हिजाब विवाद से अब बीजेपी और कर्नाटक सरकार पीछा छुड़ाना चाह रहे हैं। जिस तरह से तमाम बीजेपी नेताओं की ऑन रेकॉर्ड और ऑफ रेकॉर्ड प्रतिक्रिया सामने आ रही है, दूसरी तरफ बीजेपी के मशहूर बयानबाज नेताओं की इस मुद्दे पर चुप्पी बताती है कि हिजाब विवाद से पार्टी निकलना चाहती है। कर्नाटक सरकार के अटॉर्नी जनरल ने भी कल हाईकोर्ट में एक लाइन की टिप्पणी की थी कि सरकार का आदेश हिजाब बैन के लिए था। वो यूनिफॉर्म के लिए था, उस आदेश को और बेहतर ढंग से ड्राफ्ट किया जाना चाहिए था।
इंडियन एक्सप्रेस ने हिजाब विवाद से बीजेपी के पीछे हटने पर आज एक विशेष खबर दी है। खबर के मुताबिक बीजेपी शासित राज्यों में ही हिजाब प्रतिबंध को लेकर एक राय नहीं बन पाई।
बीजेपी शासित राज्यों की स्थिति
त्रिपुरा में शिक्षा मंत्री रतनलाल नाथ ने कहा कि त्रिपुरा में तो ऐसा कोई मुद्दा है और न ही शिक्षा विभाग इस बारे में कोई विचार कर रहा है। लगभग ऐसा ही बयान बीजेपी शासित हिमाचल प्रदेश के शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर ने भी दिया। ठाकुर ने कहा कि अभी तक स्कूलों में ड्रेस कोड पर किसी तरह का विचार नहीं किया जा रहा है।बीजेपी के सहयोगी दल जेडीयू और बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने खुल कर इस मुद्दे पर बयान दिया और कहा कि बिहार में हिजाब मुद्दा नहीं है। यह हर धार्मिक भावना का सम्मान किया जाता है।
बिहार के जेडीयू काडर में मुस्लिम नेताओं की भरमार है, ऐसे में जेडीयू हिजाब के मुद्दे पर समर्थन की गलती नहीं कर सकती।
मध्य प्रदेश में क्या हुआमध्य प्रदेश में रोचक घटना हुई। प्रदेश के शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने पहले तो हिजाब के विरोध में बयान दिया। उन्होंने कहा था कि एमपी के स्कूल-कॉलेजों में हिजाब पहनकर आने की अनुमति नहीं मिलेगी। लेकिन जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कुछ अन्य मंत्रियों ने आंतरिक बैठक में परमार के बयान पर कड़ा एतराज जताया।
परमार की टिप्पणी से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने खुद को अलग कर लिया। हालांकि नरोत्तम मिश्रा अपने कट्टर विचारों के लिए जाने जाते हैं। बताया जाता है कि सीएम ने कैबिनेट की बैठक में परमार की खिंचाई की और कहा कि कोई भी मंत्री इस मुद्दे पर सरकार से सलाह किए बिना टिप्पणी नहीं करे।
उसी दौरान एमपी के दतिया में एक कॉलेज कैंपस में दो मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पर बीजेपी से जुड़े संगठन के लोगों ने बदसलूकी की। दतिया नरोत्तम मिश्रा का पैतृक स्थान और विधानसभा क्षेत्र है। मिश्रा ने इस घटना पर कड़ा विरोध जताया और घटना की निन्दा की।
दतिया विधानसभा में 23,000 से अधिक मुस्लिम मतदाताओं के साथ अपने रिश्तों को बताते हुए शहर को "सांप्रदायिक सद्भाव" की मिसाल बताया। उन्होंने दतिया के डीएम को निर्देश दिया कि वो पता लगाएं कि उस कॉलेज में क्या हिजाब को लेकर कोई निर्देश दिया गया है।
