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अडानी समूह के चेयरमैन गौतम अडानी

अडानी-हिंडनबर्ग में SIT जांच नहीं, सेबी जांच पर भरोसाः सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट बुधवार को अडानी समूह के खिलाफ अमेरिका स्थित शॉर्ट-सेलिंग फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा लगाए गए आरोपों की अदालत की निगरानी में जांच की मांग करने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुना दिया। अडानी समूह को बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि वह रेगुलेटर व्यवस्था के क्षेत्र में दखल नहीं दे सकता है और हिंडनबर्ग की रिपोर्ट या ऐसी कोई भी चीज अलग जांच के आदेश का आधार नहीं बन सकती है। सेबी आगे बढ़ेगी और कानून के मुताबिक अपनी जांच जारी रखेगी। शीर्ष अदालत ने सेबी को तीन महीने के भीतर अपनी जांच पूरी करने का आदेश देते हुए कहा कि यह दिखाने के लिए कोई मेटिरियल नहीं है कि सेबी कदम उठाने में उदासीन था।

सुप्रीम कोर्ट ने सेबी से जांच ट्रांसफर करते हुए एसआईटी जांच से भी इनकार कर दिया।


सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2023 में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। अडानी समूह ने हिंडनबर्ग की सभी रिपोर्टों को हमेशा खारिज किया है। लेकिन उसके बाद अडानी से जुड़े कई विवाद सामने आए। बहरहाल, अडानी समूह को बुधवार को बड़ी राहत मिल गई है।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने चार याचिकाओं पर फैसला सुनाया। याचिकाएं वकील विशाल तिवारी, एमएल शर्मा और कांग्रेस नेता जया ठाकुर और अनामिका जयसवाल ने दायर की थीं।

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फैसला पढ़ते हुए कोर्ट ने कहा कि सेबी रेगुलेटर ढांचे में प्रवेश करने की शीर्ष अदालत की शक्ति सीमित है। एफपीआई और एलओडीआर नियमों पर अपने संशोधनों को रद्द करने के लिए सेबी को निर्देश देने के लिए कोई वैध आधार नहीं उठाया गया था। सेबी ने 22 में से 20 मामलों की जांच पूरी कर ली है। आदेश में कहा गया है कि वह अन्य दो मामलों की जांच तीन महीने के भीतर पूरी कर लेगी।

सुप्रीम कोर्ट ने ऑर्डर में कहा- ओसीसीपीआर की रिपोर्ट को सेबी की जांच पर संदेह के तौर पर नहीं देखा जा सकता। इसमें कहा गया है कि ओसीसीपीआर रिपोर्ट पर निर्भरता को खारिज कर दिया गया है और बिना किसी सत्यापन के तीसरे पक्ष संगठन की रिपोर्ट पर निर्भरता को सबूत के रूप में भरोसा नहीं किया जा सकता है।

अदालत ने कहा- "वैधानिक रेगुलेटर पर सवाल उठाने के लिए अखबारों की रिपोर्टों और तीसरे पक्ष के संगठनों पर निर्भर नहीं हुआ जा सकता। उन्हें सेबी जांच पर संदेह करने के लिए इनपुट के रूप में माना जा सकता है, लेकिन निर्णायक सबूत नहीं।"

क्या है मामलाः याचिकाकर्ताओं ने कहा कि सेबी जो अडानी समूह के खिलाफ आरोपों की जांच कर रहा था, उसने अडानी समूह के नियामक उल्लंघनों और बाजार में हेरफेर के लिए एक ढाल दी। सुप्रीम कोर्ट ने तब सेबी को मामले की स्वतंत्र रूप से जांच करने को कहा था।

मार्च में, सुप्रीम कोर्ट ने हिंडनबर्ग रिपोर्ट के मद्देनजर सेबी को अडानी समूह द्वारा प्रतिभूति कानून के किसी भी उल्लंघन की जांच करने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व जज जस्टिस ए. एम सप्रे की अध्यक्षता में छह सदस्यों वाली एक विशेषज्ञ समिति भी गठित की थी। मामले पर सुनवाई के दौरान अडानी-हिंडरबर्ग मामले की जांच पूरी होने में देरी को लेकर सेबी के खिलाफ एक याचिका भी दायर की गई। जिसमें  अदालत द्वारा निर्धारित समयसीमा का पालन नहीं करने के लिए मार्केट रेगुलेटर सेबी के खिलाफ अवमानना ​​कार्यवाही की मांग की गई थी।

भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने पहले भी सेबी पर लगे आरोपों पर असंतोष जताया था। चीफ जस्टिस ने कहा था- "सेबी एक वैधानिक निकाय है जिसे विशेष रूप से शेयर बाजार में हेरफेर की जांच करने का काम सौंपा गया है। क्या बिना किसी उचित सामग्री के एक अदालत के लिए यह कहना उचित है कि हमें सेबी पर भरोसा नहीं है और हम अपनी खुद की एसआईटी बनाएंगे?" सीजेआई ने यह टिप्पणी याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण के सामने की थी।
अडानी समूह पर संसद में विपक्ष ने भी काफी हमले किए। अडानी समूह के चेयरमैन गौतम अडानी और प्रधानमंत्री के अंतरंग संबंधों के आरोप भी लगाए गए। विपक्षी सांसदों ने आरोप लगाया था कि अडानी का कारोबार पिछले दस वर्षों में केंद्र सरकार के संरक्षण में बढ़ा है। जबकि देश के अन्य उद्योगपति पीछे चले गए। कांग्रेस का आरोप है कि अडानी-मोदी आरोप लगाने के बाद राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता छीन ली गई। जिसे बाद में कानूनी लड़ाई के जरिए फिर से हासिल किया गया। टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा के साथ भी यही हुआ। महुआ ने अडानी पर काफी आरोप लगाए थे। आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने अडानी पर आरोप लगाए तो उन्हें संसद में आने से रोका गया। कथित दिल्ली शराब स्कैम में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। वो अभी भी जेल में हैं। हर तारीख पर उनकी जमानत याचिका खारिज हो रही है।
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क़मर वहीद नक़वी
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