भारत की आबादी अगले साल दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश चीन से ज्यादा हो जाएगी। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। अभी तक चीन ही दुनिया के तमाम देशों में सबसे अधिका आबादी वाला देश है। लेकिन 2023 में स्थिति बदलेगी। यूएन ने सोमवार को विश्व जनसंख्या दिवस पर यह रिपोर्ट जारी की।
क्यों घट रही है चीन की आबादी
चीन ने 2016 में अपनी दशकों पुरानी एक बच्चे की नीति को खत्म कर दिया और इसे दो बच्चों की सीमा के साथ बदल दिया। हालांकि इसका कोई खास फायदा नहीं हुआ। इसके बाद मई 2021 में चीन ने इसे तीन बच्चों की सीमा कर दी। लेकिन चीन की आबादी उस रफ्तार से नहीं बढ़ी।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन के शहरों में बच्चों की परवरिश की लागत बढ़ने से चीन के कपल ज्यादा बच्चे पैदा करने से पीछे हट रहे हैं। चीन के सोशल मीडिया पर युवा लोगों का रुझान बताता है कि वे ज्यादा बच्चे नहीं चाहते।
मई 2021 में जारी की गई चीन की जनगणना से पता चला है कि पिछले साल (2020) लगभग 12 मिलियन बच्चे पैदा हुए थे - 2016 में 18 मिलियन से एक महत्वपूर्ण कमी और 1960 के बाद से दर्ज किए गए जन्मों की सबसे कम संख्या। यही वजह है कि चीन की आबादी भारत से कम होने की तरफ बढ़ रही है।
भारत में क्यों बढ़ रही है आबादी
चीन के मुकाबले भारत में कोई जनसंख्या नीति नहीं है। हालांकि इस पर विचार चल रहा है। जब बीजेपी विपक्ष में थी तो इसकी मांग करती रही है। वो पिछले आठ वर्षों से सत्ता में है लेकिन अभी आबादी को लेकर वो कोई नीति लागू नहीं कर पाई है। हालांकि कि कई बीजेपी शासित राज्यों में दो बच्चों वाले कपल को तमाम स्कीमों में ज्यादा छूट वगैरह देने की पहल की गई है। भारत में आबादी बढ़ने की कुछ खास वजहें इस तरह हैं-- भारत की आब-ओ-हवा (क्लाइमेट) बहुत गर्म है। गर्म आब-ओ-हवा में बच्चे ज्यादा पैदा होते हैं।
- अशिक्षा और जागरुकता का अभाव भी तमाम समूहों में बच्चों की आबादी को बढ़ा रहा है।
- गरीबी, बेरोजगारी भी आबादी को बढ़ाने में बहुत बड़े मददगार बने हुए हैं।
- परिवार नियोजन के तमाम सरकारी और गैर सरकारी उपाय होने के बावजूद लोगों का रवैया उसे लेकर सही नहीं है।
- तमाम सख्त कानूनों के बावजूद बाल विवाह जारी है। उन पर रोक नहीं लग पा रही है।
- धार्मिक अंधविश्वास भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं है। कई धार्मिक समूहों में ज्यादा बच्चे पैदा करने की मान्यता मिली हुई है।
और क्या है यूएन रिपोर्ट में
यूएन के जनसंख्या विभाग के आर्थिक और सामाजिक मामलों के संयुक्त राष्ट्र विभाग ने कहा कि ग्लोबल जनसंख्या 15 नवंबर, 2022 को आठ अरब तक पहुंचने का अनुमान है। रिपोर्ट के मुताबिक 1950 के बाद से ग्लोबल आबादी अपनी सबसे धीमी दर से बढ़ रही है, जिसकी दर 2020 में 1% से कम हो गई है।
यूएन का ताजा अनुमान बताता है कि दुनिया की आबादी 2030 में लगभग 8.5 बिलियन और 2050 में 9.7 बिलियन तक बढ़ सकती है। इसके 2080 के दौरान लगभग 10.4 बिलियन होने और 2100 तक उस स्तर पर बने रहने का अनुमान है।
