8 दिसंबर को किसानों द्वारा बुलाए गए भारत बंद में देश भर के किसानों के जुटने के अलावा विपक्षी दलों का भी साथ मिलने से मोदी सरकार के माथे पर चिंता की लकीरें बढ़ गई हैं। जब तक यह आंदोलन पंजाब में ही चल रहा था, सरकार ने आंदोलनकारी किसानों से बात करने में हठी रवैया अपनाया। लेकिन जब पंजाब के किसान दिल्ली के बॉर्डर पर आकर डट गए और फिर उनके साथ हरियाणा और कई राज्यों के किसान जुट गए तो सरकार को समझ आया कि बात हाथ से निकल चुकी है।
ताज़ा हालात ये हैं कि दिल्ली-हरियाणा और दिल्ली-यूपी के कई बॉर्डर्स पर किसान बड़ी संख्या में जमा हैं। सरकार के साथ उनकी कई दौर की बातचीत हो चुकी है। सरकार क़ानूनों में संशोधन के लिए भी तैयार है लेकिन किसानों की सीधी मांग है कि इन तीनों कृषि क़ानूनों को रद्द कर दिया जाए।
किसानों के आंदोलन को विदेशों से भी जोरदार सपोर्ट मिल रहा है। किसान संगठनों और विपक्षी दलों के हमलों से घबराई मोदी सरकार ने सोमवार को क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को जवाब देने के लिए मैदान में उतारा।
प्रसाद ने कहा कि आज जो नरेंद्र मोदी की सरकार ने किया है, यूपीए की 10 साल की सरकार में यही हो रहा था और कांग्रेस अपने राज्यों में यही कर रही थी। प्रसाद ने कांग्रेस पर हमला बोला और कहा कि आज जब इसका राजनीतिक वजूद ख़त्म हो रहा है और ये कई चुनावों में हार रही है तो अपना वजूद बचाने के लिए किसी भी आंदोलन में शामिल हो रही है।
अखिलेश को दिया जवाब
सोमवार को उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी किसानों के समर्थन में उतरे और कन्नौज में आयोजित कार्यक्रम में जाने के लिए जब लखनऊ से निकले तो पुलिस ने उन्हें रोक लिया। इसके बाद एसपी कार्यकर्ताओं ने बड़ी संख्या में इसका विरोध किया और जमकर नारेबाज़ी की। पुलिस ने अखिलेश को कन्नौज नहीं जाने दिया और हिरासत में ले लिया। इसके अलावा भी उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर एसपी नेताओं की गिरफ़्तारियां हुई हैं। अखिलेश यादव के किसानों के भारत बंद को पूर्ण समर्थन देने और सड़क पर उतरने को लेकर रविशंकर प्रसाद ने उन्हें भी जवाब दिया।
प्रसाद ने कहा, ‘अखिलेश जी, एग्रीकल्चर स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट आ गई है और इसमें मुलायम सिंह यादव भी हैं। उन्होंने भी बहुत साफ-साफ कहा है कि यह बहुत ज़रूरी है कि किसानों को मंडियों के चंगुल से मुक्त किया जाए।’
क़ानून मंत्री ने कहा कि यही बात अकाली दल वालों ने भी कही थी और सदन में जब बहस चल रही थी तो एसपी हो या शिवसेना ने इसका समर्थन किया था। उन्होंने कहा कि देश में छोटे-मंझोले किसान अगर वक़्त के हिसाब से बदलना चाहते हैं तो उन्हें यह अवसर क्यों नहीं मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार का मंडियों या एमएसपी को ख़त्म करने का कहीं कोई इरादा नहीं है।
प्रसाद ने कहा कि सारी विपक्षी पार्टियां किसानों को भ्रमित कर रही हैं और इनका पूरा चेहरा शर्मनाक और दोहरे चरित्र का है।
कुछ दिन पहले जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी के दौरे पर पहुंचे थे तो उन्होंने भी यही कहा था कि कुछ लोग किसानों को गुमराह करने का प्रयास कर रहे हैं। नए क़ानूनों के तहत मंडियों को ख़त्म करने को लेकर उठ रहे सवालों को लेकर मोदी ने कहा था कि अगर मंडियों और एमएसपी को ख़त्म करना होता तो सरकार इन पर इतना निवेश क्यों करती। उन्होंने कहा था कि सरकार मंडियों को आधुनिक और मजबूत बनाने के लिए करोड़ों रुपये ख़र्च कर रही है।
किसानों के आंदोलन के कारण राजधानी का सियासी माहौल गर्म है और बीजेपी और मोदी सरकार किसानों को मनाने की कोशिश में जुटे हैं। लेकिन उन्हें अब तक सफलता नहीं मिली है।
कौन पीछे हटेगा?
तीनों कृषि क़ानूनों को ख़त्म करने के अलावा किसानों की यह भी मांग है कि एमएसपी पर क़ानून बनाया जाए, पराली जलाने से संबंधित अध्यादेश और बिजली बिल 2020 को भी वापस लिया जाए। अब सारी नज़र 9 दिसंबर पर टिकी है, इस दिन किसानों और सरकार के बीच एक बार फिर बातचीत होनी है। लेकिन किसानों ने जिस तरह के तेवर पिछली बैठक में दिखाए थे और सरकार से इन कृषि क़ानूनों को ख़त्म करने को लेकर हां या ना में जवाब देने के लिए कहा था, उसके बाद सरकार के सामने विकल्प ख़त्म हो चुके हैं। क्योंकि किसानों को देखकर नहीं लगता कि वे किसी भी सूरत में पीछे हटेंगे।
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