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कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा

हरियाणाः कांग्रेस-आप ने आधी से ज्यादा सीटों पर बढ़त बनाई, क्या हैं इसके मायने

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को हरियाणा में जबरदस्त कामयाबी मिली है। 2014 में उसे सिर्फ एक सीट मिली थी और 2019 के लोकसभा चुनाव में वो पूरी तरह साफ हो गई थी लेकिन 2024 में उसे जबरदस्त कामयाबी मिली है। रोहतक और सिरसा में कांग्रेस के प्रत्याशी रेकॉर्ड मतों से जीते हैं, जबकि 2019 में दोनों हार गए थे। 

हरियाणा में अब यह महत्वपूर्ण नहीं है कि कौन कहां से जीता है। महत्वपूर्ण यह है कि 5-6 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए क्या इंडिया गठबंधन यानी कांग्रेस और आप तैयार हैं। इसका जवाब हां में आ रहा है। दोनों सिर्फ तैयार ही नहीं हैं, बल्कि उन्होंने भाजपा सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द पैदा कर दिया है।
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मौजूदा चुनाव नतीजों का विश्लेषण करें तो कांग्रेस और उसकी सहयोगी आम आदमी पार्टी ने राज्य के 90 विधानसभा क्षेत्रों में से 46 में बढ़त बना ली। यानी अगर ये विधानसभा चुनाव होता तो राज्य में कांग्रेस-आप की सरकार बन गई होती। हालांकि भाजपा और दोनों गठबंधन दलों के वोट शेयर में ज्यादा फर्क नहीं है। भाजपा ने हरियाणा में 46.11 फीसदी वोट शेयर प्राप्त किया और इडिया गठबंधन ने 47.61 फीसदी वोट शेयर प्राप्त किया। अगर इन्हें अलग-अलग देखना हो तो कांग्रेस को 43.67 फीसदी और आप का 3.94 फीसदी वोट शेयर है। आप ने सिर्फ कुरूक्षेत्र की सीट पर चुनाव लड़ा था जबकि कांग्रेस ने बाकी नौ सीटों पर लड़ाई लड़ी।

पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा ने सिरसा में भाजपा के अशोक तंवर को 2.68 लाख वोटों से और दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने रोहतक में भाजपा के अरविंद शर्मा को 3.45 लाख वोटों से हराया। इसी तरह जय प्रकाश ने हिसार में भाजपा प्रत्याशी रणजीत सिंह को 63,381 वोटों से, वरुण चौधरी ने अंबाला में 49,036 वोटों से और सतपाल ब्रह्मचारी ने सोनीपत में 21,816 वोटों से जीत हासिल की। जो खास बात है वो ये है कि शैलजा और दीपेंद्र हुड्डा को सिरसा और रोहतक के सभी 9 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली यानी भाजपा से ज्यादा वोट पाए। अन्य सीटों में, कांग्रेस उम्मीदवारों को अंबाला में 9 में से पांच, सोनीपत में 9 में से चार और हिसार में 9 में से छह विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा से ज्यादा वोट मिले।

कांग्रेस और आप उम्मीदवारों को कुरुक्षेत्र की 9 विधानसभा क्षेत्रों में से चार, भिवानी-महेंद्रगढ़ की 9 में से 3, गुड़गांव की 9 में से 3 और गुड़गांव की 9 विधानसभा सीटों में से 3 पर बढ़त मिली। फ़रीदाबाद में भी तीन विधानसभा सीटों में बढ़त मिली। ये वो सीटें हैं जो भाजपा ने जीती हैं।
इसी तरह अन्य सीटों पर भी तमाम विधानसभाओं में कांग्रेस को बढ़त मिली और कुल मिलाकर 46 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस प्रत्याशियों ने भाजपा को पीछे धकेल दिया। राज्य विधानसभा में कुल 90 सीटें हैं।

हरियाणा में सिर्फ करनाल लोकसभा सीट ऐसी है जिसकी सभी 9 विधानसभा सीटों पर भाजपा के मनोहर लाल खट्टर को बढ़त मिली। खट्टर को चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री पद से हटाकर करनाल से उतारा गया था। यह मोदी-अमित शाह का फैसला था। जिस पैराशूट के सहारे खट्टर हरियाणा में उतारे गए थे, उसी से वापस चले गए। करनाल से वो जीत चुके हैं लेकिन रुतबा खत्म हो गया है। केंद्र में मंत्री बनते हैं या नहीं, अभी यह भी साफ नहीं है।


अक्टूबर 2019 में जिन 10 विधानसभा क्षेत्रों में दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ने जीत हासिल की, उनमें से 9 पर कांग्रेस को बढ़त मिली। सिर्फ बरवाला में भाजपा को 11,657 वोटों की बढ़त मिली। यानी विधानसभा में भी जेजेपी की हवा निकल गई। अगले विधानसभा चुनाव में जेजेपी का भविष्य धूमिल है। कांग्रेस के जय प्रकाश ने दुष्यन्त चौटाला की उचाना सीट पर अपने भाजपा प्रतिद्वंद्वी से 37,319 वोटों से बढ़त बनाई, जबकि एक अन्य कांग्रेसी राव दान सिंह नैना चौटाला की बाढड़ा सीट पर भाजपा उम्मीदवार से 27,102 वोटों से आगे रहे। इस तरह दुष्यंत चौटाला अपनी और अपनी मां की विधानसभा सीट पर ही लोकसभा में बढ़त नहीं दिलवा सके। बाकी सीटें तो बाद में आती हैं। 

2019 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 90 में से 31 सीटें मिली थीं। दुष्यंत चौटाला को 10 सीटें मिली थीं। राज्य में कांग्रेस और जेजेपी की सरकार बनने वाली थी लेकिन दुष्यंत ने जबरदस्त पलटी मारी और अमित शाह के घर जाकर भाजपा को समर्थन दे दिया। प्रदेश में भाजपा सरकार दुष्यंत ने बनवा दी। पिछले पांच वर्षों में दुष्यंत को इसका नतीजा भुगतना पड़ा। जाट बेल्ट में उनको ठुकरा दिया गया है, लोग उन्हें गद्दार मानते हैं। क्योंकि लोग 2019 में ही कांग्रेस-जेजेपी की सरकार चाहते थे। अब जब राज्य में फिर से विधानसभा चुनाव दस्तक दे रहे हैं तो दुष्यंत अकेले पड़ चुके हैं। जबकि कांग्रेस-आप 46 सीटों पर बढ़त ले चुके हैं।
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दुष्यंत चौटाला के सामने बस यही विकल्प है कि वो कांग्रेस या अपने दादा ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल (इनैलो) से समझौता करें और चंद सीटों पर चुनाव लड़े। क्योंकि इनेलो का ग्राफ भी लगातार गिर रहा है। वो किसी भी तरह की उपलब्धि 2019 और 2024 के चुनाव में हासिल नहीं कर सकी है। उसके सभी प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो चुकी है। लेकिन अगर इनेलो एक होकर लड़ती है तो शायद कुछ फर्क पड़े।
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क़मर वहीद नक़वी
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