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धारा 370ः सुप्रीम कोर्ट 2 अगस्त से रोजाना याचिकाओं पर सुनवाई करेगा

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को संविधान के आर्टिकल 370 में बदलाव को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर रोजाना सुनवाई के लिए 2 अगस्त, 2023 की तारीख तय की है। ये सुनवाई सोमवार से शुक्रवार तक हुआ करेगी। केंद्र सरकार ने आर्टिकल 370 में बदलाव करके जम्मू और कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा छीन लिया था। कुछ याचिकाओं में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 को भी चुनौती दी गई है, जिसने जम्मू-कश्मीर को केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया था।

आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू होते ही चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा-

केंद्र सरकार के ताजा हलफनामे का संवैधानिकता से जुड़े मामले की मेरिट्स (खूबियों) पर कोई असर नहीं पड़ेगा।


-चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, 11 जुलाई 2023 सोर्सः लाइव लॉ

यहां यह बताना जरूरी है कि जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 के तहत अनुच्छेद  35 ए को पहले पीएम जवाहरलाल नेहरू कैबिनेट की सलाह पर 1954 में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश द्वारा शामिल किया था। लेकिन केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को नया आदेश संविधान के अनुच्छेद 370 (1) (डी) के तहत मिली पावर का प्रयोग करते हुए पारित किया। जिसके जरिए 1954 के राष्ट्रपति के उस आदेश को हटा दिया, जिससे जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा मिला था। फिर 6 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों (जम्मू कश्मीर और लद्दाख) में बांट दिया गया। 

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धारा 370 पर सुनवाई करने वाली बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकांत हैं। 
लाइव लॉ के मुताबिक आज सुनवाई के दौरान जस्टिस कौल ने पूछा कि क्या इस मामले में कोई अतिरिक्त हलफनामा दाखिल करने की जरूरत है, क्योंकि यह मुद्दा पूरी तरह से फैसलों की संवैधानिकता से जुड़ा है। कल केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म होने के बाद उसकी मौजूदा स्थिति को लेकर हलफनामा दाखिल किया था। जस्टिस कौल ने कहा कि अब दूसरा पक्ष भी जवाबी हलफनामा दायर करेगा और इस तरह प्रक्रिया जारी रहेगी।

केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हलफनामा केवल क्षेत्र की वर्तमान स्थिति को बताता है और इस पर कोई प्रतिक्रिया आवश्यक नहीं है। इस पर सीजेआई ने कहा - केंद्र के हलफनामे का संवैधानिक सवाल से कोई लेना-देना नहीं है।

कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि केंद्र के हलफनामे की अनदेखी की जानी चाहिए। सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि संवैधानिक सवालों पर बहस के लिए ताजा हलफनामे पर निर्भर नहीं रहा जाएगा। पीठ ने यह बयान आदेश में दर्ज किया।

सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच ने आदेश में दर्ज किया- "सॉलिसिटर जनरल ने सूचित किया है कि हालांकि केंद्र ने अधिसूचना के बाद के घटनाक्रम पर अपना नजरिया देते हुए एक अतिरिक्त हलफनामा दायर किया है, लेकिन हलफनामे के कंटेंट का संवैधानिक मुद्दों पर कोई असर नहीं है और इस प्रकार उस मकसद के लिए उस पर निर्भर नहीं रहा जा सकता है।"

बेंच ने निर्देश दिया कि सभी लिखित सबमिशन और संकलन 27 जुलाई, 2023 तक दाखिल किए जाने चाहिए। अधिवक्ता एस प्रसन्ना और कानू अग्रवाल को क्रमशः याचिकाकर्ताओं और उत्तरदाताओं के पक्ष से संकलन तैयार करने के लिए नोडल वकील के रूप में नामित किया गया।

वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने कोर्ट को सूचित किया कि जम्मू कश्मीर के आईएएस अधिकारी शाह फैसल और पूर्व छात्र नेता शहला राशिद याचिकाकर्ता के रूप में बने नहीं रहना चाहते हैं और अनुरोध किया कि उनके नाम याचिकाकर्ताओं की सूची से हटा दिए जाएं।

ये याचिकाएं 2 मार्च, 2020 के बाद पहली बार आज 11 जुलाई को पोस्ट की गईं, जब एक अन्य संविधान पीठ ने फैसला सुनाया कि मामले को सात-न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजना जरूरी नहीं है।

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2019 में जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा छीने जाने के 4 महीने के अंदर याचिकाएं दायर हो गई थीं। लेकिन मामला अब तक सूचीबद्ध नहीं हो सका था। हालाँकि, कई मौकों पर भारत के चीफ जस्टिस के सामने इसका उल्लेख किया गया। अप्रैल 2022 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना ने इसका जिक्र होने पर निश्चित जवाब देने से इनकार कर दिया था। उसी साल सितंबर में, चीफ जस्टिस यूयू ललित याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर सहमत हुए, लेकिन उनका कार्यकाल अल्पकालिक था। उनके उत्तराधिकारी और निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने मामले को दो अलग-अलग मौकों पर सूचीबद्ध करने की इच्छा व्यक्त की थी।

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क़मर वहीद नक़वी
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