अडानी की पावर परियोजनाओं को लेकर श्रीलंका और बांग्लादेश में भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। बांग्लादेश ने अडानी पावर सहित प्रमुख बिजली उत्पादन अनुबंधों की "समीक्षा" में सहायता के लिए एक "प्रतिष्ठित कानूनी और जांच फर्म" को नियुक्त करने का निर्णय लिया है। अधिकारियों का कहना है कि इससे "संभावित पुन: बातचीत या अनुबंध रद्द हो सकता है।" इसी तरह श्रीलंका में भी खतरा टला नहीं है। वहां की संसद अब इस पर फैसला लेगी। बांग्लादेश सरकार ने कहा, “बिजली, ऊर्जा और खनिज संसाधन मंत्रालय की राष्ट्रीय समीक्षा समिति ने रविवार को अंतरिम सरकार से प्रमुख बिजली उत्पादन अनुबंधों की समीक्षा में सहायता के लिए एक प्रतिष्ठित कानूनी और जांच फर्म को नियुक्त करने के लिए कहा है।” बांग्लादेश ने 2009 और 2024 के बीच शेख हसीना शासन के दौरान अडानी सहित कई पावर कंपनियों को आमंत्रित किया था।
बांग्लादेश का कहना है कि “समिति वर्तमान में कई अनुबंधों की विस्तृत जांच में लगी हुई है। इनमें अडानी (गोड्डा) बीआईएफपीसीएल 1234.4 मेगावाट का कोयला आधारित बिजली संयंत्र शामिल है।” इसके अलावा पायरा (1320 मेगावाट कोयला), मेघनाघाट (335 मेगावाट दोहरा ईंधन), आशुगंज (195 मेगावाट गैस), बशखली (612) में बिजली संयंत्रों को इस सूची में जोड़ा गया है।
एक असाधारण प्रस्ताव में, जस्टिस मोयेनुल इस्लाम चौधरी के नेतृत्व वाली समिति ने कहा कि “हमें अन्य अनचाहे अनुबंधों का और विश्लेषण करने के लिए और समय चाहिए। समिति साक्ष्य एकत्र कर रही है जिससे अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता कानूनों और कार्यवाही के अनुरूप अनुबंधों पर संभावित पुनर्विचार या उन्हें रद्द किया जा सकता है।”
अडानी पावर लिमिटेड के एक प्रवक्ता ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हम बांग्लादेश के आंतरिक मामलों पर टिप्पणी नहीं करते हैं। हमारा पीपीए पिछले सात वर्षों से अस्तित्व में है और पूरी तरह से कानूनी है और सभी कानूनों का पूरी तरह से अनुपालन करता है। हम बिजली की आपूर्ति करके अपने कॉन्ट्रैक्ट दायित्वों को पूरा करना जारी रखे हुए हैं।
प्रोफेसर मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने इससे पहले 2017 में हुए अडानी समूह के साथ देश के बिजली खरीद समझौते (पीपीए) की फिर से जांच करने के लिए ऊर्जा और कानूनी विशेषज्ञों से मिलकर एक उच्च स्तरीय जांच समिति का गठन किया है।बांग्लादेश की समाचार एजेंसी यूएनबी ने बताया कि 19 नवंबर को जस्टिस फराह महबूब और जस्टिस देबाशीष रॉय चौधरी की दो जजों वाली पीठ ने सरकार से दो महीने के भीतर समिति की रिपोर्ट सौंपने को कहा था। इसके अलावा हाईकोर्ट ने सरकार को बिजली प्रभाग और अडानी समूह के बीच 25 साल के सौदे से संबंधित सभी दस्तावेज एक महीने के भीतर जमा करने का आदेश दिया था।
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