भारत बायोटेक के जिस टीके कोवैक्सीन को जनवरी में ही आपात इस्तेमाल की मंजूरी मिल गई थी उसके तीसरे चरण के ट्रायल के आँकड़े जुलाई में आएँगे। ऐसा भारत बायोटेक ने ही कहा है। यानी तीसरे चरण के अंतिम परिणाम जुलाई में प्रकाशित होंगे। इससे पहले कंपनी ने मार्च में भी तीसरे चरण के ट्रायल के आँकड़े जारी किए थे लेकिन वे अंतरिम विश्लेषण के आधार पर थे। यानी वे अंतिम विश्लेषण के आधार पर नहीं थे। जब जनवरी में इसको आपात मंजूरी दी गई थी तब इसके तीसरे चरण के ट्रायल के आँकड़े को लेकर विवाद भी हुआ था और सवाल उठे थे कि उन आँकड़ों के बिना मंजूरी कैसे दी गई?
तीन जनवरी को ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया यानी डीसीजीआई ने सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया की कोविशील्ड के साथ ही भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को 'सीमित इस्तेमाल' की मंजूरी दी थी। कोविशील्ड के 70 फ़ीसदी प्रभावी होने का दावा किया गया था। लेकिन कोवैक्सीन को लेकर ऐसा कोई दावा नहीं किया गया था।
भारत बायोटेक ने अब कहा है कि इसकी वैक्सीन संपूर्ण रूप से 78 फ़ीसदी प्रभावी है। 'एएनआई' की रिपोर्ट के अनुसार भारत बायोटेक ने कहा है कि यह समझना महत्वपूर्ण है कि तीसरे चरण का आँकड़ा पहले सीडीएससीओ को प्रस्तुत किया जाएगा। इसके बाद पीयर-रिव्यू जर्नल द्वारा इसका आकलन किया जाएगा और लगभग तीन महीने की समय-सीमा में इसका प्रकाशन होगा।
कंपनी की ओर से कहा गया है कि 'जैसा कि पहले बताया गया था, कोवैक्सीन के तीसरे चरण के पूर्ण परीक्षण के आँकड़ों के परिणाम जुलाई के दौरान सार्वजनिक किए जाएँगे।'
रिपोर्ट के अनुसार कंपनी ने कहा है कि वैक्सीन की और अधिक प्रभाविकता जानने के लिए चौथे चरण का ट्रायल भी किया जा रहा है जिससे कि आपात इस्तेमाल के लिए ज़रूरी सुरक्षा, प्रभाविकता और निर्माण की गुणवत्ता को पूरा किया जा सके।
बता दें कि मंजूरी मिलने के क़रीब दो महीने बाद भारत बायोटेक ने मार्च में भी तीसरे चरण के आँकड़े जारी किए थे। कंपनी ने कहा था कि अंतरिम विश्लेषण से पता चला है कि यह वैक्सीन कोरोना को रोकने में 81 फ़ीसदी प्रभावी है और इसमें गंभीर और साइड इफेक्ट यानी दुष्परिणाम निम्न स्तर के रहे। भारत बायोटेक ने यह भी दावा किया था कि 'नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के विश्लेषण से पता चलता है कि टीके से बनी एंटीबॉडी ब्रिटेन में पाए गए नये क़िस्म के कोरोना को बेअसर कर सकती है।'
तब इसने कहा था कि तीसरे चरण के आँकड़े 25,800 प्रतिभागियों पर ट्रायल के आधार पर हैं। इस मामले में और अधिक जानकारी इकट्ठा करने और वैक्सीन की प्रभावकारिता का मूल्यांकन करने के लिए 130 पुष्ट मामलों के अंतिम विश्लेषण तक ट्रायल जारी रहेगा।
कंपनी द्वारा ये आँकड़े जारी करने के क़रीब एक हफ़्ते बाद ही कोवैक्सीन 'क्लिनिकल ट्रायल मोड' में नहीं रही थी। ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया यानी डीसीजीआई ने क्लिनिकल ट्रायल मोड का वह ठप्पा हटा दिया था। 'क्लिनिकल ट्रायल मोड' टैग हटाने का मतलब है कि उस वैक्सीन को लगवाने से पहले लोगों को सहमति वाले एक फ़ॉर्म पर दस्तख़त करने की ज़रूरत नहीं है।
'क्लिनिकल ट्रायल मोड' में सहमति वाले दस्तख़त की ज़रूरत इसलिए थी कि भारत बायोटेक की इस कोवैक्सीन को तीसरे चरण के ट्रायल के आँकड़े के बिना ही आपात मंजूरी दी गई थी और इसलिए कहा गया था कि इसे क्लिनिकल ट्रायल मोड में ही आपात इस्तेमाल किया जा सकता है। तीसरे चरण के ट्रायल के आँकड़े के बिना ही मंजूरी दिए जाने पर काफ़ी विवाद भी हुआ था।
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