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अफ़ग़ानिस्तान: तालिबान अगर फिर सत्ता में आया तो भारत पर क्या होगा असर?

दो दशक तक अफ़ग़ानिस्तान में डटे रहने के बाद अमेरिकी और नैटो देशों की फ़ौज़ें वहां से वापसी कर रही हैं और इस साल सितंबर तक सारे सैनिक इस मुल्क़ को छोड़ देंगे। उधर, तालिबान एक बार फिर से देश में अपनी पकड़ को मजबूत करता जा रहा है और अगर वह वहां की सत्ता में फिर से काबिज़ हो गया तो भारत पर इसका क्या असर पड़ सकता है, इस बारे में सत्य हिन्दी के कार्यक्रम ‘आशुतोष की बात’ में प्रोफ़ेसर एसडी मुनि ने विस्तार से अपनी बात कही। 

तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिका और भारत का भी दख़ल बंद हो जाएगा। भारत ने अफ़ग़ानिस्तान के पुनर्निर्माण में तीन अरब डालर से अधिक का निवेश किया है और वहां शांति व स्थिरता की बहाली में योगदान दिया है। 

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पूर्व राजदूत एसडी मुनि कहते हैं कि अगर तालिबान सत्ता में लौटेगा तो यह भारत के लिए बेहतर नहीं होगा। उन्होंने कहा कि अमेरिकी और नैटो देशों की सेनाओं के अफ़ग़ानिस्तान से चले जाने के बाद तालिबान सारे मुल्क़ पर कब्ज़ा कर सकता है और उन्होंने अमेरिका की हुक़ूमत के साथ वादा किया था कि वे अफ़ग़ानिस्तान में बनी व्यवस्था को क़ायम रखेंगे लेकिन अब उन्होंने इसे नकार दिया है। 

प्रोफ़ेसर एसडी मुनि ने क्या कहा, सुनिए- 

उन्होंने कहा कि तालिबान एक संगठित समुदाय नहीं है और अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा करने के बाद उनमें आपस में फूट पड़ सकती है और यह स्थिति पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान दोनों के लिए मुसीबत बनेगी। 

प्रोफ़ेसर मुनि ने कहा कि जब अमेरिका की हुक़ूमत ने यह एलान किया था कि वे तालिबान से बात करेंगे और इस मुल्क़ को छोड़कर चले जाएंगे तो उसके बाद से तालिबान ने 500 से ज़्यादा निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतार दिया है और ऐसा होना जारी है। 

विदेश मामलों के जानकार प्रोफ़ेसर मुनि ने कहा कि देखना होगा कि आने वाले दिनों में किस तरह की रूप-रेखा उभर कर आती है और इसमें जो तालिबान के समर्थक देश हैं- चीन, रूस, पाकिस्तान और कुछ हद तक ईरान, ये देश नई रूप-रेखा में किस तरह उलझते हैं, इस पर ही निर्भर करेगा कि तालिबान के सत्ता में आने का भारत पर क्या असर होगा। 

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे एसडी मुनि ने कहा कि चीन हो या पाकिस्तान, सभी मुल्क़ों के हक़ में यही रहेगा कि अफ़ग़ानिस्तान में किसी भी तरह का कट्टरपंथ न उभरे और स्थिरता वा शांति बनी रहे। उन्होंने इस बात की भी आशंका जताई कि तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफ़ग़ानिस्तान फिर से हिंसा के दौर से गुजर सकता है। 

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‘तालिबान से संपर्क ग़लत नहीं’

इस सवाल के जवाब में कि क्या भारत सरकार ने तालिबान से संपर्क किया है, क्या यह सही नीति है, प्रोफ़ेसर मुनि ने कहा कि वे इस बात को ग़लत नहीं मानते हैं कि तालिबान से संपर्क किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि तालिबान के गुटों में जो हमारे पुराने संपर्क हैं, उनको सक्रिय करना बुरी बात नहीं है और अलग-थलग पड़ जाना भी सही नहीं होगा क्योंकि इससे 3-4 बिलियन डॉलर का जो निवेश भारत सरकार ने वहां किया है, वह बर्बाद हो जाएगा। 

प्रोफ़ेसर मुनि ने इस बात पर जोर दिया कि जो भी ग्रुप अफ़ग़ानिस्तान में सत्ता में आए उसके साथ बातचीत की कोई न कोई खिड़की खुली रहनी चाहिए।
अफ़ग़ानिस्तान में कुल मिलाकर 34 सूबे और 420 से ज़्यादा ज़िले हैं। ज़्यादातर बड़े सूबों की राजधानियाँ अब भी अफ़ग़ान सरकार के क़ब्ज़े में हैं। लेकिन देश के एक चौथाई ज़िलों समेत क़रीब 40 प्रतिशत भूभाग पर तालिबान का क़ब्ज़ा हो चुका है। ऐसे में इस बात का डर है कि अगर तालिबान इस मुल्क़ पर पूरा कब्ज़ा कर लेगा तो वहां एक बार फिर से कट्टरपंथ का कब्ज़ा हो जाएगा।  
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क़मर वहीद नक़वी
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