पुलवामा हमले के बाद देश में बढ़ते हुए युद्धोन्माद और कुछ महीने बाद होने वाले चुनाव के मद्देनज़र यह सवाल अब सबके दिमाग को मथ रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अगला क़दम क्या होगा? वह पाकिस्तान से कैसे निपटेंगे और सरकार के पास क्या विकल्प हैं? क्या मोदी एक और सर्जिकल स्ट्राइक का रास्ता चुनेंगे, सीमित युद्ध करेंगे, बड़ा युद्ध लड़ेंगे, कूटनीति का इस्तेमाल कर पाकिस्तान को दुनिया में अलग-थलग करने की रणनीति अपनाएँगे, आर्थिक नाकेबंदी कराएँगे, ‘जैसा को तैसा’ की राह पर चल कर बलूचिस्तान-सिंध में विद्रोहियों को उकसाएँगे? ये सवाल इसलिए भी अहम हैं कि चुनाव का समय है। नरेंद्र मोदी ने विपक्ष में रहते हुए जिस तरह हर हमले के बाद सरकार को कटघरे में खड़ा किया और सत्ता में आने के बाद छद्म राष्ट्रवाद का नैरेटिव खड़ा कर दिया, तो अगर अब वह कुछ नहीं करेंगे तो वह ख़ुद कटघरे में घिर जाएँगे, उनसे सवाल पूछे जाएँगे और ठीक चुनाव के पहले वह यह जोखिम नहीं उठा सकते।
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एक और ‘सर्जिकल स्ट्राइक’?
उरी और पठानकोट हमलों के बाद साल 2016 में भारत ने पाकिस्तान की सीमा के अंदर चुनिंदा ठिकानों पर हमला किया, जिसे ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ कह कर काफ़ी प्रचारित किया गया। पर जल्द ही यह साफ़ हो गया कि इस हमले से भारत ने अपने ग़ुस्से का इज़हार तो कर दिया, पर इससे कोई रणनीतिक फ़ायदा नहीं हुआ।पाकिस्तान में आतंकवादी गुट और उनके कैंप पहले की तरह ही सक्रिय रहे, अज़हर मसूद और हाफ़िज सईद पहले से ज़्यादा मुखर होकर और खुल कर सामने आए और खुले आम भारत-विरोधी गतिविधियों में शामिल होने लगे। यानी सरकार ने अपनी पीठ भले थपथपा ली हो, देश को कोई फ़ायदा नहीं हुआ।
तो इस बार नरेंद्र मोदी क्या करेंगे? नियंत्रण रेखा से बहावलपुर स्थित जैश-ए-मुहम्मद के मुख्यालय की दूरी 195 किलोमीटर है, जिसे हमारी सेना हवाई हमले से ही निशाने पर ले सकती है। सड़क मार्ग से कमान्डो भेज कर ऑपरेशन करना मुमकिन नहीं है, न ही बोफ़ोर्स या किसी दूसरी तोप से गोलाबारी कर ठिकाने को नष्ट करना संभव है। हवाई हमला करना बेहद कठिन है क्योंकि पाकिस्तान के पास मजबूत एअर डिफ़ेन्स प्रणाली है, उन्हें पहले से भारत के हमले की आशंका है और वह निश्चित तौर पर इसके लिए तैयार होगा। भारत मिसाइल हमला कर सकता है, लेकिन पाकिस्तान के पास चीन से लिया हुआ इंटरसेप्टर मिसाइल है, जो मिसाइलों का पता लगा कर उसे हवा में ही मार सकता है। ऐसी कार्रवाई से बड़े स्तर का युद्ध भी भड़क सकता है। हवाई हमले या मिसाइल हमले में पाकिस्तान के नागरिक भी मारे जा सकते हैं।
सीमित युद्ध?
प्रधानमंत्री भले ही कहें कि सेना को पूरी छूट दे रखी है, पर क्या वह सीमित युद्ध का जोखिम उठा सकते हैं? संसद पर हमले के बाद दोनों देशों के बीच तनाव बहुत बढ़ गया था, भारत ने पाकिस्तान की सीमा के पास सैनिकों और युद्ध के साजो-सामान को इकट्ठा कर लिया था। पाकिस्तान ने भी ऐसा ही किया था। दोनों देशों की सेनाएँ पूरी तैयारी के साथ एक दूसरे की आँखों में आँखें डाले खड़ी रहीं। तनाव इतना बढ़ा कि विश्व समुदाय दोनों देशों को यह समझाने में लग गए कि परमाणु बमों से लैस देशों के बीच लड़ाई के बेहद ख़तरनाक नतीजे होंगे। अंत में दोनों ने अपनी-अपनी सेनाएँ वापस बैरकों में बुला लीं। लेकिन इससे कश्मीर समस्या को सुलझाने में कोई मदद नहीं मिली, आतकंवाद नहीं थमा। इसके पहले पाकिस्तान ने भारत पर करगिल का सीमित युद्ध थोपा था। पर सिर्फ़ उसकी बदनामी हुई और उसके सैनिक मारे गए थे, उसे हासिल कुछ नहीं हुआ था।क्या करे सरकार? : मोदी जी, पीएम बनने के बाद भी आप क्यों नहीं रोक पाए आतंकी हमले?
क्रिकेट-हॉकी खेलना बंद?
