भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में ओड़िशा की ख्याति अगर किसी एक वजह से है तो वह है पुरी का जगन्नाथधाम मंदिर और यहां हर साल आयोजित होने वाली रथयात्रा। ओड़िशा के लोगों के आराध्य और गहरी आस्था के प्रतीक प्रभु जगन्नाथ के बिना ओड़िशा की कल्पना ही नहीं की जा सकती।
सदियों से हर साल जगन्नाथ पुरी में रथयात्रा महोत्सव बेहद भव्य तरीके से आयोजित होता है। इसमें शामिल होने के लिए राज्य के लाखों श्रद्धालुओं के साथ देश के अन्य राज्यों और विदेशों से भी हजारों की संख्या में जगन्नाथ प्रेमी भाग लेते हैं।
लेकिन अगले माह 23 जून को होने वाली रथयात्रा को लेकर इस बार संशय के बादल छाने से श्रद्धालुओं के साथ ही मंदिर के पुजारियों, प्रशासकों व सरकार में शामिल लोगों के माथे पर चिंता की गहरी लकीरें खिंची हुई हैं। इसकी वजह है अभी तक रथों का निर्माण कार्य प्रारंभ नहीं होना।
रथों को खींचने की है परंपरा
प्रभु जगन्नाथ उनके भाई बलराम और देवी सुभद्रा तीन अलग-अलग विशाल रथों पर विराजमान होकर अपनी मौसी मां के घर 9 दिन के प्रवास पर जाते हैं। आषाढ़ माह के शुक्लपक्ष के द्वितीय दिन (इस बार 23 जून) होने वाली इस यात्रा में लाखों भक्त इन रथों को खींचकर अपने को धन्य मानते हैं। परंपरा के अनुसार, इस यात्रा के लिए तीनों रथों का निर्माण कार्य अक्षय तृतीया (गत 26 अप्रैल) से शुरू हो जाता है।
रथ का निर्माण नीम की लकड़ी से किया जाता है। इस साल रथ निर्माण के लिए नयागढ़, घुमसुर व बौद्ध जिले के वनों से 361 खंड लकड़ी लाई गई है।
लेकिन इस वर्ष कोरोना महामारी की वजह से देश में लागू लॉकडाउन के कारण सभी धार्मिक आयोजनों पर रोक लगा दी गई है। इसका असर रथ निर्माण पर भी पड़ा है। हालांकि बाद में केंद्र सरकार ने अपने आदेश में संशोधन करते हुए रेड ज़ोन को छोड़कर बाक़ी जगहों पर निर्माण कार्य की अनुमति दे दी। पुरी जिला ग्रीन ज़ोन में होने की वजह से यहां पर भी निर्माण कार्य की छूट दी गई है।
श्रीजगन्नाथ मंदिर प्रबंधन समिति और पुरी के गजपति महाराज दिब्यसिंह देब के बीच 3 मई को हुई बैठक के बाद उन्होंने राज्य सरकार के क़ानून मंत्रालय को पत्र लिखकर तुरंत रथ निर्माण की अनुमति देने का अनुरोध किया। लेकिन अभी तक नवीन पटनायक सरकार ने उन्हें उत्तर नहीं दिया है।
पटनायक सरकार के रवैये से रथ निर्माण करने वाले शिल्पकार नाराज हैं। उनका कहना है कि रथ के निर्माण कार्य में बहुत विलंब हो चुका है और इसकी शुभ तिथियां भी निकल गई हैं। अब विधि-विधान के अनुसार रथ का निर्माण करना मुश्किल होगा।
सरकार की मंशा पर उठाए सवाल
जगन्नाथ प्रभु के रथ नन्दीघोष के मुख्य शिल्पकार बिजय कुमार महापात्र ने सरकार के अनिर्णय के प्रति ग़ुस्सा प्रकट करते हुए कहा, "निर्माण कार्य अक्षय तृतीया के दिन (26 अप्रैल) शुरू होना चाहिये था। वह शुभ दिन होता है। उसके बाद 11 दिन और बीत गये हैं। लेकिन सरकार चुप है। लगता है कि सरकार की रथयात्रा कराने की मंशा ही नहीं है।’
उन्होंने कहा, ‘अब अनुमति मिल भी गई तो इतने कम समय में तीन विशाल रथों का निर्माण बहुत कठिन कार्य होगा। प्रबंधन समिति ने मेरे साथ अन्य दो रथों के निर्माण कार्य से जुड़े तालध्वज के नरसिंह महाराणा एवं दर्पदमन के कृष्ण महाराणा को 4 मई को बुलाकर रथ निर्माण के लिए तैयार रहने को कहा था। हम 5 मई को सारे दिन प्रतीक्षा करते रहे पर कोई निर्णय नहीं हुआ।’
एक अन्य प्रमुख पूजक बिनायक दास महापात्र का कहना है कि सरकार नाटकबाजी बंद करे। मंदिर पूजक व सेवायत समिति के अध्यक्ष रबीन्द्र दास महापात्र ने कहा कि रथ निर्माण की अनुमति देने का अधिकार प्रबंधन समिति का है।
महापात्र ने कहा कि कोरोना महामारी की वजह से लगे कई प्रतिबंधों की वजह से राज्य सरकार से इस बारे में अनुमति मांगी गई थी लेकिन वह टालमटोल कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार स्पष्ट निर्णय ले।
‘केंद्र ले इस बारे में फ़ैसला’
रथ निर्माण शुरू होने में अब तक 11 दिन की देरी हो चुकी है। मंदिर प्रबंधन समिति इसमें और देर नहीं चाहती। इस बारे में अंतिम निर्णय पटनायक सरकार को लेना है। लेकिन पटनायक सरकार ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए इस मामले को केंद्र सरकार की झोली में डाल दिया। राज्य की नवीन सरकार ने केंद्र सरकार से निर्देश मांगा है कि रथ निर्माण का कार्य आरंभ किया जाये या नहीं।
अगर कहीं परिस्थितिवश रथयात्रा को टालना पड़ा तो यह पटनायक सरकार के लिए बड़ी शर्मिंदगी का कारण बन जायेगा। साफ है कि नवीन पटनायक अपयश मिलने की स्थिति में केंद्र सरकार को इसका भागीदार बनाना चाहते हैं।
भविष्य में यदि इस मामले में कोई राजनीति हुई, रथयात्रा में व्यवधान उत्पन्न हुआ तो मुख्यमंत्री नवीन पटनायक केंद्र पर दोषारोपण का मार्ग खुला रखना चाहते हैं।
केंद्र से सलाह-मशविरा किए बिना नवीन पटनायक ने राज्य में 30 अप्रैल तक लॉकडाउन बढ़ाने की घोषणा कर दी थी। लेकिन अब जिस मामले में राज्य सरकार को निर्णय करना है उसमें वह केंद्र सरकार को निर्देश देने को कह रही है। इसी का नाम राजनीति है।
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