हरियाणा के गुरुग्राम में हर मंगलवार को मीट की दुकानें बंद कराने का फ़ैसला क्यों लिया गया? एक दिन में पशु-पक्षियों को तो संरक्षित नहीं ही किया जा सकता है! इस सवाल का जवाब शायद इस दूसरे सवाल से मिले।
पूजा करने के लिए किसी को उपवास रहना है तो क्या उस दिन पूरे शहर में खाने-पीने की चीजों वाली दुकानें बंद कर दी जाएँ? यह सवाल ऐसा भी हो सकता है कि क्या रमजान में उपवास रहने के दौरान पूरे महीने शहरों में खाने-पीने की चीजों वाली दुकानें बंद कर दी जाएँ? यदि ये सवाल कुतार्किक लग रहे हैं, तो पहले वाला सवाल भी शायद ऐसा लगे!
इस सवाल का जवाब उससे भी मिल सकता है जिसमें उसपर प्रतिक्रियाएँ आई हैं। लेकिन इन प्रतिक्रियाओं से पहले यह जान लें कि आख़िर पूरा मामला क्या है?
गुरुग्राम नगर निगम यानी एमसीजी की 18 मार्च की बैठक के दौरान दो पार्षदों द्वारा धार्मिक भावनाओं का हवाला देते हुए प्रस्ताव दिया गया तो इसने हर मंगलवार को मांस की दुकानों को बंद करने का फ़ैसला ले लिया। 'हिंदुस्तान टाइम्स' की रिपोर्ट के अनुसार एमसीजी आयुक्त विनय प्रताप सिंह ने कहा कि मांस खाना एक 'व्यक्तिगत पसंद' है और सदन को निर्णय लेने से पहले इस पर विचार करना चाहिए। इसके बावजूद एमसीजी ने हरियाणा नगर निगम के उप-क़ानूनों, 2008 के प्रावधानों के अनुसार प्रस्ताव को मंजूरी दे दी, जो सप्ताह के एक दिन मांस की दुकानों को बंद करने की अनुमति देता है।
इस फ़ैसले के बाद पहले मंगलवार को हरियाणा में अधिकतर मीट की दुकानें बंद रहीं। एमसीजी के अधिकारियों ने ही कहा कि कुल 129 में से 120 दुकानें बंद रहीं और बाक़ी 9 को आगे के लिए चेतावनी देकर बंद कराया गया। बड़ी संख्या में पुलिस कर्मियों और अधिकारियों को इसके लिए लगाया गया। हालाँकि, कहीं कोई बड़े विरोध की रिपोर्ट नहीं आई, लेकिन एमसीजी के इस फ़ैसले पर सांप्रदायिक होने का आरोप लग रहा है।
इस फ़ैसले पर लोगों के व्यक्तिगत पसंद में दखलअंदाजी का आरोप भी लग रहा है और यह भी कि यह संविधान के अनुरूप नहीं है। मीट व्यवसाय से जुड़े लोगों के प्रभावित होने की आशंका तो जताई ही जा रही है।
ऐसा सवाल उठाने वालों में एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी हैं। उन्होंने कहा है कि हरियाणा और केंद्र में बीजेपी सरकार यह सुनिश्चित करे कि हर मंगलवार को मीट की दुकानें बंद करने वाला आदेश वापस लिया जाए। उन्होंने उस बयान में यह कहा है कि एमसीजी को वह आदेश वापस लेना चाहिए क्योंकि इससे ग़ैर मुसलिम मीट बेचने वालों की भी आय प्रभावित होगी।
How can beliefs get hurt by what other people are doing in their private lives? People are buying, selling or eating meat, they’re not forcing you to partake
— Asaduddin Owaisi (@asadowaisi) March 19, 2021
By this logic, close alcohol shops on Friday?
Meat is food for millions of Indians. Cannot treat it as something impure https://t.co/oY0eh0ZknT
ओवैसी ने आश्चर्य जताया, 'क्या देश विश्वास के आधार पर या संविधान के अनुसार चलेगा? एक समुदाय का विश्वास पूरे समाज पर नहीं थोपा जा सकता है जिसमें विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं।'
ओवैसी ने यह भी कहा कि अनेकता में एकता की जो भारत की खूबसूरती है उसे ख़त्म किए जाने का प्रयास किया जा रहा है। उनका इशारा साफ़ तौर पर सांप्रदायिकता की ओर था और इस ओर भी कि मुसलिमों के ख़िलाफ़ घृणा अभियान चलाया जा रहा है।
हाल ही में जब मसजिदों में लाउड स्पीकर से अजान बजने पर आपत्ति की गई और इसे रोकने की माँग की गई तब भी इसे नफ़रत को बढ़ावा देने के तौर पर देखा गया।
अजान पर मंत्री की आपत्ति
उन्होंने छात्रों को आने वाली दिक्कतों का ज़िक्र करते हुए कहा कि 'मसजिद में पांचों वक़्त की नमाज की अजान और अन्य सूचनाएं प्रसारित करने से होने वाले शोर की वजह से मेरे योग, ध्यान, पूजा-पाठ और सरकारी कामों में खलल पड़ता है।'
वीसी ने कहा था, अज़ान से नींद टूट जाती है
बता दें कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय की वाइस चांसलर संगीता श्रीवास्तव ने मसजिदों से सुबह की नमाज़ की अज़ान का यह कह कर विरोध किया था कि इससे उनकी नींद टूट जाती है और वे उसके बाद सो नहीं पाती हैं। उन्होंने ज़िला प्रशासन को चिट्ठी लिख कर इसकी शिकायत की थी। इस पर भी विवाद हुआ। एक मुसिलम धर्मगुरु मौलाना ख़ालिद रशीद फिरंगमहली ने उन्हें गंगा-जमुनी तहजीब की याद दिलाते हुए कहा है कि मंदिर के भजन-कीर्तन और मसजिद की अज़ान से किसी की नींद ख़राब नहीं होती है।
बता दें कि मई 2020 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अज़ान पर एक महत्वपूर्ण फ़ैसला दिया था। जस्टिस शशिकांत गुप्ता और जस्टिस अजीत कुमार की बेंच ने कहा था कि मुअज़्ज़िन बग़ैर किसी लाउडस्पीकर या अन्य उपकरण के अपनी आवाज़ में मसजिद से अज़ान दे सकता है।
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