क्या ईशनिंदा के मामले में भारत पाकिस्तान के रास्ते चल रहा है? क्या यहाँ भी पाकिस्तान की तरह ही ईशनिंदा के लिए अलग क़ानून लागू होगा? क्या भारत में भी उसके तहत धर्म ग्रंथों की बदअदबी के मामले में दोषी पाए गए व्यक्ति को आजीवन कारावास या मौत की सज़ा मिलेगी?
भारत में कट्टरता जिस तरह बढ़ती जा रही है, उसे देखते हुए ये सवाल मौजूं तो हैं ही, डरावने भी हैं और इनका जवाब उससे भी ज़्यादा भयावह है।
पंजाब में पहले अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर और उसके चौबीस घंटे के अंदर कपूरथला में सिखों के पवित्र धर्म ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब के साथ बेअदबी की कथित कोशिश के मामले में जिस तरह पीट-पीट कर दो लोगों को मार डाला गया, उसके बाद ये सवाल उठ रहे हैं।
सियालकोट की वारदात
बता दें कि पाकिस्तान में ईशनिंदा के आरोप में लोगों को पीट-पीट कर मार डाले जाने की वारदात बीच-बीच में होती रहती है। कुछ दिन पहले ही पाकिस्तानी पंजाब के सियालकोट में रेडीमेड कपड़े बनाने के एक कारखाने में काम करने वाले एक व्यक्ति की भीड़ ने पीट-पीट कर हत्या कर दी थी।
अमृतसर और कपूरथला की घटनाएं बिल्कुल वैसी ही हुई हैं। अंतर सिर्फ इतना है कि वह पाकिस्तान था और कुरान के अपमान का आरोप था, ये मामले भारत के हैं और यहां गुरु ग्रंथ साहिब के अपमान का मामला है।
गृह मंत्री को चिट्ठी
अमृतसर और कपूरथला की वारदातों के बाद उप मुख्यमंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को चिट्ठी लिखी है। उन्होंने उस चिट्ठी में कहा है कि 2018 में पंजाब विधानसभा ने धर्म ग्रंथों की बेअदबी रोकने से जुड़े दो विधेयक पारित किए थे, जो राष्ट्रपति के पास पड़े हुए हैं। रंधावा ने कहा है कि केंद्र सरकार राष्ट्रपति से आग्रह करे कि वे इन विधेयकों पर दस्तख़त कर दें।
“
पंजाब में पवित्र धर्म ग्रंथों से बेअदबी बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है और भारतीय दंड संहिता की धारा 295 और 295 ए के प्रावधान इस स्थिति से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
केंद्रीय गृह मंत्री को लिखी चिट्ठी का अंश
पंजाब विधानसभा से पारित इस विधेयक में गुरु ग्रंथ साहिब, श्रीमदभागवतगीता, बाइबिल और क़ुरान से बेअदबी करने वालों को अधिकतम उम्र क़ैद की सज़ा देने के प्रावधान हैं।
इस तरह के क़ानून की माँग सिख ही नहीं, मुसलिम समुदाय के लोग भी कर रहे हैं।
क्या कहना है मुसलमानों का?
ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने 'पवित्र लोगों के प्रति बढ़ रहे अपमान' पर चिंता जताते हुए इसकी माँग की है।
बोर्ड के महासचिव मौलाना सैफ़ुल्ला रहमानी ने कहा कि सभी धर्मों को इसके तहत लाया जाए और 'सभी धार्मिक व्यक्तियों, पवित्र धर्म ग्रंथों और धर्मों की रक्षा उन पर होने वाले हमलों से की जाए।'
मौलाना ने कहा कि कानपुर में बोर्ड की एक बैठक हुई, जिसमें यह फ़ैसला किया गया। उन्होंने सभी धर्मों की बात कही, पर साफ है कि उनका मक़सद इसलाम के ख़िलाफ़ होने वाली टिप्पणियों को रोकना और ऐसा करने वालों को सज़ा दिलाना है।
ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने एक बयान में कहा, "भारत ऐसा देश है, जहाँ कई धर्म हैं और सभी नागरिकों को अपने धर्म का पालने करने और उसके अनुरूप काम करने की छूट की गारंटी दी गई है।"
पाकिस्तान में ईशनिंदा क़ानून
पाकिस्तान में ज़िया-उल हक़ के सैन्य शासन के दौरान जब कट्टरपंथी ताक़तों को बढावा मिला, सलाफ़ी इसलाम का प्रभाव बढ़ा और सऊदी अरब की मदद से धड़ल्ले से मदरसे खुलने लगे, ज़्यादा से ज़्यादा मसजिदें बनने लगीं, ईशनिंदा क़ानून को नया बल मिला।
इसमें 1980 से 1986 के बीच और धाराएँ शामिल की गईं। सरकार इसलामीकरण करना चाहती थी और वर्ष 1973 में अहमदिया समुदाय को ग़ैर-मुसलिम समुदाय घोषित किया गया था।
ब्रितानी शासनकाल के दौरान बनाए गए ईशनिंदा क़ानून के तहत अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी पूजा करने की वस्तु या जगह को नुक़सान या फिर धार्मिक सभा में खलल डालता है तो उसे सज़ा देने का प्रावधान था। अगर कोई किसी की धार्मिक भावनाओं का अपमान बोलकर या लिखकर या कुछ दृष्यों से करता है तो वह भी गैरक़ानूनी माना गया।
इस क़ानून के तहत एक से 10 साल तक की सज़ा दी सकती थी, जिसमें जुर्माना भी लगाया जा सकता था। वर्ष 1980 की शुरुआत में पाकिस्तान की दंड संहिता में धार्मिक मामलों से संबंधित अपराधों में कई धाराएँ जोड़ दी गईं।
अपनी राय बतायें