सोच-समझकर किया नाम आगे
विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही सुरजेवाला को मैदान में उतारने को लेकर तरह-तरह की चर्चाएँ हैं। राजनीतिक जानकारों के अनुसार, कांग्रेस राज्य में नेताओं की गुटबाजी से बहुत परेशान है। हरियाणा में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक तंवर और पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के गुटों के बीच कई बार लड़ाई सड़क पर आ चुकी है। जाट और ग़ैर-जाट नेताओं की इस लड़ाई में कांग्रेस हाईकमान को ऐसा नेता चाहिए जो दोनों समुदायों को साध सके।
अगर सुरजेवाला इस उपचुनाव में जीत जाते हैं तो पार्टी को 2019 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद के लिए चेहरा भी मिल सकता है। इसलिए बहुत सोच-समझकर ही पार्टी ने सुरजेवाला का नाम आगे किया है।
लगाया पूरा जोर, जुटे दिग्गज
कांग्रेस किसी भी हालत में इस चुनाव को नहीं हारना चाहती, इसलिए रणदीप के नामांकन में हुड्डा, तंवर से लेकर तमाम बड़े नेता पहुँचे और एकजुटता का दावा किया। 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस यहाँ तीसरे नंबर पर रही थी। सुरजेवाला कांग्रेस के राष्ट्रीय मीडिया प्रमुख होने के कारण जाने-पहचाने चेहरे हैं और इस इलाके में जाट मतदाताओं के साथ-साथ अन्य वर्ग के मतदाताओं, विशेषकर युवाओं में वह काफ़ी लोकप्रिय हैं।
लोकसभा चुनाव से पहले हो रहे इस उपचुनाव को हरियाणा की सियासत के लिए बेहद अहम माना जा रहा है। कांग्रेस को अगर इस सीट पर जीत मिलती है तो इसका मतलब यह होगा कि हरियाणा की राजनीति में कांग्रेस मुख्य मुक़ाबले में लौट रही है।
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