दिल्ली में केजरीवाल सरकार ने झड़ोदा कलां में 27 अगस्त शनिवार को भगत सिंह आर्म्ड फोर्सेज प्रीपेटरी स्कूल की शुरुआत की है। इसका बहुत जोरशोर से प्रचार किया जा रहा है। इसी साल मार्च में केजरीवाल ने खुद ऐसे स्कूल की घोषणा की थी। मात्र पांच महीने में ऐसे स्कूल को हकीकत में बदलना महत्वपूर्ण है। यह स्कूल आम आदमी पार्टी के लिए दिल्ली और हरियाणा में गेम चेंजर साबित हो सकता है। हालांकि केजरीवाल सरकार का यह बहुत बेहतरीन कदम है, लेकिन इसके पीछे की राजनीति को भी समझा जाना जरूरी है। केजरीवाल का हर कदम बीजेपी के वोट बैंक पर हमला बनता जा रहा है, बीजेपी कई सारे कदम का विरोध तक कर पाने की हिम्मत नहीं जुटा पाई है। जिसमें भगत सिंह आर्म्ड फोर्सेज प्रीपेटरी स्कूल भी है।
अब ग़रीब से से ग़रीब परिवार के बच्चे भी सेना में ऑफ़िसर बनकर देश की सेवा कर सकेंगे। आज से दिल्ली सरकार का Armed Forces Preparatory School शुरू हो रहा है। इस स्कूल में बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ NDA आदि की चार साल तैयारी भी कराई जाएगी। pic.twitter.com/6MjFlD2Gdd
— Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) August 27, 2022
जाट और आर्मी
केजरीवाल के इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट का हरियाणा और जाट वोट बैंक से सीधा संबंध है। आम आदमी पार्टी ने 2024 में होने वाले हरियाणा विधानसभा चुनाव में अकेले दम पर चुनाव लड़ने का बहुत आक्रामक प्लान तैयार किया है। भगत सिंह आर्म्ड फोर्सेज प्रीपेटरी स्कूल उसी प्लान का हिस्सा है।
सेना में जाटों के नाम से एक पूरी रेजिमेंट है। देश में यूपी के बाद हरियाणा दूसरा ऐसा राज्य है जहां से सबसे ज्यादा युवक सेना में भर्ती हैं। सेना की भाषा में हरियाणा को आर्मी का टेक्सास बोला जाता है। दरअसल, अमेरिका में टेक्सास से सबसे ज्यादा युवक यूएस आर्मी में भर्ती होते हैं। देश की कुल आबादी का हरियाणा सिर्फ 2.09 है। लेकिन हरियाणा से या तो दिल्ली पुलिस और सेना में युवक भर्ती होते हैं या फिर वो खेल की दुनिया में नाम कमाते हैं। केजरीवाल ने हरियाणा के युवकों के खेल प्रशिक्षण का इंतजाम और स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी बनाने की पहल दिल्ली में की। और अब सेना में भर्ती की तैयारी पर फोकस किया है। वादा करने के बावजूद बीजेपी हरियाणा में स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी नहीं खोल पाई, जबकि मनोहर लाल खट्टर सरकार का दूसरा कार्यकाल चल रहा है।
दिल्ली में अगर जातिगत आंकड़ों की बात की जाए तो उसमें सबसे ज्यादा आबादी जाटों की है। इस संबंध में द हिन्दू अखबार ने 2013 में एक आंकड़ा अपनी रिपोर्ट में दिया था, जिसके मुताबिक दिल्ली में 10 फीसदी जाट, 9 फीसदी पंजाबी, 8 फीसदी वैश्य, 7 फीसदी गूजर और 4 फीसदी सिख हैं। इस आंकड़े को आए हुए नौ साल हो चुके हैं। उसके बाद इन आंकड़ों में बढ़ोतरी हुई होगी, कमी नहीं।
दिल्ली में अधिकांश जाट आबादी हरियाणा की है, जिसमें पश्चिमी यूपी के जाटों को मामूली हिस्सा है। दिल्ली में रह रहे जाट या तो दिल्ली पुलिस में है या अन्य सरकारी नौकरियों में है। जाटों में सिर्फ सरकारी नौकरी का ही क्रेज है।
केजरीवाल का ये प्रोजेक्ट दिल्ली के अलावा हरियाणा में उनके राजनीतिक मकसद को पूरा करने में भरपूर मदद करने जा रहा है। यह एक ऐसा प्रोजेक्ट है, जिसकी आलोचना करने की हिम्मत कोई राजनीतिक दल नहीं जुटा पाएगा। आम आदमी पार्टी हरियाणा के ट्विटर हैंडल दिल्ली सरकार के भगत सिंह आर्म्ड फोर्सेज स्कूल का जोरशोर से प्रचार कर रहे हैं। बीजेपी और कांग्रेस चाहते तो इसकी आलोचना इसके राजनीतिक मकसद के लिए कर सकते थे। लेकिन उन्होंने बड़ा दिल दिखाते हुए इस योजना का स्वागत भी नहीं किया। यानी बीजेपी और कांग्रेस इस योजना का प्रचार किसी भी रूप में करने में मददगार साबित नहीं होना चाहते। लेकिन इस काम को आप के ट्विटर हैंडल बखूबी कर रहे हैं। हरियाणा और दिल्ली में रह रहे जाट केजरीवाल की इस पहल से प्रभावित हो सकते हैं। जिसका असर वोट में तब्दील होने पर दिखाई देगा। उसकी यह जमीनी तैयारी आप की परिपक्व राजनीति की निशानी है।
