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फाइल फोटो

9.2 लाख किलोमीटर का सफर तय कर पृथ्वी के क्षेत्र से बाहर गया आदित्य एल- वन

भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने बताया है कि सूर्य की जानकारी एकत्र करने के लिए अंतरिक्ष में गया उसका आदित्‍य एल - वन मिशन पृथ्वी के प्रभाव क्षेत्र से सफलतापूर्वक निकल चुका है। इसरो ने बताया कि आदित्‍य- एल वन पृथ्वी से 9.2 लाख किलोमीटर से ज्‍यादा की दूरी तय कर चुका है। 
अब यह सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंज प्वाइंट 1 (एल1) की ओर आगे बढ़ते हुए अपना रास्ता तलाश रहा है। इसरो ने शनिवार 30 सितंबर को इस मिशन को लेकर यह अपडेट जानकारी साझा की है।  इसने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा है कि यह लगातार दूसरी बार है जब इसरो किसी अंतरिक्ष यान को पृथ्वी के प्रभाव क्षेत्र के बाहर भेज सका है।इससे पूर्व पहली बार  5 नवंबर 2013 को मंगल ऑर्बिटर मिशन में इसरो को यह सफलता मिली थी।

बीते 19 सितंबर को इसरो ने आदित्य एल- वन अंतरिक्षयान को ट्रांस-लैग्रेंजियन पॉइंट वन में इंसर्ट किया था। इसके लिए अंतरिक्ष यान के थ्रस्टर कुछ देर के लिए फायर किए गए थे। यह यान करीब 110 दिन बाद जनवरी 2024 में एल - वन पॉइंट पर पहुंचेगा। आदित्य एल वन मिशन को 2 सितंबर को 11.50 बजे श्रीहरिकोटा के अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया गया था।  यह PSLV-C57 के XL वर्जन रॉकेट के जरिए श्रीहरिकोटा स्थित के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च हुआ था।  

देश का पहला सूर्य मिशन है आदित्य एल - वन 

आदित्य एल- वन देश का पहला सूर्य मिशन है। इसे अंतरिक्ष में भेजने का मकसद सूर्य से जुड़ी जानकारियां एकत्र करना है। उम्मीद की जा रही है कि इसके द्वारा अंतरिक्ष से सूर्य से संबंधित कई ऐसी जानकारियां सामने आएंगी जो सूर्य को लेकर हमारी समझ को बढाएंगी। उर्जा से संबंधित कई नई खोज करने में भी इससे मदद मिल सकती है। 
अपनी मंजिल की ओर लगातार बढ़ यह मिशन करीब 15 लाख किलोमीटर दूर सूर्य और पृथ्वी के बीच स्थित एल - वन प्वाइंट तक जाएगा। यह ऐसा प्वाइंट है जहां से बिना किसी बाधा के सूरज को लगातार देखा जा सकता है। इसका कारण है कि यहां से सूर्य बिना किसी ग्रहण के दिखता है। 
इस स्थान से सूर्य की गतिविधियों और अंतरिक्ष के मौसम पर नजर रखी जा सकती है। यह एक ऐसा प्वाइंट है जहां सूर्य और पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बलों का संतुलन होने के चलते वस्तुएं ठहर सकती हैं। इससे ईंधन की खपत भी कम होती है।
इसरो का यह मिशन अगर कामयाब होता है तो सूर्य की कई अहम जानकारियां सामने आएंगी। माना जा रहा है कि इस मिशन से मिलने वाली जानकारियां सौर उर्जा को लेकर भविष्य की रिसर्च का रास्ता भी साफ होगा।  यह मिशन 6 जनवरी 2024 को एल प्वाइंट तक पहुंचेगा। 
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23 अगस्त को चंद्रयान -3 पहुंचा था चांद पर 

बीते 23 अगस्त को भारत का चंद्रयान -3 मिशन चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सफलता पूर्वक पहुंचा था। वहीं 4 सितंबर को चंद्रयान-3 मिशन के विक्रम लैंडर को स्लीप मोड में डाल दिया गया था। इससे पहले प्रज्ञान रोवर को भी स्लीपिंग मोड में डाल दिया गया था। 
भारत दुनिया का चौथा देश है जिसने चांद पर अपना मिशन भेजा है। वहीं भारत दुनिया का पहला देश है जिसने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर अपना मिशन सफलता पूर्वक लैंड कराने में सफलता पाई है। भारत की सफलता इसलिए भी खास थी कि भारत ने काफी कम खर्च में अपना चंद्रयान-3 चांद पर भेजने में कामयाबी पाई थी। चंद्रयान-3 के चांद पर उतरने का समय हो या इसके लैंडर और रोवर में लगे कैमरों ने जब चांद पर चहलकदमी करते हुए तस्वीरें भेजी थी तब सारे देश ने उसे बड़ी ही उत्सुकता से देखा था।  
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चंद्रयान - 3 मिशन ने भेजी नई जानकारियां 

चांद पर जाने के बाद विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर ने धरती पर वैज्ञानिकों को कई अहम डेटा भेजे हैं। इन डेटा के आधार पर चांद से जुड़ी कई जानकारियां सामने आई हैं। चांद की सतह पर  29 अगस्त को ऑक्सीजन, एल्युमीनियम, कैल्शियम, आयरन, टाइटेनियम और क्रोमियमकी,  मैगनीज और सिलिकॉन की मौजूदगी का भी पता चला था। 
जबकि चांद पर हाइड्रोजन की खोज करने की कोशिश जारी है। इन खोजों का महत्व इसलिए भी है कि भविष्य में यह चांद को लेकर और अधिक अनुसंधान का रास्ता तैयार करेंगी। वहीं 28 अगस्त को चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर में लगे चास्टे पेलोड ने चंद्रमा के तापमान को लेकर पहला ऑब्जर्वेशन भेजा था। इसने बताया था कि चंद्रमा की सतह और उसकी अलग-अलग गहराई में जाने पर तापमान में काफी अंतर है।
इसके द्वारा भेजी गई जानकारी के मुताबिक चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर तापमान करीब 50 डिग्री सेल्सियस है। वहीं, 80 एमएम की गहराई में तापमान माइनस 10 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया है। चास्टे पेलोड में तापमान मापने के लिए 10 सेंसर लगे हैं, जो 100 एमएम की गहराई तक पहुंच सकते हैं।
चांद के दक्षिणी ध्रुव पर के तापमान और वहां की अन्य जानकारियों का पता चलना इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वैज्ञानिकों का मानना है कि चांद का यही वह हिस्सा है जहां भविष्य में इंसानों को बसाने की क्षमता हो सकती है। यहां सूर्य का प्रकाश काफी कम समय के लिए रहता है। वैज्ञानिकों का प्रयास है कि वह चांद की मिट्टी और वहां के वातावरण को लेकर ज्यादा से ज्यादा जानकारियां जुटाएं। 
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क़मर वहीद नक़वी
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