लोकपाल की माँग को लेकर समाजसेवी अन्ना हज़ारे 30 जनवरी से एक बार फिर भूख हड़ताल पर बैठने जा रहे हैं। अन्ना ने कहा है कि जब तक उनकी माँगे पूरी नहीं होंगी वह अनशन नहीं तोड़ेंगे। पिछली बार तो अन्ना के आंदोलन ने तत्कालीन मनमोहन सरकार को झुकने को मज़बूर कर दिया था लेकिन सवाल यह है कि क्या वह मोदी सरकार को भी उसी तरह अपनी माँगों को लेकर झुका पाएँगे।
अन्ना आंदोलन के ही दबाव में यूपीए सरकार को दिसंबर, 2013 में लोकसभा और राज्यसभा में लोकपाल विधेयक पारित करवाना पड़ा था। 1 जनवरी, 2014 को राष्ट्रपति ने लोकपाल और लोकायुक्त क़ानून पर अपनी मुहर लगा दी थी। अन्ना 2011 में लोकपाल की माँग को लेकर दिल्ली के रामलीला मैदान में अनशन पर बैठे थे।
मोदी, क्या हुआ तेरा वादा?
बीजेपी ने 2014 में अपने चुनावी घोषणापत्र में मजबूत लोकपाल के गठन का वादा किया था। केंद्र की सत्ता में आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस की बात करते रहे लेकिन उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि सत्ता में आने के साढ़े चाल साल बाद भी उन्होंने लोकपाल का गठन क्यों नहीं किया? इसके अलावा गुजरात में 13 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद भी नरेंद्र मोदी ने लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं की।
केंद्र सरकार लंबे समय तक यह तर्क देती रही कि लोकपाल के चयन के लिए नेता प्रतिपक्ष की जरूरत है, जो मौजूदा सरकार में नहीं है और इसीलिए लोकपाल की नियुक्ति नहीं हो पा रही है।
फ़रवरी तक लोकपाल?
बाद में सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ कर दिया कि लोकपाल के चयन में लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष को लेकर कोई रुकावट नहीं आनी चाहिए और लोकपाल के गठन की प्रक्रिया जल्दी पूरी की जाए। लेकिन उसके बाद भी लोकपाल की नियुक्ति नहीं हुई।
इस मामले में पिछले साल आरटीआई के जरिये हैरान करने वाली जानकारी सामने आई। पता चला कि मोदी सरकार के सत्ता में आने के 45 महीने बाद मार्च, 2018 में लोकपाल चयन समिति की पहली बैठक हुई। इससे मोदी सरकार द्वारा लोकपाल नियुक्त करने के उसके वादे और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के उसके दावे पर सवाल खड़े होते हैं।
मोदी से नाराज़ अन्ना?
पिछले साल मार्च में अन्ना हज़ारे ने एक बार फिर एक हफ़्ते की भूख हड़ताल की थी। तब केंद्र की मोदी सरकार ने उन्हें आश्नवासन देकर मना लिया था लेकिन इस मामले में कोई प्रगति न होने के कारण अन्ना सरकार से बेहद नाराज़ हैं। अन्ना पहले भी कह चुके हैं कि मोदी सरकार ने न तो लोकपाल क़ानून को लागू किया और न ही भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कोई ठोस कदम उठाए।
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