अमित शाह ने उस आंध्र प्रदेश का जिक्र नहीं किया, जहां उनके सहयोगी दल तेलगूदेशम पार्टी (टीडीपी) ने 2024 के विधानसभा चुनाव में मुसलमानों से 4.5 फीसदी मुस्लिम आरक्षण का वादा किया है। प्रचंड बहुमत पाने के बाद मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने कहा कि मुस्लिम आरक्षण का वादा पूरा किया जाएगा। आंध्र प्रदेश में भाजपा और टीडीपी का गठबंधन है। लेकिन भाजपा या मोदी-शाह ने कभी भी आंध्र में मुस्लिमों को आरक्षण देने का विरोध नहीं किया। न चुनाव से पहले और न ही चुनाव जीतने के बाद। लेकिन आंध्र से बाहर मुस्लिम आरक्षण और मुसलमानों पर पीएम मोदी और अमित शाह के बयान कुछ और होते हैं।
मेवात में भाजपा
हरियाणा में मुस्लिम आरक्षण के नाम पर भाजपा हिन्दुओं को डरा रही है। लेकिन हरियाणा के एकमात्र मुस्लिम बहुल जिले मेवात में उसका संगठन है। कई मेव नेता भाजपा के पदाधिकारी हैं। मेवात में फिरोजपुर झिरका और नूंह से मुस्लिम ही विधायक बनते हैं। इसीलिए भाजपा इन दोनों सीटों पर अपने मुस्लिम प्रत्याशी को खड़ा करती है। इसी तरह गुड़गांव जिले में आने वाली पुन्हाना विधानसभा सीट भी मेव मुस्लिमों का ही इलाका है। यहां से भी मुस्लिम विधायक बनता है। भाजपा यहां भी मुस्लिम प्रत्याशी उतारती है। भाजपा को पता है कि मेवात में कभी भी उसे वोट नहीं मिलेगा। इसीलिए उसने मेवात को दांव पर लगाते हुए शेष 20 जिलों के हिन्दुओं पर फोकस किया है। अमित शाह के बयान के बाद मेवात के मुस्लिम भाजपा नेताओं ने कहा कि उन्हें जो 50 हजार से लेकर एक लाख जो वोट मिलते रहे हैं, वो भी अब नहीं मिलेंगे। अब तो भाजपा के मुस्लिम नेता मेवात से शायद टिकट ही न मांगें।भाजपा क्यों घबराई
कांग्रेस ने हरियाणा मांगे हिसाब अभियान शुरू किया है, जिसके जरिए वो राज्य में पिछले 10 वर्षों से कामकाज का भाजपा से हिसाब मांग रही है। कांग्रेस ने भाजपा के खिलाफ एक चार्जशीट जारी की है, जिसमें पहले मनोहर लाल खट्टर और अब नायब सिंह सैनी की भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। हरियाणा में भाजपा में अंदरुनी रस्साकशी और कांग्रेस के आक्रामक अभियान की वजह से भाजपा के प्रमुख चुनाव रणनीतिकार अमित शाह को तीन सप्ताह से भी कम समय में दूसरी बार मंगलवार को हरियाणा आना पड़ा। इसे चुनाव अभियान की कमान संभालने के रूप में भी देखा जा रहा है। हाल के लोकसभा चुनावों में भाजपा के खराब प्रदर्शन की वजह से भी भाजपा घबराई हुई है। लोकसभा की 10 में से केवल पांच सीटें ही भाजपा बरकरार रख सकी। 2019 के लोकसभा चुनाव में उसने सभी 10 सीटें जीती थीं।वास्तव में, हरियाणा चुनाव अभियान में शाह की 'सक्रिय' रुचि का मकसद स्पष्ट रूप से पार्टी के विभिन्न वर्गों, विशेषकर वरिष्ठ नेताओं को विधानसभा चुनावों से पहले एकजुट होने का स्पष्ट संदेश भेजना है। विधानसभा चुनाव के लिए प्रभारी के रूप में प्रमुख रणनीतिकार और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की नियुक्ति शाह द्वारा हरियाणा पर कड़ी नजर रखने का पहला संकेत था।
इस साल मार्च में मनोहर लाल खट्टर की जगह 'तुलनात्मक' रूप से बहुत जूनियर नायब सिंह सैनी को हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में स्थापित किए जाने के बाद, पार्टी के भीतर विरोध की सुगबुगाहट होने लगी। दरअसल, खट्टर कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्री अनिल विज ने सैनी की नियुक्ति के लिए 'सलाह' नहीं लिए जाने पर अपना विरोध दर्ज कराया था। इसके बाद विज को सैनी ने अपने मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी।
इसके बाद किसी जाट की जगह ब्राह्मण को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनाने पर भी पार्टी के अंदर प्रतिक्रियाएं हुईं। हालाँकि किसी वरिष्ठ नेता ने सार्वजनिक बयान नहीं दिया, लेकिन एक अन्य 'जूनियर' नेता मोहन लाल बडोली की नियुक्ति को पार्टी आलाकमान द्वारा वरिष्ठ पार्टी नेताओं को 'दरकिनार' करने के एक और प्रयास के रूप में देखा गया। हरियाणा में ओबीसी और ब्राह्मण कुल मतदाताओं का लगभग 42% हैं। इसी के मद्देनजर भाजपा ने बडोली को प्रदेश भाजपा की कमान सौंपी है।
इन्हीं बातों के मद्देनजर शाह ने हरियाणा विधानसभा चुनाव प्रचार की कमान अपने हाथ में ले ली है। हरियाणा में विधानसभा चुनाव को लेकर मोदी सरकार गंभीर है। यही कारण है कि पार्टी आलाकमान ने शाह को लगातार तीसरी बार पार्टी की जीत का नेतृत्व करने के लिए चुनाव अभियान की कमान संभालने के लिए नियुक्त किया है।
अपनी राय बतायें