भारत में जिस तरह से कुछ लोगों में सोशल मीडिया पर अंधाधुंध नफ़रत फैलाने और 'इसलामोफ़ोबिया' वाले पोस्ट डालने की बीमारी लगी है वह विदेशों में बसे कुछ भारतीयों में भी घर कर गई है। तभी तो संयुक्त अरब अमीरात यानी यूएई में भारतीयों द्वारा ऐसे पोस्ट डाले जाने पर तीन लोगों को या तो नौकरी से निकाल दिया गया है या फिर निलंबित कर दिया गया है। यूएई में अब तक ऐसे क़रीब आधा दर्जन लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की गई है। उन पर सोशल मीडिया पर 'इसलामोफ़ोबिक' पोस्ट करने के आरोप हैं। मुसलिम देशों में किसी धर्म के ख़िलाफ़ ऐसे पोस्ट करने को 'इसलाम की निंदा करने वाला' माना जाता है।
लेकिन हैरानी की बात यह है कि लगातार चेतावनी के बाद भी लोग ऐसे आपत्तिजनक पोस्ट करने से बाज़ नहीं आ रहे हैं। ख़ासकर तब जब वे उसी देश में रहकर नौकरी करते हैं जहाँ क़रीब-क़रीब पूरी आबादी मुसलिमों की है और जहाँ संघीय संविधान घोषित करता है कि इसलाम देश का आधिकारिक धर्म है। हालाँकि, वह संविधान स्थापित रीति-रिवाज़ों के अनुसार धर्म की स्वतंत्रता देता है और सरकार आमतौर पर व्यवहार में इसका सम्मान करती है। लेकिन सरकार किसी धर्म पर आपत्तिजनक टिप्पणी को स्वीकार नहीं करती है। दुनिया का कोई भी लोकतांत्रिक देश धर्म के आधार पर नफ़रत फैलाने को स्वीकार नहीं करेगा। भारत भी नहीं।
हालाँकि भारत में सोशल मीडिया पर अंधाधुंध नफ़रत फैलाने वाले और 'इसलामोफ़ोबिया' वाले पोस्ट डालने की शिकायतें आ रही हैं। सोशल मीडिया को छोड़िए, यहाँ तो खुलेआम सड़कों पर नफ़रत फैलाने की ख़बरें आई हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश के एक बीजेपी विधायक ने कह दिया था कि मुसलिम से सब्ज़ियाँ मत खरीदो। उस विधायक को नोटिस दिया गया। मुंबई में एक व्यक्ति ने डेलिवरी लेने से कथित तौर पर इसलिए इनकार कर दिया क्योंकि डेलिवरी देने वाला व्यक्ति मुसलिम था। थाने में इसकी रिपोर्ट दर्ज कराने के बाद उस व्यक्ति को गिरफ़्तार किया गया। कम से कम दो हॉस्पिटलों में धर्म के आधार पर भेदभाव करने की ख़बरें भी आई थीं। बाद में उन्हें सफ़ाई देनी पड़ी। हिमाचल प्रदेश में काम करने वाले जम्मू-कश्मीर के मज़दूरों पर हमला कर दिया गया। ऐसे अनगिनत मामले हुए।
दिल्ली के निज़ामुद्दीन में तब्लीग़ी जमात के कार्यक्रम होने और इसमें शामिल कई लोगों में कोरोना की पुष्टि होने के बाद से देश भर में नफ़रत फैलाने की ऐसी घटनाएँ बढ़ गईं। सोशल मीडिया पर तो नफ़रत का बेहद ही ख़तरनाक माहौल बना।
यूएई में भी सोशल मीडिया पर ऐसे ही धर्म पर टिप्पणियाँ करने वाले पोस्ट दिखने लगे। यही कारण है कि जब सोशल मीडिया पर 'इसलामोफ़ोबिक' पोस्ट डाले गए तो कार्रवाई की गई। गल्फ न्यूज़ ने शनिवार को एक रिपोर्ट में कहा कि शेफ रावत रोहित, स्टोरकीपर सचिन किंनीगोली और नकदी का काम संभालने वाले एक अन्य भारतीय पर कार्रवाई की गई।
रिपोर्ट में कहा गया था कि ऐसा लगता है कि भारतीय मिशन की ओर से दी गई चेतावनी का कोई असर नहीं पड़ा है क्योंकि सोशल मीडिया पर इसलामोफ़ोबिक टिप्पणियाँ करने वाले भारतीय आप्रवासियों की सूची लगातार लंबी होती जा रही है। बता दें कि 20 अप्रैल को ही यूएई में भारत के राजदूत पवन कपूर ने ऐसे आप्रवासियों को इस तरह के व्यवहार करने के ख़िलाफ़ चेतावनी दी थी।
रेस्तराँ चलाने वाले आज़ादिया ग्रुप के एक प्रवक्ता ने कहा है कि रोहित को निलंबित कर दिया गया है और अनुशासनात्मक जाँच की जा रही है। शारजाह की कंपनी न्यूमिक ऑटोमेशन ने कहा है कि उसने स्टोरकीपर सचिन को निलंबित कर दिया है और उसकी तनख़्वाह रोक दी गई है। धर्म का अपमान करने या अवमानना का दोषी पाए जाने पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। दुबई आधारित ट्रांसगार्ड समूह ने कहा है उसने अपने एक कर्मचारी को फ़ेसबुक पर इसलाम विरोधी संदेश पोस्ट करने के लिए नौकरी से निकाल दिया है। कंपनी के नियमों के अनुसार उसने कर्मचारी का नाम नहीं बताया है लेकिन इसने कहा है कि वह कर्मचारी विशाल ठाकुर के फ़र्ज़ी नाम से आपत्तिजनक पोस्ट लिख रहा था। आंतरिक जाँच में उस कर्मचारी के वास्तविक नाम का खुलासा हुआ।
बता दें कि पिछले महीने ही शारजाह आधारित एक व्यापारी सोहन रॉय ने अनजाने में धार्मिक भावनाएँ आहत करने के लिए माफ़ी माँगी थी। मार्च महीने में शेफ़ त्रिलोक सिंह को दुबई के एक रेस्तराँ से निकाल दिया गया था। उसने ऑनलाइन दिल्ली में नागरिकता क़ानून पर अपना विचार रखने के लिए छात्र को धमकी दी थी।
इतने लंबे समय से ऐसे पोस्ट डाले जाने और उन पर कार्रवाई होने के बावजूद ऐसे पोस्ट में कमी नहीं आ रही है।
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