संवेदनहीन टिप्पणी
हरियाणा के कृषि मंत्री ने शनिवार को कहा,“
"यदि वे घर में ही रहे होते तो क्या नहीं मरते? वे घर में ही रहे होते तो भी मारे ही जाते। क्या एक से दो लाख लोगों में से दो सौ लोग छह महीने में नहीं मरते हैं?"
जे. पी. दलाल, कृषि मंत्री, हरियाणा
बाद में उन्होंने मुस्कराते हुए कहा, "कोई दिल का दौरा पड़ने से मर रहा है तो कोई बीमार होकर। वे अपनी मर्जी से मरे हैं। उनके प्रति मुझे गहरी सहानुभूति है।"
उनकी इस टिप्पणी पर वहाँ मौजूद लोग ठहाका लगाने लगे।
माफ़ी माँगी
बाद में उन्होंने इस पर सफाई देते हुए कहा कि उनकी बात को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया, उनके कहे का ग़लत अर्थ निकाला गया।
लेकिन जब सोशल मीडिया पर इस तूफान उठ खड़ा हुआ तो उन्होंने माफ़ी माँग ली। उन्होंने कहा, "यदि इससे कोई आहत हुआ तो मैं माफ़ी माँगता हूँ।"
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कांग्रेस की तीखी प्रतिक्रिया
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने इस पर टिप्पणी करते हुए दलाल पर तीखा हमला किया और कहा कि इस तरह की बातें कोई 'संवेदनहीन' आदमी ही कर सकता है।
सुरजेवाला ने कहा, "अन्नदाताओं के लिए इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल कोई संवेदनहीन आदमी ही कर सकता है।"
उन्होंने इस पर भी ट्वीट भी किया और कहा कि
“
"किसानों की शहादत पर हरियाणा के कृषि मंत्री की प्रतिक्रिया और उस पर ठहाका बहुत ही दुखदायी है।"
रणदीप सिंह सुरजेवाला, प्रवक्ता, कांग्रेस
पद से हटाने की माँग
पंजाब कांग्रेस के नेता राज कुमार वर्क ने दलाल को पद से हटाने की माँग की है।
किसान आन्दोलन का संचालन करने वाली भारतीय किसान यूनियन ने जनवरी में कहा था कि उस समय तक 100 से ज़्यादा किसानों की मौत हो चुकी थी।
जनवरी में हरियाणा के रोहतक के रहने वाले 42 साल के एक किसान ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी। इस किसान का नाम जय भगवान राणा था।
राणा ने सुसाइड नोट में लिखा था, ‘मैं एक छोटा आदमी हूं। कई किसान कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे हैं। सरकार कहती है कि यह केवल दो-तीन राज्यों का मामला है। किसानों और सरकार के बीच समझौता नहीं हो पा रहा है।’
दिसंबर में सिख धर्म गुरू संत बाबा राम सिंह ने ख़ुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी। उन्होंने सुसाइड नोट में लिखा था कि वह किसानों की बेहद ख़राब हालत के कारण यह आत्मघाती क़दम उठा रहे हैं। बड़ी संख्या में लोग संत बाबा राम सिंह के कीर्तन को सुनते थे। किसान आंदोलन में लगातार हो रही मौतों के कारण आम किसानों, आंदोलनकारियों में सरकार के ख़िलाफ़ जबरदस्त ग़ुस्सा है।
याद दिला दें कि कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ हज़ारों किसान दिल्ली की सीमा से सटे उत्तर प्रदेश और हरियाणा के इलाक़ों में ढाई महीने से डेरा डाले हुए हैं। इनकी माँग सितंबर 2020 में पारित तीन कृषि क़ानूनों को रद्द करने की है। सरकार के साथ 10 दौर की बातचीत नाकाम रही है। सरकार का कहना है कि वह किसानों की माँगों पर विचार करने और उस हिसाब से क़ानून में संशोधन करने को तैयार है, पर क़ानून रद्द नहीं किए जा सकते हैं।
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