सोहराबुद्दीन शेख-तुलसीराम प्रजापति मुठभेड़ मामले में फ़ैसला हो गया। सभी 22 आरोपी बरी हो गए। अदालत ने कहा कि सोहराबुद्दीन केस में किसी तरह की साज़िश की बात साबित नहीं हुई। क्यों साबित नहीं हुई? मुंबई की विशेष सीबीआई अदालत के जज एस. जे. शर्मा ने अपने फ़ैसले में इसका कारण भी बताया। जज ने कहा कि 'मुझे खेद है कि अभियोजन पक्ष कोई ऐसा पुख़्ता सबूत और साक्ष्य नहीं ला सका, जिससे साज़िश साबित होती। मैं असहाय हूँ।"
यह मुक़दमा 13 साल तक चला। कुल 210 गवाह थे। जिसमें से 92 मुकर गए। पहले जस्टिस बृजगोपाल लोया इसी मामले की सुनवाई कर रहे थे, जिनकी नागपुर में संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु हो गई थी। जस्टिस लोया की मृत्यु के बाद जज एस. जे. शर्मा को यह मामला सुनवाई के लिए सौंपा गया।
सोहराबुद्दीन केस में गवाहों के लगातार मुकरते रहने को लेकर लगातार सवाल उठते रहे और बाद में जस्टिस लोया की मौत ने कई नए संदेहों को जन्म दिया। उनकी मौत किन परिस्थितियों में हुई, इसका रहस्य आज तक नहीं सुलझ सका है। जब जज लोया की रहस्यमय मृत्यु के मामले में मुंबई हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई शुरू की, तो सुप्रीम कोर्ट ने ख़ुद इस मामले को अपने हाथ में ले लिया और मुंबई हाईकोर्ट को इसकी सुनवाई करने से रोक दिया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जज लोया की मौत सामान्य थी और इसमें कोई और जाँच कराने की ज़रूरत नहीं है।
'I am helpless' Special CBI Judge SJ Sharma observed while referring to witnesses turning hostile and proof not being satisfactory against the 22 accused in Sohrabuddin Sheikh case https://t.co/AtePNzPNJu
— ANI (@ANI) December 21, 2018
सोहराबुद्दीन केस के आरोपियों को बरी करते हुए अदालत ने कहा कि 'सरकारी मशीनरी, जाँच एजेन्सी और अभियोजन पक्ष ने अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश की, लेकिन फिर भी अदालत के सामने संतोषजनक साक्ष्य नहीं आ सके और गवाह लगातार मुकरते गए। अगर गवाह बोलेंगे ही नहीं, तो अभियोजन की ग़लती क्या है?'
जज शर्मा ने कहा कि 'इस मामले में तीन लोगों की जान गई। उनके परिवारों के प्रति उन्हें अफ़सोस है। लेकिन क़ानून को सबूत चाहिए और अदालत सबूत और साक्ष्य से ही चलती है।'
गुजरात पुलिस का दावा था कि 26 नवंबर 2005 को सोहराबुद्दीन शेख़ की मुठभेड़ में हत्या कर दी गई थी। पुलिस के मुताबिक़, शेख़ आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से जुड़ा हुआ था और वह पीएम नरेंद्र मोदी की हत्या की साज़िश रच रहा था। मोदी उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री थे।
सीबीआई के मुताबिक़, तीन दिन बाद उसकी पत्नी कौसर बी को भी मार दिया गया था। 27 दिसंबर 2006 को सोहराबुद्दीन के सहयोगी तुलसीराम प्रजापति की गुजरात और राजस्थान पुलिस ने गुजरात - राजस्थान सीमा के पास चापरी में मुठभेड़ में गोली मार कर हत्या कर दी थी।
क्यों मुंबई में हुआ था केस स्थानांतरित?
अमित शाह कब हुए थे बरी?
मुंबई में केस ट्रांसफ़र होने पर जज लोया ने सुनवाई शुरू की थी। 31 अक्टूबर 2014 को शहर में ही मौजूद होने के बावजूद सुनवाई में शामिल नहीं होने पर जज लोया ने अमित शाह को चेतावनी दी थी। उन्होंने शाह को अगली सुनवाई में 15 दिसंबर 2014 को कोर्ट में मौजूद होने का आदेश दिया था। इस बीच जज लोया 30 नवंबर 2014 को अपने समकक्ष जज की एक बेटी की शादी में नागपुर गए थे और अगले ही दिन एक दिसंबर को उनकी मौत हो गई। जज लोया की जगह आए विशेष सीबीआई जज एम. बी. गोसावी ने 30 दिसंबर 2014 को सोहराबुद्दीन शेख मामले में अमित शाह को सभी आरोपों से बरी कर दिया था।राजनीतिक रूप से संवेदनशील केस क्यों?
दो कारणों से यह केस राजनीति से सीधे जुड़ा रहा है।- एक तो मुठभेड़ का कारण है, जिसमें सोहराबुद्दीन को गुजरात के तत्कालीन सीएम और फ़िलहाल पीएम नरेंद्र मोदी की हत्या की साज़िश रचने वाला करार दिया गया था।
- और दूसरा, फ़र्ज़ी मुठभेड़ के आरोपियों में कई राजनेताओं और बड़े पुलिस अफ़सरों के नाम जुड़े। इसमें बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का नाम भी था।
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