संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) की हरियाणा शाखा ने लंबे समय से अपनी लंबित मांगों पर बातचीत के लिए राज्य सरकार को 6 दिनों को समय दिया है। एसकेएम का कहना है कि राज्य सरकार का उसकी मांगों के प्रति रवैया सुस्त है। किसान नेताओं ने बातचीत की डेडलाइन 20 जुलाई तक रखी है, उसके बाद आंदोलन का रास्ता चुनने को बाध्य होंगे।
एसकेएम की समन्वय समिति की रविवार को रोहतक में हुई बैठक में यह फैसला लिया गया। पहले कई बार उच्चस्तर पर चिंता जताने के बावजूद किसानों के हितों की लगातार अनदेखी करने पर राज्य सरकार के खिलाफ बैठक में नाराजगी भी व्यक्त की गई। एसकेएम के वरिष्ठ नेता और अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) के उपाध्यक्ष इंद्रजीत सिंह ने कहा- “अल्टीमेटम के अलावा, बैठक में एसकेएम से जुड़े 14 कृषि संगठनों के 37 पदाधिकारियों ने भाग लिया। जिसमें राज्य में सभी संसद सदस्यों – लोकसभा और राज्यसभा दोनों – को ज्ञापन सौंपने सहित कई गतिविधियों की रूपरेखा तैयार की गई।”
इंद्रजीत सिंह ने कहा कि सी2+50 प्रतिशत पर एमएसपी की कानूनी गारंटी, ऋण माफी, बिजली संशोधन विधेयक को वापस लेने और किसानों को पेंशन जैसे लंबित मुद्दों के अलावा, कृषि पर एक अलग बजट, कृषि इनपुट पर जीएसटी को खत्म करने की मांग हमारा संगठन कर रहा है। कृषि उपकरण और सहकारी विभाग में कोई केंद्रीय हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए, क्योंकि यह राज्य का विषय है।
किसान संगठनों की यह एकजुटता विधानसभा चुनाव से पहले सामने आई। हरियाणा में विधानसभा चुनाव अक्टूबर तक हो जाएंगे। यानी सरकार और किसान संगठनों के पास इस मुद्दे को लंबा खींचने का समय कम है। सरकार ने अगर अभी कोई फैसला नहीं लिया तो आचार संहिता लागू होने के बाद वो कोई घोषणा नहीं कर पाएगी। आंदोलन को फैलाने के लिए कम से कम दो महीने चाहिए होते हैं, जबकि चुनाव के लिए ही ढाई महीने बचे हैं।
एसकेएम के अन्य नेताओं विकास सिसर और सुखविंदर सिंह ने कहा कि बैठक में कॉरपोरेट घरानों के खिलाफ विरोध दर्ज कराने के लिए 9 अगस्त को कॉरपोरेट भारत छोड़ो दिवस के रूप में मनाने का भी संकल्प लिया गया, जिसमें आरोप लगाया गया कि वे निर्दोष किसानों का कल्याण सुनिश्चित करने के बजाय उन्हें “धोखा” दे रहे हैं।
बैठक में राज्य में आगामी विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा के सांप्रदायिक और जन-विरोधी एजेंडे का विरोध करने के लिए ट्रेड यूनियनों, कृषि मजदूरों, महिलाओं, छात्रों, युवाओं और कर्मचारियों को एकजुट करने का भी निर्णय लिया गया। भाजपा की विभाजनकारी राजनीति को उजागर करने के लिए बाद में एक ठोस कार्य योजना तैयार की जाएगी।
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