नागरिकता क़ानून के विरोध में प्रदर्शन जारी रहे या न रहे, लेकिन समर्थन में तो बीजेपी कम से कम एक महीने तक कई जगहों पर प्रदर्शन करेगी और रैलियाँ निकालेगी। वैसे, जब से इस क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन हो रहे हैं तब से ही बीजेपी सोशल मीडिया पर काफ़ी सक्रिय है और अलग-अलग तर्कों के साथ इसे सही साबित करने की कोशिश कर रही है। बीजेपी के नेता भी हर मंच पर इसको सही बता रहे हैं। लेकिन इन सबके बावजूद प्रदर्शन नहीं रुका और लगातार देश भर में बढ़ते ही गया तो बीजेपी ने भी समर्थन में प्रदर्शन की राह चुनी। कई राज्यों में रैलियाँ भी निकालीं।
बता दें कि नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ देशभर में ज़बरदस्त प्रदर्शन हो रहे हैं। पिछले हफ़्ते ही उत्तर प्रदेश में विरोध-प्रदर्शन और इस दौरान हुई हिंसा में कम से कम 19 लोगों की मौत हो गई है। राज्य की पुलिस ने गुरुवार को ही कहा है कि इसमें 327 केसों में 1113 लोगों को गिरफ़्तार किया गया है। इसके साथ ही 5558 लोगों को हिरासत में लिया गया है। असम में भी हिंसा में कम से कम 5 लोग और कर्नाटक में दो लोग मारे गए हैं। नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ इसी विरोध-प्रदर्शन की काट के लिए बीजेपी ने समर्थन में प्रदर्शन की तरकीब निकाली। इसकी शुरुआत काफ़ी पहले ही हो गई थी।
बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 23 दिसंबर को नागरिकता क़ानून के समर्थन में कोलकाता में रैली निकाली थी। इस दौरान बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव व पश्चिम बंगाल के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष समेत कई वरिष्ठ नेता मौजूद थे। यह मुद्दा पश्चिम बंगाल की सियासत में बड़ा मसला बना हुआ है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने घोषणा की है कि इसे राज्य में लागू नहीं किया जाएगा। बता दें कि नागरिकता क़ानून और एनआरसी के ख़िलाफ़ राज्य में 13 से 17 दिसंबर के दौरान हिंसक प्रदर्शन व आगजनी हुई थी। बीजेपी अब राज्य में लगातार रैलियाँ आयोजित कर रही है और सोमवार को भी रैली निकाली गई।
बिहार में भी समर्थन में प्रदर्शन
बिहार की राजधानी पटना में बीजेपी और आरएसएस कार्यकर्ताओं ने 23 दिसंबर को 'भारत बचाओ मोर्चा' के तहत समर्थन रैली निकाली। इस रैली के दौरान लोगों को एक्ट का समर्थन करने और इसे लेकर फैली ‘ग़लतफहमी’ दूर करने की अपील भी की गई। रैली में बड़ी संख्या में कार्यकर्ता तिरंगा लिए और क़ानून के समर्थन में तख्तियाँ लिए नज़र आए।
मुंबई में रैली
बीजेपी ने 23 दिसंबर को नागरिकता क़ानून के समर्थन को लेकर हिमाचल के कुल्लू, सिरमौर और हमीरपुर ज़िले में रैली निकाली थी।
इस क़ानून के समर्थन में 25 दिसंबर को बीजेपी ने मुंबई के चेंबूर और वडाला में समर्थन में मार्च निकाला।
असम में बीजेपी ने 27 दिसंबर को नागरिकता क़ानून के समर्थन में रैली निकाली। मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और राज्य मंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के नेतृत्व में भाजपा कार्यकर्ताओं ने चार किमी की रैली निकाली।
उत्तराखंड
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में 29 दिसंबर लोक अधिकार मंच ने नागरिकता क़ानून के पक्ष में रैली निकाली जिसका बीजेपी ने पूरा समर्थन किया। कार्यकर्ता हाथों में 'सपोर्ट फॉर सीएए' लिखी तख्तियाँ और तिरंगा झंडा और बीजेपी के झंडे के साथ चल रहे थे। प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष अजय भट्ट ने इस मसले को लेकर विपक्ष पर जनता को गुमराह करने का भी आरोप लगाया। इस पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा था कि जनता का सामना करने का साहस न होने के कारण बीजेपी ने लोक अधिकार मंच के पीछे खड़े होकर यह रैली निकाली है।
अब उत्तर प्रदेश की बारी
अब तक छिटपुट जगहों पर रैलियाँ निकालती रही बीजेपी इसके लिए आगे की तैयारी भी कर चुकी है। पिछले हफ़्ते ही उत्तर प्रदेश में इस संबंध में बीजेपी और आरएसएस ने एक योजना बनाई है। बीजेपी का मानना है कि इस क़ानून के बारे में लोगों को बताने के लिए प्रदर्शन और रैलियाँ नहीं किए जाने के कारण ही नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन इस स्तर तक पहुँच गया। अब डैमेज कंट्रोल करने का प्रयास शुरू हुआ है। 'इकोनमिक टाइम्स' के अनुसार, आरएसएस और बीजेपी के नेताओं ने मेरठ में बैठक कर इसके लिए क़रीब एक महीना तक अभियान चलाने का फ़ैसला किया है। नागरिकता क़ानून के समर्थन में की जाने वाली इन रैलियों से कुछ में प्रधानमंत्री मोदी भी संबोधित करेंगे।
बीजेपी को इस तरह के अभियान की ज़रूरत क्यों आन पड़ी? कहा जा रहा है कि यदि पार्टी ने पहले से लोगों से संपर्क साधने का प्रयास किया होता तो इसकी ज़रूरत नहीं पड़ती। सवाल है कि अब यदि बीजेपी समर्थन में रैली निकाल रही है तो क्या इससे विरोध रुक जाएगा?
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