समान नागरिक संहिता या यूसीसी के विरोध में अब तेलंगाना के मुख्यमंत्री और भारत राष्ट्र समिति प्रमुख के चंद्रशेखर राव भी आ चुके हैं। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का एक प्रतिनिधिमंडल सोमवार को ही के चंद्रशेखर राव (केसीआर) से इस सिलसिले में मिला था। मुलाकात में उनसे प्रतिनिधिमंडल ने समान नागरिक संहिता के विरोध में समर्थन मांगा है। इसमें बोर्ड के प्रेसीडेंट खालिद सैफुल्लाह रहमानी, एआईएमआईएम के प्रमुख असद्दुदीन औवेसी समेत कई अन्य मौजूद थे। इस मुलाकात में के चंद्रशेखर राव ने बताया कि उन्होंने अपने सांसदों को निर्देश दिया है कि संसद में यूसीसी का विरोध करने के लिए रणनीति बनाएं।
के चंद्रशेखर राव ने कहा, भाजपा विकास को नजरअंदाज करके राजनीतिक लाभ के लिए समान नागरिक संहिता के नाम पर लोगों को बांटने की साजिश रच रही है। इससे देश की धर्मनिरपेक्षता को खतरा है। यह देश की बड़ी आबादी जो विभिन्न परंपराओं, रीति-रिवाजों और संस्कृति को मानती है उसकी पहचान के लिए झटका है। यह आदिवासियों में भ्रम बढ़ाएगा। उन्होंने कहा कि हम भारत की एकता-अखंडता को नष्ट करने वाले कानूनों का विरोध करेंगे।
बीआरएस संसद के मानसून सत्र में प्रस्तावित होने पर समान नागरिक संहिता बिल का कड़ा विरोध करेगी। इस मुद्दे पर वह समान विचारधारा वाले राजनीतिक दलों को समर्थन भी देगी। बीआरएस संसदीय दल के नेताओं केशव राव और नामा नागेश्वर राव को संसद के दोनों सदनों में अपना पक्ष रखने की रणनीति पर काम करने का निर्देश दिया गया है।
बोर्ड ने कहा यूसीसी होगी थोपी गई एकरूपता
यूसीसी के विरोध में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव को लिखे पत्र में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि अगर यूसीसी लागू होता है तो यह थोपी गई एकरूपता होगी। जो कि हमारे संविधान को नष्ट कर देगी। इसके लागू होने से संविधान की जगह धर्मतंत्र स्थापित होगा। बोर्ड ने कहा कि एकरूपता या समानता की आड़ में विभिन्न संस्कृतियों की विविधता को परेशान नहीं किया जा सकता है।
बीजेपी की सहयोगी एआईएडीएमके भी विरोध में
तमिलनाडु के पूर्व सीएम पलानीस्वामी ने पिछले दिनों कहा है कि हमारा घोषणापत्र पढ़ें, हमने अपने घोषणापत्र में 'धर्मनिरपेक्षता' विषय के तहत 2019 में कहा था, कि 'अन्नाद्रमुक भारत सरकार से समान नागरिक संहिता के लिए संविधान में कोई संशोधन नहीं करने का आग्रह करेगी। पार्टी का मानना है कि यूसीसी भारत में अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।
मेघालय के सीएम भी कर रहे हैं विरोध
समान नागरिक संहिता या यूसीसी पर भाजपा को अपने पूर्वोत्तर भारत के सहयोगी दलों का भी विरोध झेलना पड़ रहा है। पिछले दिनों पूर्वोत्तर में भाजपा के सहयोगी दल नेशनल पीपुल्स पार्टी के चीफ और मेघालय के सीएम कॉनराड संगमा ने कहा था कि समान नागरिक संहिता भारत के वास्तविक विचार के खिलाफ है। यह देश के लिए सही नहीं है। भारत एक विविधतापूर्ण देश है, विविधता ही हमारी ताकत है। उन्होंने कहा था कि मेघायल में हम जिस संस्कृति का लंबे समय से अनुसरण कर रहे हैं, उसे बदला नहीं जा सकता। हम मानते हैं कि पूरे पूर्वोत्तर में अनूठी संस्कृति है। हम यही चाहेंगे कि हमारी परंपराओं और संस्कृति का न छुआ जाए।
नागालैंड में एनडीपीपी कर रही विरोध
