इसके बावजूद मोदी सरकार युवाओं को लाभप्रद रोजगार देने का कोई भी ठोस कार्यक्रम प्रस्तुत नहीं कर पाई। अप्रेंटिसशिप और कौशल विकास का माॅडल भी मोदी सरकार ने जून 2024 में बीजेपी के लोकसभा सदस्यों की संख्या 240 पर सिमट जाने और एनडीए की कृपा से सत्ता मिलने के बाद कांग्रेस के घोषणापत्र से चुराया है। इसके तहत एक करोड़ युवाओं को पांच साल में 500 प्रमुख कंपनियों में इंटर्नशिप देंगी। इसका लाभ पिछले छह महीने में कितने युवाओं को मिला इसका लेखाजोखा तो वित्तमंत्री को बजट में अब देना ही है। हालांकि इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी पकोड़े तलने को भी लाभप्रद रोजगार बता रहे थे।
जून 2024 में देश में बेरोजगारी दर सीएमआईई द्वारा 9.2 फीसद दर्ज करने के बावजूद आम चुनाव के प्रचार में प्रधानमंत्री मोदी सहित बीजेपी बेरोजगारी की समस्या को सिरे से नकारती रही। चुनाव में मुंह की खाने के बाद रोजगार बढ़ाने के लिए सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्योगों को रियायती दर पर प्राथमिकता से कर्ज देने का एलान बजट में किया गया। हालांकि नोटबंदी एवं अंधाधुंध जीएसटी से तबाह इस असंगठित मगर रोजगार उत्पादक क्षेत्र में ही देश की 94 फीसद आबादी अधिकतर रोजगार पाती है।
इसके बावजूद पिछले बजट में निर्गत 11.11 लाख करोड़ का समूचा सरकारी पूंजीगत खर्च संगठित क्षेत्र के लिए ही उपादेय था। ये सारी पूंजी बजट में सूचना प्रौद्योगिकी, उर्जा,रेलवे आदि संगठित क्षेत्र के लिए ही रही है। इससे साफ है कि मोदी सरकार अब भी असंगठित क्षेत्र को जिलाने के ठोस उपायों से कतरा रही है जबकि उसे 80 करोड़ लोगों को मासिक पांच किलाग्राम अनाज प्रति व्यक्ति देना पड़ रहा है। इसके बावजूद विडंबना ये कि हम दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने और जल्द ही तीसरे नंबर की वैश्विक अर्थव्यवस्था बनने का दावा करते नहीं अघाते।
असंगठित क्षेत्र की दुर्दशा और उसकी सरकारी दुर्दशा की तस्दीक ताजा सरकारी आंकड़ों से भी हो रही है। राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय के अनुसार साल 2023-24 में असंगठित क्षेत्र में नौकरियां मिलने की दर उससे पिछले 14 साल में न्यूनतम रही है। इसके लिए विशेषज्ञों के कारण नोटबंदी, असंगत जीएसटी और कोविड महामारी की आहट से घबरा कर मोदी सरकार द्वारा किए गए लाॅकडाउन जिम्मेदार हैं।
साख्यिकीय सर्वेक्षण के अनुसार 2023-24 में जहां असंगठित क्षेत्र में करीब 3.37 करोड़ लोग रोजगाररत थे वहीं 2011-12 में इससे 3.49 करोड़ लोग रोजगार पा रहे थे। इससे साफ है कि मोदी सरकार के कार्यकाल में रोजगार बढ़ने तमाम दावे खोखले हैं। क्योंकि करीब डेढ़ दशक में रोजगार बढ़ने के बजाए 12 लाख रोजगार घटे हैं। इससे साफ है कि आगामी बजट में रोजगार के नए मौके बड़े पैमाने पर पैदा करने की मोदी सरकार के सामने कितनी विकट चुनौती है।
प्रधानमंत्री मोदी ने बजट सत्र के मौके पर अर्थव्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की मंशा जताई है मगर अर्थव्यवस्था का आकार बढ़े बिना ये कैसे संभव होगा। अर्थव्यवस्था में निजी पूंजी निवेश की रफ्तार बढ़े बिना रोजगार के मौके कैसे बढ़ेंगे? उसके बिना न तो महिलाओं की आमदनी बढ़ेगी और न ही समाज में उन्हें बराबरी का दर्जा मिल पाएगा।
दो साल की इसी अवधि में व्यापारिक बैंकों ने काॅरपोरेट द्वारा लिए कर्ज के 3,79,144 करोड़ रूप्ए बट्टे खाते में डाले हैं। अर्थात जनता की जमा पूंजी से चलने बैंकों ने विभिन्न कंपनियों को पौने चार लाख करोड़ रुपये से अधिक कर्ज की माफी दे दी। दूसरी तरफ अपनी जायज मांगों के लिए ठिठुराती सर्दी और खाल बींधती गर्मी झेलते आंदोलनरत किसानों की जायज मांगों पर भी बैंक अथवा सरकार सुनवाई नहीं कर रहे।
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