2022 में दुनिया के दो सबसे अधिक आबादी वाले क्षेत्र पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशिया थे। जिसमें 2.3 बिलियन लोग थे, जो ग्लोबल आबादी का 29% प्रतिनिधित्व करते थे, और मध्य और दक्षिणी एशिया, 2.1 बिलियन के साथ, जो कुल विश्व जनसंख्या का 26% प्रतिनिधित्व करते थे।
2022 में 1.4 बिलियन से अधिक आबादी के साथ, चीन और भारत इन क्षेत्रों में सबसे बड़ी आबादी के लिए जिम्मेदार हैं।
2050 तक ग्लोबल जनसंख्या में अनुमानित वृद्धि का आधे से अधिक कांगो, मिस्र, इथियोपिया, भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान, फिलीपींस और तंजानिया के सिर्फ आठ देशों में केंद्रित होगा।
रिपोर्ट में कहा गया है, दुनिया के सबसे बड़े देशों में असमान जनसंख्या वृद्धि दर आकार के हिसाब से उनकी रैंकिंग को बदल देगी: उदाहरण के लिए, भारत 2023 में दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश होगा। रिपोर्ट के अनुसार, चीन की 1.426 अरब की तुलना में 2022 में भारत की जनसंख्या 1.412 अरब है।
अनुमान है कि 2050 में भारत में 1.668 बिलियन की आबादी होगी, जो सदी के मध्य तक चीन के 1.317 बिलियन लोगों से बहुत आगे है।
माइग्रेशन की वजह
रिपोर्ट में कहा गया है कि यह अनुमान है कि दस देशों ने 2010 और 2021 के बीच 1 मिलियन से अधिक प्रवासियों के माइग्रेशन का अनुभव किया। इनमें से कई देशों में, ये माइग्रेशन रोजगार की कमी के कारण थे, जैसे कि पाकिस्तान (2010-2021 के दौरान 16.5 मिलियन का शुद्ध माइग्रेशन), भारत (3.5 मिलियन), बांग्लादेश (2.9 मिलियन), नेपाल (1.6) मिलियन) और श्रीलंका (1 मिलियन)।
सीरियाई अरब गणराज्य (4.6 मिलियन), वेनेजुएला (बोलीवियाई गणराज्य) (4.8 मिलियन), और म्यांमार (1 मिलियन) सहित अन्य देशों में, असुरक्षा और संघर्षों ने दशक में प्रवासियों को दूसरे देशों में जाने को मजबूर किया है।
जिंदगी लंबी हुईः 2019 में लोगों के जीवन जीने की आयु 72 वर्ष से ज्यादा 72.8 वर्ष तक पहुंच गई। 1990 के बाद से लगभग 9 वर्षों का सुधार हुआ है। मृत्यु दर में और कमी के कारण 2050 तक लोग लगभग 77.2 वर्ष की औसत आयु जीने लगेंगे।
फिर भी 2021 में, सबसे कम विकसित देशों में औसतन लोगों की जिन्दगी सात साल पीछे रह गई।
स्वास्थ्य मैट्रिक्स और मूल्यांकन संस्थान (आईएचएमई) द्वारा वैकल्पिक दीर्घकालिक जनसंख्या अनुमान भी किए गए हैं।
अपने हाल के अनुमानों में, IHME ने अनुमान लगाया कि वैश्विक जनसंख्या 2100 में 8.8 बिलियन से से 11.8 बिलियन तक पहुंच जाएगी।
बहुत खुश हैं गुटारेस
विश्व जनसंख्या दिवस 11 जुलाई के मौके पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा, यह हमारी विविधता का जश्न मनाने का दिन है, यह हमारी मानवता को पहचानने और स्वास्थ्य में प्रगति पर आश्चर्य करने का अवसर है। यह महत्वपूर्ण है कि जीवनकाल बढ़ा है और नाटकीय रूप से मातृ एवं बाल मृत्यु दर में कमी आई है। लेकिन पृथ्वी नामक ग्रह के यह साझा देखभाल की जिम्मेदारी को बढ़ाता है।
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