हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर को हटाए जाने से भाजपा आलाकमान यानी पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने यह साबित कर दिया कि वो 2024 का चुनाव जीतने के लिए मामूली कसर भी नहीं छोड़ना चाहते। खट्टर के क्रिया कलापों से भाजपा हरियाणा में गैर पंजाबियों यानी ओबीसी और जाट पर पकड़ खोती जा रही थी। भाजपा के पास कई दशक से लोकप्रिय जाट नेता का अभाव रहा है। और जब देश भर में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ओबीसी का मुद्दा बार-बार उठा रहे हैं तो मोदी और शाह ने पंजाबी खट्टर को हटाकर ओबीसी नायब सैनी को हरियाणा का ताजा सौंप दिया। नायब सैनी के बारे में बड़े से बड़े विश्लेषकों का दूर दूर तक दावा नहीं था कि भाजपा का यह सामान्य सा नेता मुख्यमंत्री बन सकता है। लेकिन मोदी ऐसा ही चमत्कार करते रहे हैं। लेकिन नायब सैनी के बदलाव ने बड़े संकेत कर दिए हैं।
नायब सिंह सैनी को हरियाणा के अगले मुख्यमंत्री के रूप में चुनने की घोषणा अचानक और अप्रत्याशित थी, लेकिन यह असामान्य नहीं है। याद कीजिए, 2014 में मनोहर लाल खट्टर को इस पद के लिए नामित मोदी-अमित शाह ने ही तो किया था। बहुत दिनों तक खट्टर को पैराशूट मुख्यमंत्री कहा जाता रहा। क्योंकि खट्टर के नाम की भी चर्चा 2014 में कहीं दूर-दूर तक नहीं थी।
भाजपा में 54 साल के नायब सैनी, एक लो-प्रोफाइल ओबीसी नेता के रूप में अचानक ही उभरे और मंगलवार को चंडीगढ़ में एक बैठक में सर्वसम्मति से राज्य भाजपा के विधायक समूह के नेता के रूप में चुने गए। सत्तारूढ़ भाजपा का यह आश्चर्यजनक कदम लोकसभा चुनाव होने से कुछ हफ्ते पहले आया है। हरियाणा विधानसभा चुनाव अक्टूबर 2024 में होने हैं।
भाजपा ने अक्टूबर में ओम प्रकाश धनखड़ की जगह अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से आने वाले सैनी को हरियाणा का अध्यक्ष नियुक्त किया था। अक्टूबर में राज्य भाजपा प्रमुख के रूप में सैनी की नियुक्ति को ओबीसी समुदाय और गैर-जाटों पर अपनी पकड़ मजबूत करने के पार्टी के कदम के रूप में देखा गया था।
हालांकि नायब सैनी को मुख्यमंत्री के रूप में चुनने के कदम को खट्टर सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर को दबाने के रूप में भी देखा जा रहा है। क्योंकि हरियाणा में सैनी समुदाय की आबादी करीब आठ फीसदी है। यह समुदाय हरियाणा के कई उत्तरी जिलों के अलावा अंबाला, कुरूक्षेत्र और हिसार सहित कुछ अन्य जिलों में भी प्रभाव रखता है। लेकिन ओबीसी सीएम बनाने का असर यूपी, बिहार में देखा जाएगा। मध्य प्रदेश में जिस तरह मोहन यादव को सीएम बनाकर यूपी-बिहार में संकेत भेजा गया, ठीक वही नायब सैनी के मामले में भी है। हरियाणा में तो लोकसभा की कुल 10 सीटें हैं लेकिन असली लड़ाई तो यूपी-बिहार में है, जहां ओबीसी निर्णायक हैं। दोनों ही राज्यों में इंडिया गठबंधन के पास अखिलेश और तेजस्वी जैसे मजबूत ओबीसी नेता है। इसके अलावा कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी ओबीसी और जाति जनगणना का मुद्दा छेड़ा हुआ है। इन सब वजहों ने भी नायब सैनी का रास्ता साफ किया।
राज्य में सबसे अधिक आबादी वाले समुदाय जाटों का समर्थन काफी हद तक कांग्रेस, जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) और इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) के बीच बंटा हुआ नजर आ रहा है। ऐसे में जेजेपी अलग लड़ेगी तो इसमें भाजपा को फायदा दिख रहा है, क्योंकि जाट वोट बंटने पर भाजपा को फायदा होगा। महिला पहलवानों और किसान आंदोलन की वजह से हरियाणा के जाट इस समय कांग्रेस के साथ है। कांग्रेस के पास भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसा जाट चेहरा भी है।
सैनी का जन्म 25 जनवरी 1970 को अम्बाला जिले के मिर्ज़ापुर माजरा नामक गाँव में हुआ था। एक कानून स्नातक, उनके खट्टर के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध हैं, और उनके संबंध उनके आरएसएस के दिनों से चले आ रहे हैं।
सैनी 2014 और 2019 के बीच खट्टर कैबिनेट में मंत्री भी थे। जब उन्होंने 2019 में लोकसभा चुनाव लड़ा तो वह विधायक थे।
2019 में, हरियाणा की सभी 10 लोकसभा सीटों पर भाजपा विजयी रही और पार्टी के उम्मीदवारों ने भारी अंतर से जीत हासिल की।
पिछले तीन दशकों के दौरान, सैनी राज्य भाजपा में बड़े पैमाने पर उभरे और उन्होंने राज्य भाजपा किसान मोर्चा के जिला अध्यक्ष और महासचिव का पद भी संभाला। वह 2002 में अंबाला के लिए राज्य भाजपा की युवा शाखा के जिला महासचिव थे और तीन साल बाद जिला अध्यक्ष बने।
वह 2014 में नारायणगढ़ विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने, जब भाजपा अपने बल पर पहली बार हरियाणा में सत्ता में आई।
2019 के लोकसभा चुनावों में, सैनी ने कुरुक्षेत्र सीट से अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी, कांग्रेस के निर्मल सिंह को 3,84,591 मतों के अंतर से हराया था।
सैनी, जो खट्टर कैबिनेट में मंत्री थे, को मौजूदा सांसद आरके सैनी के विद्रोह के बाद 2019 में कुरुक्षेत्र सीट से मैदान में उतारा गया था।
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