बीजेपी एक वरिष्ठ नेता, जो पदाधिकारी भी हैं, ने यह माना कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने हिजाब मुद्दे को नहीं बढ़ाने का निर्देश दिया था। उन्होंने कहा, हिजाब कभी भी बीजेपी का मुद्दा नहीं था, पार्टी कभी भी इसे मुद्दा नहीं बनाना चाहती थी। प्रदेश के एक सांसद ने भी इस बात की पुष्टि की थी कि शीर्ष नेतृत्व ने इस विवाद से दूर रहने को कहा था। इस सारे घटनाक्रम के बाद शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने फौरन अपना हिजाब विरोधी बयान न सिर्फ वापस लिया, बल्कि लंबी-चौड़ी सफाई भी पेश की। परमार ने कहा कि जो व्यवस्था अभी लागू है, वही लागू रहेगी। मध्य प्रदेश में मुसलमानों की बड़ी आबादी रहती है और वहां तमाम शिक्षण संस्थाओं में काफी मुस्लिम लड़कियां हिजाब पहन कर अनगिनत वर्षों से जा रही हैं।
परमार ने जिस तरह अपना बयान वापस लिया, उसी से इसका अंदाजा होता है कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व हिजाब विवाद से अब निकलना चाहता है।
मध्य प्रदेश बीजेपी के मीडिया प्रभारी लोकेंद्र पाराशर भी बदले हुए स्वर में बात कर रहे हैं। उनका कहना कि महिलाओं को यह तय करना चाहिए कि वे क्या पहनना चाहती हैं। बीजेपी तो सिर्फ महिलाओं को सशक्त बनाना चाहती है ताकि वे खुद निर्णय ले सकें कि उन्हें हिजाब पहनना चाहिए या नहीं। पार्टी के एक अन्य नेता ने बताया कि मध्य प्रदेश में जब कुछ बीजेपी कार्यकर्ताओं में कॉलेजों में छात्राओं के जींस पहनने का विरोध किया था, तब भी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने इस पर आपत्ति जताई थी। उस समय शीर्ष नेतृत्व ने कहा था कि कॉलेजों में 90 फीसदी लड़कियां जींस पहनती हैं। यह मुद्दा उल्टा पड़ सकता है। इसी तरह हिजाब का मुद्दा भी है। जिस पर शीर्ष नेतृत्व की राय अलग है।
बीजेपी के कई नेता और मंत्री भी नाम न छापने की शर्त पर इस पर टिप्पणियां कर रहे हैं। एक केंद्रीय मंत्री ने कहा कि हिजाब विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब पार्टी जोरशोर से बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ का प्रचार कर रही है। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री तीन तलाक और मुस्लिम महिलाओं के सशक्तिकरण और शिक्षा की बात कह रहे हैं। मुस्लिम लड़कियां बड़ी तादाद में स्कूल-कॉलेजों में जा रही हैं।
बीजेपी के सूत्रों ने भी कहा कि पार्टी में इस बात पर चर्चा हुई कि उड्डुपी में हिजाब विवाद को एक छोटे से समूह के विरोध पर फैलने दिया गया। फिर धीरे-धीरे उसने राष्ट्रीय स्वरूप हासिल कर लिया। फिर यह मामला हाईकोर्ट में जा पहुंचा। हिजाब के समर्थन में उतरी लड़कियों के साथ बड़ी तादाद में लोगों की सहानुभूति भी जुड़ गई। ऐसे वीडियो सामने आए, जिसमें हिजाबी लड़कियां नारे लगा रही हैं और उनके पीछे बहुत बड़ा समूह चल रहा है। इसमें हर वर्ग के लोग शामिल हैं।
जिस तरह स्कूल-कॉलेजों में मुस्लिम टीचरों को हिजाब उतारने के लिए कहा गया और उसके जो वीडियो सामने आए, पार्टी इससे विचलित है। क्योंकि लोगों की सहानुभूति इन लोगों के साथ बढ़ रही है।
संसद में क्या हुआराजधानी दिल्ली में तमाम वरिष्ठ बीजेपी नेता इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखने तक को तैयार नहीं हैं। यह मुद्दा जब लोकसभा में तो उठा तो समय सभी ने देखा कि कोलार के सांसद एस. मुनिस्वामी को छोड़कर पार्टी के बाकी सांसद इस पर बोलने के लिए आगे ही नहीं आए। क्योंकि वो सारे बीजेपी सांसद अपने इलाकों में मुस्लिम मतदाताओं के गुणा भाग में व्यस्त थे। सूत्रों के मुताबिक दरअसल, दिल्ली में बीजेपी के शीर्ष नेताओं में यह चर्चा है कि कर्नाटक का हिजाब विवाद एक चिंगारी थी, जिसे वहीं पर बुझा दिया जाना चाहिए था। यह एक चूक है।
बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या अपने विवादास्पद बयानों के लिए जाने जाते हैं, लेकिन हिजाब के मुद्दे पर तेजस्वी सूर्या का एक भी बयान नहीं सामने नहीं आया।
हालांकि कर्नाटक के मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के नजदीकी लोगों का कहना है कि सीएम बोम्मई को इस मामले में दोष नहीं दिया जा सकता। कर्नाटक प्रदेश बीजेपी को यह मामला ढंग से डील करना चाहिए था। आखिर प्रदेश बीजेपी ने इस चिंगारी को आग में बदलने से रोकने के लिए क्या किया। पार्टी तो ढंग से अपनी ही सरकार का बचाव तक नहीं कर पाई।
कर्नाटक बीजेपी के एक नेता ने कहा कि पार्टी में जबरदस्त गुटबाजी है। बोम्मई की स्थिति अच्छी नहीं है। बीजेपी काडर पर उनकी पकड़ नहीं है। लेकिन अंत में बोम्मई ही इस मामले को सुलझाने के लिए खड़े हुए।
सीएए-एनआरसी जैसे आंदोलन की चिंताबीजेपी सूत्रों का कहना है कि पार्टी को हिजाब मुद्दे पर मुस्लिमों के राष्ट्रीय आंदोलन जैसा डर सता रहा है। जिस तरह सीएए-एनआरसी के खिलाफ पूरे देश में मुसलमानों ने आंदोलन कर नाराजगी जताई थी, उस स्थिति को दोबारा लाने के पक्ष में पार्टी नहीं है। एक बीजेपी नेता ने कहा कि 2019 में एनआरसी पर संसद में चर्चा हुई। लेकिन उसके बाद से पार्टी ने इस पर चुप्पी साध ली। अब वो कभी एनआरसी पूरे देश में लागू करने की बात नहीं कर रही है। पार्टी के रुख से साफ है कि वो ऐसे राष्ट्रीय आंदोलन का सामना करने के पक्ष में नहीं है।
हिजाब पर जिस तरह से विवाद बढ़ रहा है, उससे सीएए-एनआरसी विरोधी जैसे आंदोलन की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए पार्टी हिजाब वाले झमेले से निकलना चाहती है।
हाईकोर्ट में गौरतलब टिप्पणीहिजाब मामले पर कर्नाटक हाईकोर्ट में सुनवाई चल रही है। कर्नाटक के महाधिवक्ता (अटॉर्नी जनरल) प्रभुलिंग नवदगी ने कहा था कि राज्य सरकार के 5 फ़रवरी के आदेश के बारे में कुछ भी ग़ैरक़ानूनी नहीं था। सरकारी आदेश में हिजाब का कोई मुद्दा नहीं है। सरकारी आदेश प्रकृति में सहज है। यह याचिकाकर्ताओं के अधिकारों को प्रभावित नहीं करता है। उन्होंने यह भी कहा कि कॉलेज यह तय कर सकते हैं कि वे क्लास में हिजाब की अनुमति देना चाहते हैं या नहीं।उन्होंने कहा -
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राज्य का रुख यह है कि हम धार्मिक मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहते हैं। हम कह सकते थे कि हिजाब धर्मनिरपेक्षता और व्यवस्था के ख़िलाफ़ था और कह सकते थे कि इसकी अनुमति नहीं है। लेकिन हमने नहीं किया। यह राज्य का एक घोषित स्टैंड है। हम हस्तक्षेप नहीं करना चाहते थे।
-प्रभुलिंग नवदगी, अटॉर्नी जनरल, कर्नाटक सरकार
अटॉर्नी जनरल की यह टिप्पणी राज्य सरकार का रुख बताती है। उनकी टिप्पणी के आशय को समझा जा सकता है कि राज्य सरकार हिजाब बैन की समर्थक नहीं है। वो इसका फैसला स्कूल-कॉलेजों पर छोड़ना चाहती है। अटॉर्नी जनरल ने यह भी कहा कि सरकारी आदेश की ड्राफ्टिंग और बेहतर होना चाहिए थी।अगर दिल्ली से लेकर कर्नाटक तक चल रहे घटनाक्रम को देखा जाए तो तस्वीर साफ है कि बीजेपी अब हिजाब मुद्दे से निकलना चाहती है। वो इसमें खुद को 'फंसा हुआ' महसूस कर रही है।
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