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कोरोना के 10 'हॉटस्पॉट' की पहचान, दिल्ली, मुंबई, पुणे में ऐसे कई इलाक़े

स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश भर में ऐसी 10 जगहों की पहचान की है, जहाँ कोरोना संक्रमण की रफ़्तार असामान्य है और दूसरी जगहों से कहीं ज़्यादा कोरोना के मामले मिल रहे है। ‘हॉटस्पॉट’ के रूप में चिन्हित इन 10 जगहों में से 3 राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में हैं। 

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जिन 10 जगहों की पहचान ‘हॉटस्पॉट’ के रूप में की गई है, उनमें दिलशाद गार्डन और निज़ामुद्दीन दिल्ली में हैं तो दिल्ली से सटा इलाक़ा नोएडा भी इसी रूप में चिन्हित किया गया है।
इसके अलावा मेरठ, भीलवाड़ा, अहमदाबाद, कसरगढ़, पथनमथिट्टा, मुंबई और पुणे की पहचान भी इसी रूप में की गई है। 
बीते 24 घंटों में देश में कोरोना के दो सौ से अधिक मामले पाए गए हैं और 5 लोगों की मौत हो गई है। 

क्या होता है हॉटस्पॉट?

इंटीग्रेटेड डिजीज़ सर्वीलान्स प्रोग्राम के एक अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘सामान्य रूप से जिन जगहों पर 10 से अधिक मामले पाए जाते हैं, हम उन्हें ‘क्लस्टर’ कहते हैं। जिस जगह ऐसे कई क्लस्टर होते हैं, उसे हम ‘हॉटस्पॉट’ कहते हैं। कभी-कभी संक्रमण के मामले एक ही जगह होते हैं, पर कभी-कभी इतने दूर-दूर तक फैले होते हैं कि पूरे शहर को ही इसके तहत लाना होता है।’
उस अफ़सर ने अख़बार को यह भी कहा कि अहमदाबाद अपवाद है, वहाँ सिर्फ़ 5 मामले पाए गए, पर तीन लोगों की मौत हो गई। हमने अनुमान लगाया है कि संक्रमण के हर 100 मामलों में एक की मौत हो रही है। 

हॉटस्पॉट की निगरानी

स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, ‘हम उभरते हुए हॉटस्पॉट का अध्ययन कर रहे हैं। हम इन जगहों पर पैनी निगरानी रखेंगे और संक्रमण फैलने से रोकने के मजबूत कदम उठाएंगे।’
उन्होंने यह भी कहा कि भारत में ऐसे लोगों की संख्या बहुत ही कम है, जिनमें कोरोना के बाहरी लक्षण नहीं थे, पर जाँच करने पर उनमें संक्रमण पाया गया था। देश में अब तक 38000 से अधिक लोगों की जाँच की जा चुकी है। 
हॉटस्पॉट पर जाँच करने की वजह बताते हुए स्वास्थ्य विभाग के इस अधिकारी ने कहा कि 1 मौत के पीछे 100 संक्रमणों के मामले सामान्य हैं, पर इसके आधे मामले भी नहीं आ रहे है। इससे लगता है कि कहीं कुछ कुछ गड़बड़ है।

क्या है कंटेनमेंट ज़ोन?

उन्होंने यह भी कहा कि जाँच की रणनीति नहीं बदली जा रही है, पर इन इलाक़ों में घर घर जाकर जाँच करने में कोई कोताही नहीं बरती जा रही है। 
किसी क्लस्टर में संक्रमण को रोक कर रखने और उसे बाहर नहीं फैलने देने पर सरकार के स्पष्ट दिशा निर्देश हैं। लव अग्रवाल ने कहा कि यदि किसी इलाक़े में महामारी के बारे में पता लगाने में 24 घंटे से अधिक समय लगता है तो उसके 3 किलोमीटर के इर्द-गिर्द कंटेनमेंट ज़ोन बना दिया जाता है और उसके बाद के 7 किलोमीटर का बफ़र ज़ोन बनाया जाता है। बीच-बीच में इसकी समीक्षा भी की जाती है। 

निज़ामुद्दीन में क्या हुआ?

दिल्ली का निज़ामुद्दीन भी हॉटस्पॉट के रूप में चिन्हित किया गया है। इंडोनेशिया और मलेशिया से आए कुछ लोगों ने यहाँ एक धार्मिक समारोह में भाग लिया, उसके बाद ही यह हॉटस्पॉट के रूप में उभरा है। 
दिल्ली का दूसरा हॉटस्पॉट दिलशाद गार्डन है। वहाँ सऊदी अरब एक आदमी आया जो संक्रमित था, उसे एक डॉक्टर ने देखा, उस डॉक्टर ने मुहल्ला क्लिनिक में एक हज़ार लोगों को देखा। उसके बाद ही उसकी पहचान की जा सकी।

मामला मेरठ का

लगभग यही मामला मेरठ का है। यहाँ दुबई से एक आदमी आया, वह बस में बैठ कर शहर में अपने ससुराल गया। उसके बाद वह पास-पड़ोस के इलाक़ों में भी कई लोगों से मिल आया। समझा जाता है कि उसके परिवार के लोगों ने कई लोगों को संक्रमित किया होगा। 
इसी तरह स्वास्थ्य विभाग के लोगों का मानना है कि मुंबई में कई क्लस्टर बन रहे हैं। वहाँ जब एक अस्पताल में एक रिटायर्ड यूरोलॉजिस्ट की मौत हो गई और उसके बेटे को संक्रमित पाया गया, और यह भी पता चला कि कई लोग संक्रमित हो गए हैं, उस अस्पताल को ही बंद कर दिया गया। 
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क़मर वहीद नक़वी
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