एक राहत वाली खबर आई है। लैब में जानवरों और मानव कोशिकाओं पर किए गए अध्ययन से पता चला है कि ओमिक्रॉन कोरोना वायरस के डेल्टा वेरिएंट के मुकाबले कम खतरनाक है। सबसे बड़ी बात यह है कि सांस लेने में ज्यादा दिक्कत नहीं होती है।
चूहों पर किए गए परीक्षण से पता चला है कि ओमिक्रॉन सिर्फ नाक, गले और सांस की नली पर असर डालता है। यह फेफड़ों पर प्रभाव नहीं डालता है। जिससे सांस लेने में मरीज को तकलीफ महसूस नहीं होती।
इस मेडिकल स्टडी में कहा गया है कि कि कोरोना वायरस के डेल्टा वेरिएंट के मुकाबले ओमिक्रॉन से फेफड़े में इन्फेक्शन नहीं के बराबर होता है। इसी तरह पेट में जलन (inflammatory) भी पता नहीं चलती। कोरोना की दूसरी लहर में ज्यादातर मौतें सांस न लेने की वजह से हुई थीं। वेंटिलेटर लगने के बावजूद मौतें हुईं थीं।
नवंबर में जब साउथ अफ्रीका से पहले ओमिक्रॉन केस की खबर आई तो वैज्ञानिक सिर्फ यही अंदाजा लगा रहे थे कि कोरोना का नया वेरिएंट ओमिक्रॉन पहले आए तमाम वेरिएंट से कितना अलग हो सकता है। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के वायरोलॉजिस्ट डॉ रवीन्द्र गुप्ता का कहना है कि आप मात्र म्यूटेशन के आधार पर वायरस के बर्ताव का अंदाजा लगा नहीं सकते। यह बात दरअसल उन्होंने इस संदर्भ में कही कि जब ओमिक्रॉन के मामले सामने आए तो बस यही कहा जा रहा था कि ओमिक्रॉन बहुत म्यूटेट करता है।
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अब आई स्टडी से साफ हुआ कि ओमिक्रॉन म्यूटेट कितना भी करे, इससे खतरा डेल्टा वैरिएंट के मुकाबले कम है।
डॉ रवीन्द्र गुप्ता सहित तमाम वैज्ञानिक समूह पिछले एक महीने से इस पर स्टडी कर रहे थे। इन लोगों ने लैब में जानवरों के नाकों में स्प्रे के जरिए वायरस डाले, ताकि असर का पता लगाया जा सके।
पिछले बुधवार को जापानी और अमेरिकी वैज्ञानिक समूहों ने रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट में चूहों और अन्य जानवरों पर ओमिक्रॉन व अन्य वायरस के प्रभाव का अध्ययन किया गया था।
रिपोर्ट में कहा गया कि ओमिक्रॉन ग्रस्त चूहों औऱ अन्य जानवरों के फेफड़े बहुत कम तादाद में क्षतिग्रस्त हुए, बहुत कम का वजन घटा, ज्यादातर जिन्दा हैं।
हॉन्गकॉन्ग की लैब स्टडी में भी यही कहा गया है कि ओमिक्रॉन से जिन्दगी जाने का बहुत कम खतरा है। वहां की लैब ने मानव कोशिकाओं पर रिसर्च की थी। इसने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि डेल्टा वेरिएंट के मुकाबले ओमिक्रॉन बहुत धीरे-धीरे फैलता है। बता दें कि दक्षिण अफ्रीका में जब ओमिक्रॉन का पता चला तो यह तथ्य भी सामने आया था कि यह डेल्टा के मुकाबले बहुत धीरे-धीरे बढ़ता है। यही वजह है कि बोत्सवाना में बाद में ओमिक्रॉन के मामले बिल्कुल ही कम हो गए।
बेल्जियम के वैज्ञानिकों ने भी यही कहा कि डेल्टा के मुकाबले ओमिक्रॉन बहुत सुस्त रफ्तार से आगे बढ़ता है और शरीर को कम नुकसान पहुंचाता है। फेफड़ों पर इसका असर मामूली है।
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ब्रिटेन की स्टडी में कहा गया है कि ओमिक्रॉन का वायरल लोड बहुत कम है। फेफड़ों में नहीं फैलता है।
कुल मिलाकर ओमिक्रॉन से खतरा कम है। लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं है कि हम लोग एहतियात छोड़ दें। मास्क लगाना और भीड़ में जाने से बचने पर किसी भी तरह के वायरस से संक्रमित होने का खतरा कम रहता है।
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