केजरीवाल का देशभक्ति बजट
केजरीवाल सरकार ने इस बार जब अपना वार्षिक बजट पेश किया था तो उसे देशभक्ति बजट का नाम दिया था। उसमें 98 करोड़ रुपये आर्म्ड फोर्सेज प्रीपेटरी स्कूल जैसे प्रोजेक्ट के लिए रखे थे। उस समय बीजेपी और कांग्रेस ने केजरीवाल के देशभक्ति बजट का मजाक उड़ाया था। लेकिन आम आदमी पार्टी चुप रही। देशभक्ति बजट के पैसे में से 15 अगस्त के मौके पर दिल्ली में 500 जगहों पर तिरंगा झंडा लहराने की योजना बनाई गई और दिल्ली सरकार ने इसे कर दिखाया। मूल रूप से घर घर तिरंगा पीएम मोदी की घोषणा थी लेकिन दिल्ली में केजरीवाल ने उसे अपने अंदाज में पेश कर उस घोषणा का हाईजैक कर लिया। दिल्ली में बीजेपी घर घर तिरंगा पर कोई दावा तक नहीं कर सकी। इसी योजना में से भगत सिंह आर्म्ड फोर्सेज स्कूल पर भी खर्च किया गया है। इस योजना के लिए संसाधन दिल्ली सरकार के पास पहले से थे, बस उसने इसे एक ब्लूप्रिंट बनाकर और चीजों को तरतीब देकर पेश कर दिया है।
क्या है स्कूल की पूरी योजनाः यह स्कूल न सिर्फ सेना के तीनों अंगों जाने के लिए छात्रों को तैयार करेगा, बल्कि यहां पर राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) और अन्य सैन्य सेवाओं में प्रवेश के लिए तैयारी कराई जाएगी। अभी मौजूदा वक्त में भारत में 33 सैनिक स्कूल हैं लेकिन दिल्ली में एक भी सैनिक स्कूल नहीं है। पड़ोस में हरियाणा में सिर्फ दो सैनिक स्कूल हैं। तीसरे सैनिक स्कूल की घोषणा पांच साल पहले हुई थी लेकिन अभी तक एक ईंट भी नहीं रखी गई। सैनिक स्कूलों के एडमिशन में बहुत मारामारी है। हरियाणा के बच्चों को उन दो सैनिक स्कूलों में ठीक से प्रवेश नहीं मिल पाता। जबकि हरियाणा सेना में युवकों की भर्ती के मामले में दूसरे नंबर पर है।
स्कूल चूंकि नौवीं से बारहवीं तक है तो हर क्लास में 100 छात्रों का प्रवेश लिया जाएगा। इनमें से हर क्लास में 60 लड़के और 40 लड़कियां होंगी। स्कूल में प्रवेश का 50 फीसदी सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के छात्रों के लिए रिजर्व होगा। छात्रों की भर्ती एंट्रेंस टेस्ट होगी। जिसमें मैथ, अंग्रेजी और सामान्य ज्ञान शामिल हैं। सिर्फ एनडीए के स्टैंडर्ड के हिसाब से फिट छात्रों को ही प्रवेश मिलेगा।
भगत सिंह से क्या रिश्ता है
देश में तमाम राजनीतिक दल और संगठन शहीद-ए-आजम भगत सिंह का नाम भुनाने के लिए आतुर रहते हैं। आम आदमी पार्टी और केजरीवाल ने भी भगत सिंह का नाम आत्मसात कर लिया है। केजरीवाल की फोटो अक्सर जो सामने आती है, उसमें पीछे आंबेडकर और भगत सिंह की फोटो नजर आती है। गांधी गायब हैं। इसमें शक नहीं कि भगत सिंह के नाम पर आज भी युवा रोमांच से भर उठते हैं। यही वजह है कि दिल्ली सरकार के आर्म्ड फोर्सेज प्रीपेटरी स्कूल में भगत सिंह का नाम जोड़ा गया है। आम आदमी पार्टी यह तक प्रचार कर रही है कि भगत सिंह ने जो सपना देखा था, उसे अब केजरीवाल ने पूरा कर दिया है। हालांकि देश की आजादी के लिए भगत सिंह की कुर्बानी की तुलना इस प्रोजेक्ट से करना हास्यास्पद है।
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बीजेपी ने भी भगत सिंह को भुनाने की बहुत कोशिश की। बीजेपी या उसके पुरखों का देश की आजादी की लड़ाई में प्रत्यक्ष योगदान नहीं मिलता। सावरकर और श्यामा प्रसाद मुखर्जी की शिरकत काफी विवादों में आज भी है। सावरकर पर अंग्रेजों से माफी मांगने का आरोप है तो श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जिन्ना के साथ अविभाजित बंगाल में सरकार बनाने और हिन्दू महासभा का जिन्ना की दो राष्ट्र सिद्धांत से सहमति जताना इतिहास में दर्ज है। मुखर्जी जनसंघ के संस्थापक थे। बाद में जनसंघ और हिन्दू महासभा के लोग आरएसएस में समाहित हो गए और बीजेपी उसका राजनीतिक मुखौटा लेकर सामने है।
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