राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार विशेषज्ञों द्वारा चुने गए वैज्ञानिकों को दिया जाना चाहिए या फिर किसी मंत्री की मनमर्जी पर? क़रीब 200 वैज्ञानिकों की आपत्ति से कुछ इसी तरह के सवाल खड़े होते हैं। सरकार ने जब नवगठित राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार की घोषणा की थी तब कहा था कि प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार समिति यानी आरवीपीसी पुरस्कार विजेताओं की पहचान करेगी। लेकिन अब सिफारिश मंत्री के पास भेजने के प्रावधान को लेकर आपत्ति जताई गई है।
दरअसल, मामला भारत के शीर्ष विज्ञान पुरस्कार, नया स्थापित राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार यानी आरवीपी का है। इसके लिए नामों का चयन किया गया। पुरस्कार पाने के लिए चयनित कुछ नामों को लेकर वैज्ञानिकों ने आपत्ति जताई है। लगभग 200 वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों ने इसको लेकर ख़त भी सरकार को लिखा है और 'गैर-शैक्षणिक लोगों पर विचार' किए जाने के बारे में चिंता जताई है। उन्होंने प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर अजय सूद को हाल ही में पत्र में लिखा है।
पत्र में आईआईएसईआर कोलकाता के पूर्व निदेशक सौमित्र बनर्जी और आईयूसीएए के पूर्व निदेशक नरेश दाधीच सहित वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि पुरस्कार विजेताओं पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री को अंतिम निर्णय देने से वैज्ञानिक अभ्यास के मूल सिद्धांतों को नुक़सान पहुँचता है और देश के अनुसंधान विकास में बाधा आ सकती है। वैज्ञानिकों ने इन मुद्दों को हल करने के लिए तत्काल कार्रवाई का आग्रह किया है।
इस पत्र पर कई शीर्ष वैज्ञानिक संस्थानों के पूर्व निदेशकों के साथ-साथ शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार विजेताओं जैसे कि आईआईएसईआर कोलकाता के पूर्व निदेशक सौमित्रो बनर्जी ने हस्ताक्षर किए हैं। वह एसएसबी पुरस्कार विजेता हैं और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के लिए आयोजित मार्च फॉर साइंस इन इंडिया के आयोजकों में से एक थे। इसमें भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान के पूर्व निदेशक जयंत मूर्ति और इंटर-यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स के पूर्व निदेशक नरेश दाधीच भी शामिल हैं। इसमें जाने-माने गणितज्ञ और एसएसबी पुरस्कार विजेता एसजी दानी और दीपेंद्र प्रसाद भी शामिल हैं।
अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार संयोग से तीन वैज्ञानिकों में से दो, राजू और शर्मा, पिछले साल यूएपीए पर चर्चा को अंतिम समय में रद्द करने के लिए आईआईएससी की आलोचना कर रहे थे। इसका नेतृत्व छात्र एक्टिविस्ट नताशा नरवाल और देवांगना कलिता करने वाली थीं। दोनों भौतिकविदों ने नागरिकता संशोधन अधिनियम और भीमा कोरेगांव मामले में एनआईए की कार्रवाई पर खुले पत्रों पर भी हस्ताक्षर किए थे।
176 वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों द्वारा 24 सितंबर को लिखे गए ताज़ा पत्र में कहा गया है, 'राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार निर्धारित करने की प्रक्रिया और मानदंड पूरी तरह से निष्पक्ष, पारदर्शी और बाहरी विचारों से मुक्त होने चाहिए।' पत्र में पुरस्कार विजेताओं की अंतिम सूची से कुछ वैज्ञानिकों के नाम बाहर करने के संभावित कारण पूछे गए हैं।
इसके अलावा पत्र में यह भी कहा गया है कि 26 शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार विजेताओं से पहली बार संपर्क करने के बाद सरकार ने पुरस्कार वाली वेबसाइट में बदलाव किए, इसमें चयन मानदंड को अपडेट करते हुए कहा गया कि आरवीपीसी की सिफारिशें विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री को भेजी जाएंगी।
ताज़ा पत्र में कहा गया है कि हालांकि यह समझा जाता है कि चयन समिति विजेताओं के नामों की सिफारिश राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री कार्यालय को करती है। पत्र में कहा गया है, 'हालांकि, नया यह है कि मंत्री के विवेक पर नामों को हटाया जा रहा है - ऐसा कुछ जो इन सभी वर्षों में सुना नहीं गया है।' पत्र में कहा गया है, यह दर्शाता है कि पुरस्कार विजेताओं का चयन अब गैर-शैक्षणिक विचार के आधार पर भी किया जाएगा। उन्होंने आगे कहा कि यह एक बड़ी चिंता की वजह है क्योंकि यह मंत्रियों के लिए विशेषज्ञ समितियों की किसी भी सिफारिश को खारिज करने के लिए बेरोकटोक वीटो का उपयोग करने की इजाजत देता है।
यह वैज्ञानिक और शैक्षणिक समुदाय द्वारा आरवीपी के लिए चयन मानदंडों पर चिंता व्यक्त करते हुए लिखा गया दूसरा पत्र है। पहला पत्र पिछले महीने शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार के 26 विजेताओं द्वारा लिखा गया था। राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार ने शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार सहित कई प्रसिद्ध वैज्ञानिक पुरस्कारों की जगह ली है। इसे पिछले महीने पहली बार प्रदान किया गया था। इस वर्ष चार श्रेणियों के तहत कुल 33 वैज्ञानिकों को सम्मानित किया गया।
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