दवा बनाने वाली मशहूर कंपनी भारत बायोटेक ने ब्राज़ील को कोरोना टीका कोवैक्सीन निर्यात करने का क़रार रद्द कर दिया है।
ब्राज़ील के राष्ट्रपति जेअर बोइसोनेरो पर भारत बायोटेक से मिल कर घपला करने का आरोप लगा था और वहाँ बड़े पैमाने पर आन्दोलन हुआ था। ब्राज़ील के संसद ने इस मामले की जाँच के लिए कमेटी बना दी है।
भारत बायोटेक ने एक बयान में कहा है,
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कंपनी ने ब्राज़ील की दो कंपनियों से हुआ क़रार तुरन्त प्रभाव से रद्द कर दिया है। इसके बावजूद भारत बायोटेक ब्राज़ील की दवा नियामक संस्था एएनवीआइसए के साथ मिल कर काम करती रहेगी और कोवैक्सीन की अनुमति के लिए कोशिश करेगी।
भारत बायोटेक के बयान का अंश
अग्रिम भुगतान नहीं
कंपनी ने प्रेसिज़ा मेडिकामेन्टोज़ और एनविग्जिया फ़ार्मास्यूटिकल्स एलएलसी के साथ कोवैक्सीन के निर्यात का क़रार किया था।
भारत बायोटेक ने कहा है कि वैक्सीन की अंतरराष्ट्रीय कीमत 15-20 अमेरिकी डॉलर तय की गई थी। इसके अनुसार ब्राजील सरकार को 15 अमेरिकी डॉलर प्रति खुराक़ की दर से क़रार हुआ था।
लेकिन कंपनी का कहना है कि उसे कोई अग्रिम भुगतान नहीं मिला है और न ही उसने ब्राजील में स्वास्थ्य मंत्रालय को कोई टीके की आपूर्ति की है।
ब्राज़ील में जाँच
बता दें कि इसके पहले ही ब्राज़ील के अधिकारियों ने भारत बायोटेक से कोरोना टीका कोवैक्सीन खरीद की जाँच शुरू कर दी।
अधिकारियों को इस बात का पता लगाना है एक ऐसा टीका जिसके प्रभाव के बारे में कोई पुख़्ता जानकारी नहीं है और विश्व स्वासथ्य संगठन ने भी जिसकी सिफ़ारिश नहीं की है, क्यों खरीदा गया।
भारत बायोटेक के साथ हुए क़रार, ब्राज़ील के राष्ट्रपति जेअर बोइसोनेरो की भूमिका और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनके रिश्तों की जाँच भी की जा रही है।
ब्राज़ील की कंपनी प्रेसिज़ा मेडिकामेन्टोज़ ने इस सौदे में बिचौलिए की भूमिका निभाई थी और भारत बायोटेक व ब्राज़ील सरकार में सौदा करवाया था।
घपले की जाँच!
ब्राजील के सीनेटर यानी सांसद रेनन कैलेरोज़ ने कहा था कि वे हर घपले की जाँच कराएंगे। वे ब्राज़ील के संसदीय आयोग यानी सीपीआई के प्रमुख बनाए गए थे।
'द वायर' के अनुसार, ब्राज़ील के संसदीय आयोग के पास ऐसे काग़ज़ात हैं, जिनसे यह पता चलता है कि भारत बायोटेक से कोवैक्सीन खरीदने में ज़्यादा जल्दीबाजी दिखाई गई और इसके लिए बहुत दबाव बनाया गया।
एमडी से पूछताछ
जाँच से पता चला है कि बिचौलिया कंपनी प्रेसिज़ा मेडिकामेंन्टोज़ को जो 10 करोड़ डॉलर की रकम मिली, वह उसकी कुल सेवा शुल्क का एक तिहाई हिस्सा ही है। हालांकि सरकार ने बिचौलिए को कोई रकम देने से इनकार किया है, पर यह सवाल उठ रहा है। संसदीय आयोग ने प्रेसिज़ा मेडिकामेंन्टोज़ के प्रबंध निदेशक फ्रांसिस्को मैक्सिमियानो को पूछताछ के लिए 23 जून को तलब किया है।
बता दें कि ब्राज़ील के राष्ट्रपति शुरू में कोरोना को महामारी ही नहीं मान रहे थे, वे इसके इलाज, टीका या दवा के ख़िलाफ़ थे। बाद में जब ब्राज़ील में मौत होने लगी तो उन्होंने भारत से हाइड्रोक्सोक्लोरोक्विन की दवा माँगी।
हालांकि इस दवा से कोरोना के इलाज में कोई फ़ायदा होता हो, ऐसा नहीं है, पर अमेरिका के वैज्ञानिकों ने पाया था कि इस दवा के नियमित इस्तेमाल से कोरोना संक्रमण रोकने में मदद मिलती है। इसके बाद पहले अमेरिका ने भारत से यह दवा ली और उसके बाद ब्राज़ील ने।
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