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बड़े बैंक डिफॉल्टर्स को राहतः कांग्रेस ने RBI से पूछा किसके दबाव में नियम बदले

कांग्रेस ने बुधवार को बैंकों के विलफुल डिफॉल्टर्स के मामले में नीति बदलने को लेकर केंद्र सरकार पर जबरदस्त हमला बोला। इस संबंध में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अपनी ही नीति को बदलने पर सवाल उठाए गए। इस मामले को एआईसीसी के प्रवक्ता अमिताभ दुबे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके और सीनियर नेता जयराम रमेश ने बयान जारी करके उठाया।
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने कहा कि आरबीआई को यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्यों उसने 'जानबूझकर क़र्ज़ न चुकाने वालों' और 'धोखाधड़ी' से संबंधित अपने ही नियमों में बदलाव किया। वह भी तब जब अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ और अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस कदम से "बैंकिंग क्षेत्र में जनता का विश्वास कम होगा, जमाकर्ताओं का भरोसा कम होगा, नियमों की अवहेलना करने की संस्कृति को बल मिलेगा और बैंकों एवं उनके कर्मचारियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
कांग्रेस ने कहा है कि "आरबीआई की नीति में बदलाव उन सभी विलफुल डिफॉल्टर्स और धोखाधड़ी के लिए क्लीन चिट है जो सार्वजनिक धन लेकर भाग गए हैं। रमेश ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक ने 8 जून 2023 को कर्ज के तकनीकी राइट-ऑफ ढांचे के तहत निर्देश जारी किए, जिसने बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थाओं को अनुमति दी कि ऐसे विलफुल डिफॉल्टर्स शेयर बाजार में काम कर सकते हैं और फिर से कर्ज ले सकते हैं। बैंकों और वित्तीय संस्थाओं को ऐसे देनदारों के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही के पूर्वाग्रह के बिना विलफुल डिफॉल्टर्स या धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत खातों के संबंध में समझौता करना होगा और उनके पुराने कर्ज को तकनीकी रूप से बट्टे खाते में डालना होगा। इन खातों को 12 महीने के कूल पीरियड के बाद नए ऋण लेने की अनुमति दी जाएगी। 
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जयराम रमेश ने यह भी कहा कि अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ और अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी संघ, जो 6 लाख बैंक कर्मचारियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, दोनों ने इस नीति का विरोध किया है। क्योंकि इसमें खतरे बड़े हैं।
रमेश ने आगे कहा कि आरबीआई और बैंक अपने कदम के खतरों को अच्छी तरह से जानते हैं। दो साल पहले, आरबीआई ने स्पष्ट रूप से कहा था कि विलफुल डिफॉल्टर्स को पूंजी बाजार तक पहुंचने या नए ऋण लेने की अनुमति नहीं दी जाएगी।'' अब अचानक ऐसा क्या हो गया।

कांग्रेस ने कहा कि 'हाल ही में 29 मई 2023 तक, आरबीआई गवर्नर ने उन कई तरीकों के बारे में चेतावनी दी थी, जिसमें डिफॉल्टर्स धोखेबाज के रूप में संकटग्रस्त ऋणों की सही स्थिति को छिपाते हैं। आरबीआई स्पष्ट करेगा कि क्या मोदी सरकार ने यू-टर्न लेने के लिए उस पर दबाव डाला है। जयराम रमेश ने कुछ आंकड़े देते हुए खुलासा किया कि भारतीयों ने धोखाधड़ी और विलफुल डिफॉल्ट के लिए भारी कीमत चुकाई है क्योंकि बैंकों ने 2017-18 और 2021-22 के बीच 710 लाख करोड़ रुपये के कर्ज को बट्टे खाते में डाला। इन ऋणों की वसूली दर 13 प्रतिशत से भी कम है, जिसका अर्थ है कि प्रत्येक 78 बट्टे खाते में से केवल 71 की वसूली की जा रही है। शीर्ष 50 विलफुल डिफॉल्टर्स में पीएम मोदी के दोस्त मेहुल चोकसी भी शामिल है। यह कुल रकम 792,570 करोड़ (31 मार्च 2022 तक) बकाया है। मोदी सरकार में बैंकिंग धोखाधड़ी 17 गुना बढ़ गई है।
रमेश ने यह भी दावा किया कि ईमानदार कर्जदार - किसान, छोटे और मध्यम उद्यम, और मध्यम वर्ग के वेतनभोगी कर्मचारी लगातार ईएमआई से कराह रहे हैं और उन्हें कभी भी अपने ऋण पर फिर से बातचीत करने का मौका नहीं दिया जाता है। फिर भी मोदी सरकार ने अब नीरव मोदी, मेहुल चोकसी और विजय माल्या जैसे धोखेबाजों और इरादतन चूककर्ताओं को पुनर्वास का मौका दिया है। जहां भाजपा के धनी धनपतियों को हर अवांछित सुविधा दी जाती है, वहीं ईमानदार भारतीयों को अपना कर्ज चुकाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। यह इस सूट-बूट-लूट-जूट सरकार के असली स्वरूप को उजागर करता है।'' 
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उन्होंने कहा कि आरबीआई को तुरंत अपने निर्देशों को रद्द करना चाहिए और बैंकों को विलफुल डिफॉल्टर्स और धोखेबाजों के साथ समझौता करने से रोकना चाहिए। इसके अलावा, आरबीआई को यह स्पष्ट करना चाहिए कि बार-बार की चेतावनी और इसके विपरीत निर्देशों के बावजूद, उसने इस समय इन निर्देशों को क्यों बदलना आवश्यक समझा।

कांग्रेस ने पूछा है कि आरबीआई को यह खुलासा करना चाहिए कि क्या इन निर्देशों को जारी करने के लिए मोदी सरकार की ओर से कोई दबाव था।
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क़मर वहीद नक़वी
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