लोकसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद से ही हरियाणा बीजेपी के नेता यह तय मानकर बैठे थे कि उन्हें राज्य में कुछ माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में कोई नहीं हरा सकता। मुख्य मंत्री मनोहर लाल खट्टर और प्रदेश नेतृत्व ने बहुत उत्साह में ‘मिशन 75 प्लस’ का नारा दिया था। इस नारे के पीछे बीजेपी के लोकसभा चुनाव में सभी 10 सीटें जीतने और 90 में से 79 सीटों पर आगे रहने का तर्क दिया गया था। लेकिन चुनाव परिणाम पूरी तरह विपरीत रहे हैं और बीजेपी को 40 सीटों पर जीत मिली है जो कि पिछले चुनाव से 7 सीट कम है।
यह चुनाव परिणाम इस बात की ओर स्पष्ट इशारा करता है कि राज्य की जनता ने खट्टर सरकार के ख़िलाफ़ जनादेश दिया है। यह चुनाव परिणाम हरियाणा के 2009 के विधानसभा चुनाव नतीजों की याद दिलाता है जब तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा पूरे भरोसे में थे कि वह बड़ी जीत हासिल करेंगे लेकिन उन्हें सिर्फ़ 40 सीटें मिल सकी थीं। लेकिन हुड्डा ने जोड़-तोड़ से सरकार बनाई थी और यह पाँच साल चली थी।
जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ने उम्मीद के मुताबिक़ ही प्रदर्शन किया और वह 10 सीटें झटकने में सफल रही। दादा ओमप्रकाश चौटाला के द्वारा इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) से बाहर निकाले जाने को अजय चौटाला के बेटों दुष्यंत और दिग्विजय ने चुनौती के रूप में लिया और पिछले एक साल में हरियाणा की कुछ चुनिंदा सीटों पर पार्टी संगठन को खड़ा किया। इनेलो की हालत बेहद ख़राब रही और वह सिर्फ़ 1 सीट पर जीत हासिल कर सकी है।
दुष्यंत और दिग्विजय चौटाला ने इस बात को भी साबित किया है कि वे ही ताऊ देवीलाल की राजनीति के असली वारिस हैं। दोनों नेताओं ने अपने दादा और चाचा के उन्हें पार्टी से निकाले जाने के फ़ैसले को भी गलत साबित कर दिया है।
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सात मंत्री हारे चुनाव
खट्टर सरकार के ख़िलाफ़ जनता की नाराजगी का इसी से पता लगाया जा सकता है कि प्रदेश सरकार के सात मंत्री चुनाव हार गए हैं। यहां तक कि बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला भी चुनाव हार गए। राेहतक से सहकारिता मंत्री मनीष ग्राेवर, शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा, परिवहन मंत्री कृष्णलाल पंवार, कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़, कैप्टन अभिमन्यु और महिला विकास मंत्री कविता जैन सहित कई बड़े बीजेपी नेता चुनाव हार गए हैं। कैबिनेट मंत्रियों में एकमात्र अनिल विज चुनाव जीते हैं।
बीजेपी ने सोचा था कि स्टार खिलाड़ियों को चुनाव मैदान में उतारने का उसे फायदा मिलेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। दादरी से ‘दंगल गर्ल’ बबीता फोगाट और बरौदा से पहलवान योगेश्वर दत्त चुनाव हार गये। सिर्फ़ हॉकी इंडिया के पूर्व कप्तान संदीप सिंह अपनी सीट बचा सके।
राष्ट्रवाद, धारा 370 ने नहीं किया काम
बीजेपी को लग रहा था कि हरियाणा में उसे जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाये जाने का फायदा मिलेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हरियाणा से बड़ी संख्या में जवान सेना में तैनात हैं। बीजेपी ने इस क़दम को देश की एकता, अखंडता और राष्ट्रवाद से जोड़ा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और दूसरे नेताओं ने इसे बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश किया। लेकिन चुनाव परिणाम स्पष्ट रूप से बताते हैं कि जनता ने इसे नकार दिया और बहुत सोच-समझकर वोटिंग की है।
हरियाणा में लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी को 58% वोट हासिल हुए थे, जबकि 5 महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में यह वोट प्रतिशत 36% पर पहुंच गया, यानी उसे 22% का नुक़सान हुआ है।
कांग्रेस पर जाटों ने जताया भरोसा!
