आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में दाखिले में 10 प्रतिशत आरक्षण देने से जुड़े विधेयक को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। 'यूथ फ़ॉर इक्विलटी' नामक संगठन ने गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर इस 124वें संविधान संशोधन विधेयक को ख़ारिज करने की माँग की है।
यूथ फ़ॉर इक्वलिटी के प्रमुख कौशल कांत मिश्र ने याचिका में कहा है कि यह विधेयक संविधान के ख़िलाफ़ है क्योंकि इससे आरक्षण की उच्चतम सीमा 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण हो जाएगा। उन्होंने कहा है कि संविधान संशोधन में जो चार मुख्य बातें जोड़ी गई हैं, वे संविधान की किसी न किसी मौलिक सिद्धांत के उलट है और इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने बहुत पहले ही एक आदेश में कहा था कि संविधान के मूल भूत सिद्धान्तों को नहीं बदला जा सकता है।
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मिश्रा का कहना है कि आर्थिक आधार पर भी आरक्षण नहीं दिया जा सकता है। यह भी संविधान के ख़िलाफ़ है कि सामान्य श्रेणी के लोगों को ही आरक्षण दिया जाए। विधेयक में यह साफ़ किया गया है कि इस आरक्षण का फ़ायदा वे लोग ही ले सकेंगे जो अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़े समुदाय के तहत मिलने वाले आरक्षण के तहत नहीं आते। इसका साथ ही यह भी कहा गया है कि यह आरक्षण मौजूदा 49.50 प्रतिशत से अलग होगा। कौशल और उनके संगठन को इन मुद्दों पर विरोध है।
कल यानी बुधवार को राज्यसभा मे दिन भर की बहस के बाद इस विधेयक को 165-7 के बहुमत से पारित कर दिया गया था। राज्यसभा में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने भी इसका समर्थन किया था। सिर्फ डीएमके ने इसका विरोध किया था और उसे सेलेक्ट कमिटी को भेजने की माँग की थी, जिसे खारिज कर दिया गया था। उसके एक दिन पहले यानी मंगलवार को सामाजिक न्यााय मंत्री थावरचंद गहलोत ने इसे लोकसभा में पेश किया था, भारी बहुमत से पास कर दिया गया था। लोकसभा की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने वहां भी इसका समर्थन किया था। इसे पारित होने के लिए दोनों ही सदनों में मौजूद और वोट करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई लोगों का वोट पड़ना ज़रूरी था। दोनों ही सदनों में इस विधेयक को दो-तिहाई वोट मिले थे।
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