बने हुए हैं।
राज्यसभा में किस दल की क्या स्थिति है और क्या वाकई विपक्ष इस अध्यादेश को रोक सकता है, उस पर बात करने से पहले यह बताना जरूरी है कि पूरा मुद्दा क्या है। मुद्दा समझाने के बाद राज्यसभा वाली बात पर लौटेंगे।
दिल्ली राज्य की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की थी कि यह स्पष्ट किया जाए कि उसके पास कुछ शक्तियां हैं या नहीं। क्या वो अधिकारियों का तबादला कर सकती है, क्या वो कानून बना सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को बहुत स्पष्ट शब्दों में कहा कि दिल्ली राज्य सरकार के पास पुलिस, कानून व्यवस्था और जमीन को लेकर कोई पावर नहीं है और न ही वो इन तीनों के संबंध में कोई कानून बना सकती है। लेकिन उसे अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग और अन्य कानून ूबनाने का अधिकार है, क्योंकि वहां भी एक विधानसभा है और उसके विधायक भी जनता चुनकर भेजती है।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का चंद दिन इंतजार करने के बाद 19 मई की रात एक अध्यादेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि दिल्ली राज्य के लिए राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण गठित किया गया है, जिसके पास दिल्ली में ग्रुप ए के सभी अधिकारियों और दानिक्स के अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग की सिफारिश करने की पावर होगी। राष्ट्रीय राजधानी सिविल सेवा प्राधिकरण के अध्यक्ष दिल्ली के मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव और प्रमुख गृह सचिव सदस्य होंगे।प्राधिकरण द्वारा तय किए जाने वाले सभी मामले उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत से तय होंगे। मतभेद की स्थिति में उपराज्यपाल का निर्णय अंतिम होगा। इस अध्यादेश ने एक बार फिर अरविन्द केजरीवाल सरकार के हाथ-पैर बांध दिए। मुख्यमंत्री केजरीवाल ने 20 मई को बयान दिया कि इस अध्यादेश को वो विपक्षी दलों की मदद से राज्यसभा में रोक देंगे। वो कांग्रेस समेत सभी दलों के नेताओं से मिलेंगे। केंद्र के अध्यादेश का कांग्रेस, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी ने फौरन विरोध किया।
राज्यसभा की स्थितिः राज्यसभा की मौजूदा 245 सांसदों में जम्मू कश्मीर से 4, बंगाल से 1 और 2 मनोनीत सदस्यों की सीट खाली है। राज्यसभा में अगर सदस्य संख्या की बात करें तो बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के पास 110 सदस्य हैं और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के पास 129 सदस्य हैं। लेकिन यूपीए में तमाम दल ऐसे हैं जो तटस्थ हैं। उनमें से कुछ के स्टैंड का कोई भरोसा नहीं है। वो कब बीजेपी के खेमे में चले जाएं कोई भरोसा नहीं। एनडीए के 110 सदस्यों में बीजेपी के अपने 93 सदस्य हैं। इसके अलावा तमिलनाडु की एआईडीएमके पार्टी के 4 सांसद हैं जो उसके साथ हैं। लेकिन बाकी दल जो उसके साथ हैं उनके एक-एक सांसद ही राज्यसभा में हैं।
जहां तक यूपीए की बात है तो उसमें अकेले कांग्रेस के 31 सांसद हैं। दूसरे नंबर पर टीएमसी है जिसके 12 सांसद हैं। उसके बाद आप और डीएमके के 10-10 सांसद हैं। नवीन पटनायक की बीजेडी के 9 और जगमोहन रेड्डी की वाईएसआरसीपी के 9 हैं। ये दोनों ही दल इस समय तटस्थ हैं और किसी भी तरफ जा सकते हैं। इसमें से बीजेडी के नवीन पटनायक ने हाल ही में नीतीश कुमार से साफ कर दिया था वो किसी भी विपक्षी मोर्चे में शामिल नहीं होंगे। यही हाल आंध्र प्रदेश के सीएम जगमोहन रेड्डी का भी है। लेकिन बीआरएस के 7, आरजेडी के 6, सीपीएम-जेडीयू के 5-5, एनसीपी के 4, उद्धव ठाकरे (शिवसेना यूबीटी) और सपा के 3-3 सांसद हैं। सीपीआई और झारखंड मुक्ति मोर्चा के 2-2 सांसद हैं। करीब 10 सांसद ऐसे हैं जो गिनती में एक-एक हैं लेकिन उनकी पार्टी है या वो निर्दलीय हैं लेकिन उनका वोट घूम फिर कर विपक्ष को ही मिलेगा। लेकिन इसके लिए केजरीवा को लॉबिंग करना पड़ेगी। लेकिन ये इतना मुश्किल है।
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