साल 2017 के विधानसभा चुनाव में हिमाचल प्रदेश में बीजेपी को 44 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। जबकि कांग्रेस को 21 सीटों पर जीत मिली थी। हालाँकि, सीटों के मामले में दोनों दलों के बीच दोगुने से ज़्यादा का फासला दिखता है, लेकिन जब वोट प्रतिशत की बात आती है तो यह अंतर उतना नहीं है।
पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जहाँ क़रीब 49 फ़ीसदी वोट मिले थे वहीं कांग्रेस को 42 फ़ीसदी। लेकिन उससे पहले 2012 के विधानसभा चुनाव में तो यह स्थिति उलटी थी। बीजेपी को सिर्फ़ 39 फ़ीसदी वोट मिले थे और कांग्रेस को 43 फ़ीसदी।
2012 में वोट प्रतिशत का यह फासला सीटों में भी दिखा था। इस चुनाव में कांग्रेस को 36 सीटें मिली थीं जबकि बीजेपी को सिर्फ़ 26।
इससे पहले के विधानसभा चुनाव 2007 में बीजेपी कांग्रेस से आगे रही थी। तब बीजेपी को 41 सीटें मिली थीं और कांग्रेस को सिर्फ़ 23।
बीते साल 3 विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में कांग्रेस को जीत मिली थी।
उपचुनाव में हार के बाद बीजेपी में नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाओं का दौर शुरू हुआ था लेकिन पार्टी ने जयराम ठाकुर को ही चेहरा बनाकर चुनाव लड़ा। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा हिमाचल प्रदेश से ही आते हैं इसलिए बीजेपी इस राज्य को किसी भी कीमत पर नहीं खोना चाहती।
कांग्रेस ने इस साल अप्रैल में संगठन में बड़ा बदलाव करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की पत्नी और मंडी से लोकसभा सांसद प्रतिभा सिंह को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया था। जबकि वरिष्ठ नेता सुखविंदर सिंह सुक्खू को चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया था। गुटबाजी को दूर करने के लिए छोटे से राज्य हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस ने पंजाब और उत्तराखंड की तरह कार्यकारी अध्यक्ष भी नियुक्त किए थे।
कांग्रेस लंबे वक्त तक हिमाचल प्रदेश की सत्ता में रही है लेकिन वह गुटबाजी से परेशान है। कुलदीप सिंह राठौड़, सांसद प्रतिभा सिंह, वरिष्ठ नेता सुखविंदर सिंह सुक्खू, आशा कुमारी, रामलाल ठाकुर और मुकेश अग्निहोत्री के अपने-अपने गुट हैं। बीजेपी में भी गुटबाजी है और वहां पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गुट आमने-सामने दिखते हैं।
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