लद्दाख में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच 15 जून की रात जो हिंसक झड़प हुई थी उसमें 20 भारतीय जवानों के शहीद होने के अलावा 76 भारतीय सैनिक घायल भी हुए थे। इनमें से 18 जवानों की हालत स्थिर बताई गई है। यह मीडिया रिपोर्टों में सेना के सूत्रों से दावा किया गया है। हालाँकि 20 जवानों के शहीद होने की ख़बर 16 जून को ही दी गई थी, लेकिन इस बारे में कुछ नहीं बताया गया था कि सेना के जवान घायल भी हुए हैं या नहीं।
भारतीय सीमा में चीन की घुसपैठ और झड़प के बारे में देश को पूरी जानकारी नहीं देने के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे ही आरोप जवानों के बारे में लापता होने के बारे में भी लगते रहे थे। अब तक किसी भारतीय सैनिक के लापता नहीं होने के दावे किए जा रहे थे, लेकिन अब चीन ने गुरुवार शाम को ही बंधक बनाए गए भारत के 10 सैनिकों को रिहा किया है। इनमें एक लेफ़्टिनेंट कर्नल और 3 मेजर शामिल हैं।
1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद यह पहली बार है कि चीन ने भारतीय सैनिकों को बंधक बना लिया था। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, आनन-फानन में दोनों पक्षों के बीच चली बातचीत के बाद लाइन ऑफ़ कंट्रोल यानी एलएसी पर इन्हें भारतीय पक्ष को सौंपा गया। मंगलवार से लेकर गुरुवार तक मेजर जनरल स्तर पर तीन राउंड की बातचीत चली।
दरअसल, इस पूरे मामले में लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि लद्दाख में चीनी अतिक्रमण और भारतीय जवानों के साथ झड़प के मामले में जानकारी छुपाई जा रही है। इस मामले में तो एक दिन पहले ही विदेश मंत्री के बयान को लेकर भी बवाल हुआ था।
ताज़ा विवाद इस पर उठा है कि चीनी सैनिकों के साथ मुठभेड़ के दौरान भारतीय सैनिकों को कथित तौर पर निहत्थे क्यों भेजा गया। राहुल गाँधी ने सवाल पूछा कि 'हमारे निहत्थे जवानों को वहाँ शहीद होने क्यों भेजा गया?' इस पर जब विदेश मंत्री ने जवाब दिया तो और विवाद खड़ा हो गया।
राहुल के सवाल पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ट्वीट कर कहा है, 'आइये हम सीधे तथ्यों की बात करते हैं। सीमा पर सभी सैनिक हमेशा हथियार लेकर जाते हैं, ख़ासकर जब पोस्ट से जाते हैं। 15 जून को गलवान में उन लोगों ने ऐसा किया। फेसऑफ़ (झड़प) के दौरान हथियारों का उपयोग नहीं करना लंबे समय से परंपरा (1996 और 2005 के समझौते के अनुसार) चली आ रही है।'
लेकिन विदेश मंत्री के इस जवाब पर सेना के सेवानिवृत्त अफ़सरों ने ही सवाल खड़े कर दिए। रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट जनरल एच. एस. पनाग ने इस पर कहा कि यह तो सीमा प्रबंधन के लिए बनी सहमति है, रणनीतिक सैन्य कार्रवाई के दौरान इसका पालन नहीं होता है। उन्होंने कहा है कि जब किसी सैनिक की जान का ख़तरा होता है, वह अपने पास मौजूद किसी भी हथियार का इस्तेमाल कर सकता है।
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