कई कोरोना मरीज़ ऐसी मनोस्थिति में चले जा रहे हैं जो काफ़ी डरावनी स्थिति है। अस्पताल में वेंटिलेटर सपोर्ट पर रहे कई मरीज़ों को लगा कि उनकी हत्या की जा रही है। किसी को लगा कि उन्हें ज़िंदा जलाया जा रहा है। यह बिल्कुल डरावने सपने जैसा है। लेकिन नींद में नहीं बल्कि पूरी तरह जागते हुए। उन मरीज़ों को ऐसा महसूस हुआ जैसे ऐसी घटनाएँ उनके साथ घटीं, लेकिन वास्तव में घटी नहीं। यह एक ऐसी मानसिक स्थिति (delirium) होती है जब गंभीर बीमारी में बेहोशी या अचेतन अवस्था हो। इसे हलूसनैशन की स्थिति कह सकते हैं।
अमेरिका में किम विक्ट्री नाम की कोरोना मरीज़ के अनुभव पर न्यूयॉर्क टाइम्स ने रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसके अनुसार, किम विक्ट्री को लगा कि उन्हें बिस्तर पर लकवा मार गया था और ज़िंदा जला दिया गया था। तभी किसी ने उन्हें बचाया, लेकिन अचानक वह एक फैंसी क्रूज जहाज पर एक बर्फ की मूर्ति में बदल गईं। फिर वह जापान की एक प्रयोगशाला में एक प्रयोग की चीज बन गईं। फिर उन पर बिल्लियों ने हमला कर दिया।
अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान 31 वर्षीय विक्ट्री को ऐसे बुरे ख्याल लगातार आते रहे। उनको कोरोना बीमारी होने पर साँस लेने की गंभीर समस्या आ गई थी और उन्हें अस्पताल में वेंटिलेटर पर रखा गया था। कई बार वह इतनी बेचैन हो गई थीं कि एक बार उन्होंने ख़ुद ही वेंटिलेटर से साँस लेने वाली नली खींच दी थी तो एक बार वह बेड से नीचे गिर गई थीं। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद फ़्रैंकलिन में अपने घर पर रह रही विक्ट्री कहती हैं, 'यह बिल्कुल वास्तविक लगता था और मैं काफ़ी डर जाती थी।' अस्पताल से लौटने के दो महीने बाद भी विक्ट्री को लगता है कि वह चूहे के बिल में घुसती चली जा रही हैं और पता नहीं वह कब वापस आएँगी। वह अभी भी मानसिक तनाव से जूझ रही हैं।
ऐसा ही अनुभव उन कई मरीज़ों के साथ रहा है जिनकी हालत काफ़ी ज़्यादा गंभीर हो गई थी। रॉन टेम्को भी अस्पताल में भर्ती थे और क़रीब तीन हफ़्ते से वेंटिलेटर पर थे। ऑक्सीजन की नली लगी होने से वह कुछ बोल नहीं सकते थे तो नर्सों ने ज़ूम कॉल पर परिवार वालों से बात कराई। न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, 69 वर्षीय टेम्को ने अस्पताल के बेड पर पड़े-पड़े एक कागज पर एके-47 लिखा और इशारा किया कि उनकी गर्दन पर निशाना लगाएँ। तब टेम्को के बेटे ने बुदबुदाया, 'वह चाहते हैं कि हम उनको मार दें।' इस पर टेम्को की पत्नी ने दिलासा दिया और कहा- आप ठीक हो जाओगे।
60 दिन तक अस्पताल में रहने के बाद घर लौटे टेम्को कहते हैं कि वह इसलिए अपने परिवार को शूट करने को कह रहे थे क्योंकि उनकी मानसिक स्थिति अचेतन वाली अवस्था में थी और उन्हें यह हलूसनैशन हो रहा था कि उन्हें अगवा कर लिया गया है।
