महाराष्ट्र में ओबीसी संगठनों का प्रदर्शन एक बानगी थी। उसके बाद यही मांग कर्नाटक से उठी, तेलंगाना में मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने जाति जनगणना कराने का वादा अप्रैल में ही ओबीसी संगठनों से कर लिया था। लेकिन तेलंगाना में अब चुनाव होने वाले हैं और ये मांग अब कांग्रेस केसीआर की धोखाधड़ी के नाम पर फिर सामने लेकर आ गई है। पिछले दिनों जब हैदराबाद में सीडब्ल्यूसी की बैठक हुई तो बैठक के बाद राहुल गांधी ने एक बहुत बड़ी रैली को संबोधित किया था। जिसमें राहुल ने जाति जनगणना की मांग करते हुए कहा था कि कांग्रेस के सत्ता में आने पर वो जाति जनगणना कराएगी। केसीआर की तरह झूठ नहीं बोलेगी।
यूपी में भाजपा समर्थक ओबीसी नेता सकते में
अब बिहार की जाति जनगणना रिपोर्ट ने कांग्रेस और तमाम क्षेत्रीय दलों को नया ईंधन दे दिया है। यूपी में सपा प्रमुख अखिलेश यादव लंबे समय से जाति जनगणना की मांग कर रहे हैं। उन्होंने इस मुद्दे पर अभियान चलाने के लिए पूर्व मंत्री और प्रमुख ओबीसी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के नेतृत्व में एक कमेटी भी बना दी थी। यानी यूपी में जाति जनगणना को विपक्ष पूरी गंभीरता से ले रहा है। चूंकि भाजपा को जब तक यूपी से चुनौती नहीं मिलेगी, तब तक क्षेत्रीय दलों और कांग्रेस की स्थिति मुश्किल वाली रहेगी।“
लेकिन जरा ठहरिए। भाजपा के साथ यूपी में संजय निषाद की निषाद पार्टी, ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, कुर्मियों के नेतृत्व वाला अपना दल, बिहार में विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी ओबीसी की राजनीति के सहारे पहुंचे हैं। लेकिन भाजपा से हाथ मिलाने के बाद ये सारे क्षेत्रीय या जाति आधारित दल जाति जनगणना के लिए दबाव बनाने की राजनीति भूल गए। जब तक ये भाजपा के साथ नहीं थे, उठते-बैठते जाति जनगणना की मांग कर रहे थे। 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान और उससे पहले संजय निषाद ने कुछ निषाद वर्ग की उपजातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिलाने के लिए एड़ी से चोटी का जोर लगा दिया था। तमाम घोषणाओं के बाद कामयाबी नहीं मिली। बिहार की रिपोर्ट आने के बाद यूपी के ये सारे क्षेत्रीय क्षत्रप या तो कोमा में चले गए हैं या चाहकर भी विरोध नहीं कर पा रहे हैं।
भाजपा की रणनीतिः जाति जनगणना पर ओबीसी आधारित दलों को दरअसल भाजपा ने ही आवाज उठाने का मौका दिया। भाजपा की दोहरी बात और दोहरे स्टैंड को मंडल आधारित पार्टियों ने खूब समझने के बाद ही जाति जनगणना की मांग को जिन्दा किया। हालाँकि भाजपा भी ओबीसी समर्थन की मदद से सत्ता में आई, लेकिन वह उस सोशल जस्टिस के मुद्दे का समर्थन करने से दूर रही जिसमें ओबीसी समुदाय अपनी तरक्की देख रहा है। भाजपा की दोरंगी नीति देखिए। एक तरफ तो भाजपा ने जाति जनगणना के विचार का समर्थन किया लेकिन केंद्र की भाजपा सरकार ने आधिकारिक तौर पर सुप्रीम कोर्ट में इसके लागू करने पर आपत्ति जताई। केंद्र की मोदी सरकार ने सितंबर 2021 में कोर्ट में तर्क दिया था कि जाति जनगणना "प्रशासनिक रूप से" संभव नहीं थी, और अदालत इसे लागू करने का निर्देश नहीं दे सकती है, क्योंकि जाति गणना कार्यपालिका के दायरे में है। भाजपा इस स्टैंड से बेनकाब हो गई। शायद यह मुहावरा ऐसी ही राजनीतिक इस्तेमाल के लिए गढ़ा गया होगा- मुंह में राम बगल में छूरी।
ऐसे समझिए भाजपा का दोहरा स्टैंड
जाति जनगणना और आरक्षण का खेल यूपी में 2017 के विधानसभा चुनाव से चल रहा है। 2017 में भाजपा भारी बहुमत से जीत कर आई। योगी आदित्यनाथ तमाम उठा पटक के बाद मुख्यमंत्री बने। हालांकि पार्टी ने ओबीसी समूहों के बीच संकेत दिया था कि केशव प्रसाद मौर्य को सीएम बनाया जा सकता है। केशव प्रसाद मौर्य के समर्थकों ने दो दिनों तक लखनऊ में भाजपा दफ्तर पर प्रदर्शन किया। उन्होंने योगी को नेता मानने से इनकार कर दिया। बाद में आरएसएस नेताओं के दखल पर केशव प्रसाद मौर्य मान गए। इस तरह ओबीसी नेता की थाली उसके आगे से सरकाकर उच्च जाति वाले योगी आदित्यनाथ को परोस दी गई।“
मुख्यमंत्री बनते ही योगी ने जाति सर्वेक्षण कराने के लिए अपने ओबीसी सहयोगियों के दबाव को मान लिया। इसके बाद एक कमेटी ने सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट पेश की। जिसमें ज्यादा जाति समूहों को ओबीसी लिस्ट में डालने का प्रस्ताव था लेकिन इसे कभी लागू नहीं किया गया। इसी मुद्दे पर ओम प्रकाश राजभर ने सत्तारूढ़ भाजपा को गरियाते हुए साथ छोड़ा था। उन्होंने रिपोर्ट लागू न करने को भाजपा का विश्वासघात बताया था। हालांकि वही राजभर अब फिर से एनडीए गठबंधन में लौट आए हैं और मोदी-योगी के कसीदे पढ़ रहे हैं।
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