मुंबई हमलों के बाद भारत ने पाकिस्तान से बातचीत बंद कर दी, क्रिकेट-हॉकी खेलना बंद कर दिया। यदि भारत इस बार भी ऐसा करे तो उसे क्या हासिल होगा, यह सवाल उठता है। भारत में आवाज़ें उठने लगी हैं कि वह विश्व कप क्रिकेट में पाकिस्तान के साथ मैच न खेलें। पर इससे अधिक से अधिक यह होगा कि बग़ैर खेले ही पाकिस्तान को दो अंक मिल जाएँगे। यह तो पाकिस्तान को मदद करना हुआ। इससे विश्व कप में भारत को दिक्क़त होगी. पर उससे फ़ायदा क्या होगा?बातचीत बंद?
दोनों देशों के बीच बातचीत वैसे भी नहीं हो रही है। करतारपुर गलियारा खोलने के बहाने पाकिस्तान ने विश्व समुदाय को यह दिखाना चाहा कि वह तो तमाम मुद्दों का समाधान चाहता है, भारत ही ऐसा नहीं चाहता। यह तय हुआ कि मार्च में करतारपुर गलियारा और इस गलियारे से बग़ैर वीज़ा सिख तीर्थयात्रियों के आने-जाने पर बातचीत होगी। अब यह बातचीत नहीं होगी, यह लगभग तय है। इससे भारत अपने ग़ुस्से का इज़हार तो कर देगा, पर उसे कोई दूरगामी फ़ायदा होगा, ऐसा नहीं दिखता है।भारत अपने कूटनीतिक संपर्कों का इस्तेमाल कर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए मुसीबतें खड़ी कर सकता है, इसकी संभावना है, लेकिन इसके नतीजे भी सीमित ही होंगे। भारत ने पाकिस्तान को दिया ‘मोस्ट फ़ेवर्ड नेशन’ स्टेटस वापस ले लिया। इसके साथ ही उसने पाकिस्तानी सामानों पर आयात शुल्क दोगुना कर दिया।
भारत-पाकिस्तान के बीच दोतरफा व्यापार प्रभावित होगा, यह तय है। लेकिन दोनों देशों के बीच व्यापार बहुत ही कम है। बीते साल दोनों देशों का कुल व्यापार लगभग 2.60 अरब डॉलर था, यह पाकिस्तान के अंतरराष्ट्रीय व्यापार का लगभग 2 प्रतिशत है। यह व्यापार न हो तो पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी, ऐसा नहीं है।
आर्थिक नाकेबंदी?
भारत अपनी कूटनीति का इस्तेमाल कर इस्लामाबाद की आर्थिक नाकेबंदी कर दे, यह मुमकिन है। पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से 8 अरब डॉलर का क़र्ज़ मिलना है। लेकिन आईएमएफ़ को लगता है कि पाकिस्तान उसके दिए पैसे का इस्तेमाल चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे की परियोजनाओं के भुगतान में कर सकता है। यानी जिस काम के लिए पैसे पाकिस्तान को मिलेंगे, उस पर नहीं किसी और काम पर वह ख़र्च होगा।अमेरिका से पाकिस्तान के रिश्ते अभी तनावपूर्ण है। आईएमएफ़ में सबसे ज़्यादा पैसा देने वाला देश अमेरिका है, वह अड़ंगा डाल दे तो पाकिस्तान को पैसे नहीं मिलेंगे। इससे इस्लामाबाद को दिक्कत होगी। भारत अमेरिका पर दबाव डाल कर पाकिस्तान के लिए परेशानी पैदा कर सकता है।
हालाँकि इसकी भरपाई सऊदी अरब, चीन और संयुक्त अरब अमीरात से मिलने वाले पैसे से हो सकती है। रियाद ने पाकिस्तान में 20 अरब डॉलर के निवेश के क़रार पर इसी हफ़्ते दस्तख़त किया है। इसके अलावा यूएई ने 5 अरब डॉलर निवेश का आश्वासन दिया है। इससे पाकिस्तान को राहत मिलेगी। पर निवेश होने, परियोजना लगने और अर्थव्यवस्था पर उसका असर पड़ने में अभी कई साल लग जाएँगे। पाकिस्तान को तुरन्त पैसे चाहिए।
फ़ाइनेंशियल एक्शन टास्क फ़ोर्स की ‘ग्रे लिस्ट’ में पाकिस्तान पहले से है। एफ़एटीएफ़ को तय करना था कि पाकिस्तान को काली सूची में ले जाना है या नहीं, लेकिन शुक्रवार को एफ़एटीएफ़ ने घोषणा की कि पाकिस्तान ‘ग्रे लिस्ट’ में ही रहेगा। यानी उस पर छह महीने और निगरानी रखी जाएगी। अब अभी तो नहीं, लेकिन छह महीने बाद भारत अगर पाकिस्तान को काली सूची में डलवा पाने में सफल हो सके तो पाकिस्तान की अर्थव्यव्था वाकई चरमरा जाएगी। यह टास्क फ़ोर्स मनी लॉन्डरिंग और आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले या उनके ख़िलाफ़ ठोस कार्रवाई न करने वाले देशों पर निगरानी रखता है।
कुल मिला कर दो ही रास्ते बचते हैं, पाकिस्तान की आर्थिक नाकेबंदी और विश्व समुदाय में उसे अलग-थलग करना। लेकिन इन उपायों के नतीजे देर से दिखेंगे। बीजेपी और नरेंद्र मोदी को तुरंत नतीजा चाहिए ताकि वह सीना ठोक कर और छाती चौड़ी कर चुनाव के मैदान में उतर सकें। फिर क्या उपाय है? देश के सामने यह यक्ष प्रश्न बन कर खड़ा है।
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