प्रस्तावित यूसीसी को लेकर नगालैंड से भी विरोध के स्वर आ रहे हैं। भाजपा की सहयोगी नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) ने यूसीसी के कार्यान्वयन का विरोध किया है। एनडीपीपी ने एक बयान में कहा है कि यह कानून भारत के अल्पसंख्यक समुदायों और आदिवासी लोगों की स्वतंत्रता और अधिकारों पर नकारात्मक प्रभाव डालेगा। पार्टी की ओर से कहा गया है कि जब शांति समझौते के लिए एनएससीएन (आईएम) और एनएनपीजी के साथ हो रही वार्ता महत्वपूर्ण मोड़ पर है, तो ऐसे में यूसीसी जैसा कानून बनाना नासमझी होगी। उसने कहा है कि इसे लागू करने से बुरे नतीजों का सामने आना तय हैं। इससे लोगों के व्यक्तिगत कानूनों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा और अनिश्चितता पैदा होगी।
पंजाब में पक्ष और विपक्ष दोनों विरोध में
पंजाब में यूसीसी का विरोध सत्ताधारी दल आम आदमी पार्टी के मुख्यमंत्री भगवंत मान कर चुके हैं। उन्होंने यूसीसी को गैर जरूरी बताया है। सीएम मान ने पिछले दिनों कहा कि "हमारा देश फूलों के गुलदस्ते की तरह है। क्या आप एक ही रंग के फूलों वाला गुलदस्ता पसंद करेंगे"। उन्होंने कहा था कि भाजपा को इसके कार्यान्वयन पर कोई भी निर्णय लेने से पहले सभी हितधारकों से बात करनी चाहिए। उन्होंने कहा था कि यूसीसी पर आम सहमति बनानी चाहिए। आम आदमी पार्टी किसी भी समुदाय के रीति-रिवाजों से छेड़छाड़ करने के पक्ष में नहीं है। पंजाब में भाजपा की सहयोगी रही और अभी विपक्षी शिरोमणि अकाली दल ने भी यूसीसी का विरोध किया है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने दर्ज कराई है आपत्ति
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने विधि आयोग के 14 जून 2023 के नोटिस पर अपनी आपत्ति दर्ज की है। बोर्ड ने अपनी आपत्तियों का विवरण देते हुए विधि आयोग को भेजे गए पत्र में कहा है कि आयोग द्वारा आमंत्रित किए जाने वाले सुझावों की शर्तें गायब हैं। ऐसा लगता है कि जनमत संग्रह के लिए इतना बड़ा मुद्दा सार्वजनिक डोमेन में लाया गया है। बोर्ड ने अपने पत्र में कहा कि यह मुद्दा पूरी तरह से कानूनी मुद्दा होने के बावजूद राजनीति और मीडिया के लिए प्रोपेगेंडा का पसंदीदा मुद्दा बन गया है। पूर्व के आयोग ने इस मुद्दे की जांच की थी और वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि समान नागरिक संहिता न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है। लेकिन इतने कम समय के भीतर, बिना कोई खाका बताए हुए कि आयोग करना क्या चाहता है, फिर से इस पर जनता की राय मांगना आश्चर्यजनक है।
बोर्ड ने कहा है कि मुसलमानों का व्यक्तिगत संबंध उनके व्यक्तिगत कानूनों द्वारा निर्देशित होते हैं जो कि सीधे पवित्र कुरान और सुन्नत (इस्लामी कानून) से लिया गया है। यह पहलू उनकी पहचान से जुड़ा हुआ है। भारत के मुसलमान अपनी इस पहचान को खोने के लिए सहमत नहीं होंगे जिसकी देश के संवैधानिक ढांचे में जगह है। देश की विविधता को बनाए रखने के लिए जरुरी है कि अल्पसंख्यकों और आदिवासी समुदायों को अपने स्वयं के व्यक्तिगत कानूनों द्वारा शासित होने की अनुमति दी जाए।
एसजीपीसी ने यूसीसी को अनावश्यक बताया है
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को देश में अनावश्यक बताते हुए सिख समुदाय की ओर से कड़ा विरोध दर्ज कराया है। पिछले दिनों एसजीपीसी अध्यक्ष हरजिंदर सिंह धामी की अध्यक्षता में इसकी कार्यकारी समिति की बैठक में कहा गया है कि देश में यूसीसी की कोई आवश्यकता नहीं है।
धामी ने कहा कि समान नागरिक संहिता को लेकर देश में अल्पसंख्यकों के बीच यह आशंका है कि यह संहिता उनकी पहचान, मौलिकता और सिद्धांतों को चोट पहुंचाएगी। यूसीसी के मुद्दे पर एसजीपीसी ने सिख बुद्धिजीवियों, इतिहासकारों, विद्वानों और वकीलों की एक उप-समिति का गठन किया है, जिसने प्रारंभिक चरण में यूसीसी को अल्पसंख्यकों के अस्तित्व, उनके धार्मिक संस्कारों, परंपराओं और संस्कृति के लिए दमन माना है।
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