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"नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 पर पॉजिटिव नैरेटिन" शीर्षक और सवाल-जवाब की स्टाइल जारी की गई प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया था कि भारत के मुस्लिम नागरिकों की नागरिकता सीएए से प्रभावित नहीं होगी। इसे पीआईबी की वेबसाइट पर मंगलवार (12 मार्च) शाम 6:43 बजे पोस्ट किया गया था। लेकिन यह अब वहां से गायब है। इसका कंटेंट पीआईबी के एक्स (ट्विटर) पेज पर भी पोस्ट किया गया था, लेकिन वहां से भी हटा दिया गया है।
हालांकि सरकार ने पॉजिटिव नोट को वापस ले लिया है लेकिन सीएए को लेकर जो असली विवाद है, उसका एनआरसी और एनपीआर से संबंध होना। क्योंकि मुस्लिमों की चिंता का असली विषय यही है कि जब सीएए को एनआरसी से जोड़ दिया जाएगा तो उस स्थिति में उनकी नागरिकता का क्या होगा। हालांकि सरकार पहले कहती रही है कि नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत नागरिकता नियम 2003 के अनुसार, देशव्यापी एनआरसी को संकलित करने की "फिलहाल" कोई योजना नहीं है। जनगणना के बाद ही राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) आ सकता है। इस नियम में न तो संशोधन किया गया है और न ही इसे हटाया गया है और देश भर में एनआरसी लाने के लिए किसी नए कानून की आवश्यकता नहीं है।
मुसलमानों की चिन्ता क्या हैः सीएए को जब एनआरएसी से जोड़ा जाएगा, उस समय मुस्लिमों पर संकट आएगा। सरकार के आश्वासन के बाद भी यह संदेह दूर नहीं हो रहा है। मंगलवार को जिस तरह सरकार मुसलमानों के बारे में पॉजिटिव नोट लाई और फिर वापस ले लिया, उससे संदेह बढ़ गया। नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत नागरिकता नियम 2003 के अनुसार, राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर), जिसे जनगणना के पहले चरण के साथ जोड़ा जाना है। एनआरसी संकलन की दिशा में पहला कदम है। इस नियम में न तो संशोधन किया गया है और न ही इसे हटाया गया है। उसके होने के बाद देश भर में एनपीआर लाने के लिए किसी नए कानून की जरूरत नहीं पड़ेगी। असम एकमात्र राज्य है जहां एनआरसी सर्वे हुआ था और ड्राफ्ट रजिस्टर में 3.29 करोड़ आवेदकों में से 19 लाख को शामिल नहीं किया गया था।
देशभर में एनआरसी के बाद गैर-मुसलमानों के बचाव में सीएए तो होगा लेकिन उस दायरे यानी उन शर्तों को नहीं पूरा करने वाले मुसलमानों को अपनी नागरिकता साबित करनी होगी। उस समय सीएए कानून उनकी मदद नहीं कर पाएगा। क्योंकि नया सीएए कानून सिर्फ गैर मुस्लिमों को ही संरक्षण देता है।
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