सुप्रीम कोर्ट करीब चार साल बाद अब जम्मू-कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा छीने जाने के बाद उसे चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज 11 जुलाई से सुनवाई करेगा। एनडीटीवी के मुताबिक भारत के चीफ जस्टिस (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में पांच जजों की संवैधानिक पीठ इस मामले की सुनवाई करेगी। बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकांत हैं। एनडीए सरकार ने अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए को रद्द कर दिया था।
आर्टिकल 370 को रद्द करने के केंद्र के फैसले की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में 23 से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं। यह मामला करीब चार वर्षों से सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। तब से सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की शीघ्र सुनवाई के लिए कई बार उल्लेख किया जा चुका है।
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाएं 5-6 अगस्त, 2019 के राष्ट्रपति के आदेशों के साथ-साथ जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 को भी चुनौती देती हैं।
जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 के तहत अनुच्छेद 35 ए को जवाहरलाल नेहरू कैबिनेट की सलाह पर 1954 में राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने एक आदेश द्वारा शामिल किया था। लेकिन केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को नया आदेश संविधान के अनुच्छेद 370 (1) (डी) के तहत मिली पावर का प्रयोग करते हुए पारित किया। जिसके जरिए 1954 के राष्ट्रपति के उस आदेश को हटा दिया, जिससे जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा मिला था।
फिर 6 अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर को दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेशों (जम्मू कश्मीर और लद्दाख) में बांट दिया गया। इस बटंवारे को भी अदालत में चुनौती दी गई है।
इस आदेश में कहा गया कि भारतीय संविधान के प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू होंगे। सदर-ए-रियासत शब्द को खत्म कर दिया गया। इसके अलावा, जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के किसी भी संदर्भ को इसकी विधान सभा के संदर्भ के रूप में माना जाएगा।
उम्मीद है कि अदालत इस बात की जांच करेगी कि क्या संसद जम्मू-कश्मीर के लोगों की सहमति के बिना अनुच्छेद 370 को खत्म कर सकती है और क्या इसका दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजन संवैधानिक है।
केंद्र ने कल सोमवार को एक अतिरिक्त हलफनामा दायर किया जहां उसने कहा कि अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को खत्म करने के कदम से जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में "शांति का अभूतपूर्व युग" आया है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हलफनामे में कहा, "जम्मू-कश्मीर पिछले तीन दशकों से आतंकवाद का दंश झेल रहा था। इस पर अंकुश लगाने के लिए धारा 370 को हटाना ही एकमात्र रास्ता था।" हलफनामे में कहा गया है, "आज घाटी में स्कूल, कॉलेज, उद्योग सहित सभी आवश्यक संस्थान सामान्य रूप से चल रहे हैं। औद्योगिक विकास हो रहा है और जो लोग डर में रहते थे वे शांति से रह रहे हैं।"
मामले की आखिरी बार सुनवाई मार्च 2020 में पांच जजों की एक अलग बेंच ने की थी। उस सुनवाई में, बेंच ने मामले को सात जजों की बड़ी बेंच के पास भेजने से इनकार कर दिया था।
जून 2018 में भाजपा द्वारा महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ सत्तारूढ़ गठबंधन से बाहर निकलने के बाद जम्मू और कश्मीर राष्ट्रपति शासन के अधीन आ गया। तब से इस क्षेत्र में कोई विधानसभा चुनाव नहीं हुआ है।
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