ठीक 22 साल पहले। संसद पर आतंकवादी हमला हुआ था। उस वक्त भी संसद का शीतकालीन सत्र ही चल रहा था। लेकिन हंगामे की वजह से दोनों सदनों को कुछ देर के लिए स्थगित कर दिया गया था। स्थगन के आधे घंटा से ज़्यादा समय बीत चुके थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, विपक्ष की नेता सोनिया गांधी समेत तमाम सांसद निकल चुके थे। लेकिन तब भी 100 से ज्यादा बड़े लोग संसद भवन के भीतर मौजूद थे।
क़रीब पौने बारह बजे गृहमंत्रालय का फर्जी स्टीकर लगाए एक सफेद एम्बेसडर कार संसद भवन में घुसी थी। संसद भवन में जब कार घुसी थी तो वे गेट पर मौजूद सुरक्षाकर्मियों को चकमा देने में कामयाब रहे थे। कार के भीतर पांच लोग बैठे हुए थे। अंदर के रास्ते पर इनकी गाड़ी गलती से एक कार से टकरा गई थी।
देश के तत्कालीन डिप्टी पीएम और गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी भीतर ही थे। उपराष्ट्रपति कृष्णकांत संसद से निकल ही रहे थे जब उनके काफिले से आतंकियों की कार टकराई। टक्कर के बाद उस सफेद एम्बेसडर कार के भीतर से एके-47 राइफलें, ग्रेनेड लॉन्चर्स, पिस्टल और हैंडगंस का जखीरा लिए आतंकवादी बाहर निकले। पांचों ने बाहर निकलते ही गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। क़रीब 45 मिनट तक संसद परिसर जंग का मैदान बना रहा था। सुरक्षा के लिए तैनात जवानों ने पलटवार किया।
हमले में सुरक्षाकर्मियों समेत नौ लोग मारे गए थे, 18 घायल हुए थे। गनीमत रही कि कोई सांसद इन आतंकियों का निशाना नहीं बना। संसद की कार्यवाही स्थगित हुए क़रीब 40 मिनट हो चुके थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, विपक्ष की नेता सोनिया गांधी समेत तमाम सांसद निकल चुके थे। आख़िर में सुरक्षा बलों ने पाँचों आतंकवादियों को मार गिराया था।
संसद पर आतंकी हमले की जांच दिल्ली पुलिस ने की। भारत सरकार ने शुरू में लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद पर आरोप लगाया। हालांकि, लश्कर ने किसी तरह की भूमिका से इनकार किया।
संसद हमले के दो दिन बाद ही 15 दिसंबर 2001 को अफजल गुरु, एसएआर गिलानी, अफशान गुरु और शौकत हुसैन को गिरफ्तार कर लिया गया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने गिलानी और अफशान को बरी कर दिया था, लेकिन अफजल गुरु की मौत की सजा को बरकरार रखा। शौकत हुसैन की मौत की सजा को भी घटा दिया और 10 साल की सजा का फ़ैसला सुनाया।
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