हरियाणा में लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस को इस बार शायद उसके पुराने वोट बैंक ने सहारा दिया है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा जब हरियाणा के मुख्यमंत्री थे तब यह माना जाता था कि जाट वोटर पूरी तरह उनके साथ हैं। इसके अलावा दलित और मुसलिम मतदाताओं को भी कांग्रेस का समर्थक माना जाता था। इस बार के चुनाव परिणाम से यह स्पष्ट हुआ है कि इन तीनों ही समुदाय के लोगों ने कांग्रेस पर भरोसा जताया है। हालांकि जाट वोटों का एक बड़ा हिस्सा जेजेपी को भी मिलने की उम्मीद है लेकिन फिर भी कहा जा सकता है कि जाटों ने कांग्रेस का साथ दिया है, तभी कांग्रेस पिछली बार की 15 सीटों से 31 सीटों तक पहुंच पाई है।
कांग्रेस नेतृत्व ने कर दी देर!
चुनाव परिणाम यह भी बताते हैं कि कांग्रेस आलाकमान ने हरियाणा में नेतृत्व परिवर्तन करने में बहुत देर कर दी। हुड्डा पिछले तीन साल से माँग कर रहे थे कि अशोक तंवर को पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया जाये। लेकिन विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हुड्डा की माँग को माना गया। अगर लोकसभा चुनाव के बाद ही नेतृत्व परिवर्तन कर दिया जाता तो वह निश्चित रूप से पार्टी को स्पष्ट बहुमत दिला सकते थे।
बीजेपी पर यह आरोप लगता है कि उसने पिछले पाँच साल तक हरियाणा में जाट बनाम ग़ैर जाट की राजनीति की। सबसे पहले उसने ग़ैर जाट व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाया। इसके अलावा जाट आरक्षण आंदोलन में इस समुदाय के नेताओं ने युवाओं के उत्पीड़न को मुद्दा बनाया था। इसके बाद केंद्र में सरकार बनने पर तीन लोगों को हरियाणा से मंत्री पद दिया और ये तीनों ही ग़ैर जाट थे। इसे लेकर जाटों में नाराज़गी थी और उन्होंने इसका इजहार भी किया है।
चुनाव परिणाम से लगता है कि जाट समुदाय ने इस बार बहुत सोच-समझकर वोटिंग की है। जिन सीटों पर कांग्रेस का जाट उम्मीदवार मजबूत था, वहां पर इस समुदाय के लोगों ने उसे भरपूर वोट दिये और जहां पर जेजेपी का प्रत्याशी मजबूत था, वहां पर उन्होंने जेजेपी के पक्ष में वोट डाले। लेकिन समुदाय के लोगों ने पूरी कोशिश कि जाट वोट बंटने न पायें क्योंकि ऐसा होने पर इसका सीधा सियासी फ़ायदा बीजेपी को मिलता।
‘आप’ को क्या हुआ?
अन्य दलों की बात करें तो आम आदमी पार्टी (आप) का प्रदर्शन बेहद ख़राब रहा। दिल्ली में जब राज्यसभा की 2 सीटों पर पार्टी की ओर से उम्मीदवार उतारे जाने थे तो उसने एक सीट पर सुशील गुप्ता को इसलिए चुना था क्योंकि बताया जाता है कि गुप्ता के हरियाणा में कई शिक्षण संस्थान हैं। तब केजरीवाल ने कहा था कि उनका अगला लक्ष्य हरियाणा में सरकार बनाना है। लेकिन पार्टी को इस बार नोटा से भी कम वोट मिले हैं। आप को 0.48% वोट मिले हैं जबकि नोटा को इससे ज़्यादा 0.52% वोट मिले हैं।
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