टेम्को ने कहा, 'मैं एक परनॉइक (मानसिक उन्माद) के दौर में था जहाँ मुझे लगा कि मेरे ख़िलाफ़ किसी तरह की साज़िश है।' टेम्को को यह भी हलूसनैशन था कि चारों तरफ़ घूमता हुआ आदमी का एक सिर दिखता था। वह कहते हैं, 'हर बार जब यह आया, किसी ने इसमें एक कील लगाई, और मैं देख सकता था कि वह व्यक्ति तब भी जीवित था।' एक और हलूसनैशन उनको हुआ कि एक व्यक्ति उनसे कह रहा था, 'तुम बहुत कुछ जानते हो, तुम्हें अस्पताल से नहीं जाने दिया जाएगा'।
रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ कोरोना मरीज़ जो अपेक्षाकृत कम समय के लिए आईसीयू में रहे उनमें भी delirium जैसी मानसिक स्थिति दिखी।
मैसाचुसेट्स जनरल अस्पताल में 57 वर्षीय अनातोलियो जोस रियोस को केवल चार दिनों के लिए इंटुबैट किया गया था यानी ऑक्सीजन पर रखा गया था। उन्होंने बूम की आवाज़ सुनी, प्रकाश की चमक देखी और लोगों को उनके लिए प्रार्थना करते देखा। रियोस अब कहते हैं, 'हे भगवान, यह डरावना था। और जब मैंने अपनी आँखें खोलीं तो मैंने उन्हीं डॉक्टरों और नर्सों को देखा जो मेरे सपने में मेरे लिए प्रार्थना कर रहे थे।'
रियोस ने कहा, 'मैंने देखा कि लोग फर्श पर पड़े थे जैसे आईसीयू में मृत थे।' उन्होंने अपने कमरे में एक पिशाच महिला की कल्पना की। वह आश्वस्त थे कि बाहर के हॉल में लोग बंदूक से लैस थे और उन्हें धमका रहे थे। उस घटना को याद करते हुए रियोस ने कहा, 'डॉक्टर, क्या आपको वह दिखाई देता है? वे मुझे मारना चाहते हैं।' उन्होंने पूछा कि क्या दरवाजा बुलेटप्रूफ था। और उन्हें शांत करने के लिए डॉक्टर ने कह दिया हाँ, बुलेटप्रुफ़ है।
एक बार तो नर्स द्वारा हाथ में कागज लटकाए देखा तो रियोस को लगा कि वह फाँसी का फंदा लेकर आ रहा था और उन्हें लटकाने वाला था।
अस्पतालों और शोधकर्ताओं की रिपोर्ट बताती है कि लगभग दो-तिहाई से तीन-चौथाई कोरोनो वायरस रोगियों ने आईसीयू में इस मनोस्थिति का अनुभव किया है। ये अनुभव डरावने हैं। डेलीरियम के लंबे समय तक हानिकारक परिणाम हो सकते हैं क्योंकि इसका असर लंबे समय तक रहता है।
महामारी के दौरान डेलीरियम की स्थिति बनना लाजिमी है क्योंकि परिस्थितियाँ ही वैसी होती हैं। वेंटिलेटर, इलाज के दौरान दिये जाने वाले सिडेटिव और ख़राब नींद से वैसी स्थिति बन जाती है। दूसरे कारण हैं: रोगी ज़्यादातर एक ही जगह होते हैं, परिवार वाले नहीं मिल सकते हैं, लोगों से बातचीत नहीं हो पाती है और इलाज करने वाले भी जो आते हैं वे चेहरे पर सुरक्षा गियर पहने होते हैं और मरीजों के कमरे में सीमित समय बिताते हैं। यानी मरीज़ पूरी तरह अकेला पड़ जाता है। मरीज़ तो पहले से ही कोरोना संक्रमण की स्थिति को लेकर तनाव में होता है और अस्पताल की इन परिस्थितियों में उसकी मानसिक स्थिति पूरी तरह डगमगा जाती है।
अमेरिकी अस्पतालों में अब इस स्थिति से निपटने के भी उपाय किए जा रहे हैं। इलाज के दौरान सिडेटिव के कम इस्तेमाल के साथ दूसरे उपायों पर तो विचार किया ही जा रहा है, उनको मनोरोग चिकित्सक की लगातार सलाह भी दी जा रही है। अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद भी मनोरोग चिकित्सक मरीज़ों के संपर्क में रह रहे हैं।
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