एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनकी सरकार के मंत्री, बीजेपी के तमाम आला नेता कृषि क़ानूनों के समर्थन में कूदे हुए हैं, वहीं दूसरी ओर पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह इन क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों के समर्थन में धरने पर बैठ रहे हैं।
कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ सबसे पहले उबाल हरियाणा और पंजाब के किसानों में ही आया था। पंजाब में तो जोरदार आंदोलन भी हुए लेकिन हरियाणा की बीजेपी सरकार ने किसान नेताओं की गिरफ़्तारियां कर उनकी आवाज़ को दबाने की कोशिश की। लेकिन जब से पंजाब के किसान सिंघु बॉर्डर पर आए हैं, आंदोलन में हरियाणा के किसानों की भी जबरदस्त भागीदारी देखने को मिल रही है।
अब जब चौधरी बीरेंद्र सिंह किसानों के समर्थन में खुलकर उतर आए हैं तो बीजेपी के सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हो गई है। चौधरी बीरेंद्र सिंह शुक्रवार को सांपला में छोटूराम पार्क में चल रहे धरने में पहुंचे और किसानों को समर्थन दिया।
उन्होंने कहा कि वह सर छोटू राम विचार मंच के सदस्य हैं और यह संस्था किसानों के हित में काम कर रही है।
चौधरी बीरेंद्र सिंह ने आज तक से कहा, ‘जब मैं पैदा हुआ था, किसान का बेटा था, जब पढ़-लिखकर राजनीति में आया तो कांग्रेस में गया और अब बीजेपी में हूं। इसका मतलब ये नहीं है कि जो मेरी पृष्ठभूमि है, उसे मैं छोड़ दूं।’ उन्होंने कहा कि ये मेरा नैतिक कर्तव्य बनता है कि मैं किसानों के साथ खड़ा रहूं।
चौधरी बीरेंद्र सिंह ने कहा कि जो किसान धरने पर बैठे हैं, उनके साथ लगातार बातचीत होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि किसानों का आंदोलन लगातार चलना देश और किसानी दोनों के हित में नहीं हैं। उन्होंने आगे कहा कि किसानों ने किसी भी राजनीतिक दल को अपने आंदोलन से दूर रखा है।
कद्दावर जाट नेता चौधरी बीरेंद्र सिंह ने कहा कि किसानों की बात करने पर यह पार्टी से बाहर की बात नहीं हो जाती।
चौधरी बीरेंद्र सिंह हरियाणा के बड़े नेता हैं। उनके क़द को देखते हुए ही बीजेपी ने उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया था। 2019 के चुनाव में बीजेपी ने चौधरी बीरेंद्र सिंह के बेटे बृजेश सिंह को लोकसभा का टिकट भी दिया था।
हरियाणा बीजेपी के कई सांसद इस बात को कह चुके हैं कि किसानों के इस मसले का हल निकाला जाना चाहिए। अगर चौधरी बीरेंद्र सिंह के साथ कुछ और बीजेपी नेता इस आंदोलन से जुड़ते हैं तो निश्चित रूप से बीजेपी नेताओं को इस मामले में दूसरे राज्यों में मुंह दिखाना भारी पड़ जाएगा।
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मुश्किल में है खट्टर सरकार
इस आंदोलन ने पंजाब की ही तरह हरियाणा की सियासत को भी तगड़े ढंग से प्रभावित किया है। पूरी खट्टर सरकार डरी हुई है कि न जाने कब सरकार गिए जाए। सरकार को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायक सोमबीर सांगवान अलग हो चुके हैं तो सहयोगी जेजेपी के अंदर इस मामले में जबरदस्त उथल-पुथल मची हुई है।
जेजेपी ने खट्टर सरकार पर दबाव बनाया हुआ है कि दिल्ली चलो मार्च के दौरान किसानों के ख़िलाफ़ जो मुक़दमे दर्ज हुए हैं, उन्हें वापस ले लिया जाए।
मोदी सरकार इन कृषि क़ानूनों के कारण पहले ही बहुत सियासी जोखिम ले चुकी है। उसकी पुरानी सहयोगी शिरोमणि अकाली दल के नाता तोड़ने के बाद आरएलपी उसे धमका चुकी है कि ये क़ानून वापस नहीं हुए तो वह एनडीए से बाहर चली जाएगी।
बड़े नेताओं को झोंका
बीजेपी पूरी कोशिश कर रही है कि वह किसानों के दबाव में न आए। उसने तमाम बड़े नेताओं, केंद्रीय मंत्रियों को देश भर में इस मसले पर रैलियां करने, प्रेस कॉन्फ्रेन्स करने के काम में लगाया हुआ है। लेकिन वह भी जानती है कि अब किसानों को मनाने की सारी कोशिशें बेकार हो चुकी हैं। किसान सिर्फ़ इन तीन क़ानूनों के रद्द होने पर नहीं, एमएसपी पर क़ानूनी गारंटी, पराली और बिजली को लेकर आए अध्यादेशों को रद्द करने का भरोसा भी चाहते हैं।परेशान हाल मोदी सरकार
ऐसे में मोदी सरकार की मुश्किलें सुरसा के मुंह की तरह फैलती जा रही हैं। किसान संगठनों का कहना है कि आंदोलन में अब तक 20 से ज़्यादा किसानों की मौत हो चुकी है। इसे लेकर दुनिया भर में फैले भारतीयों विशेषकर पंजाबियों के बीच बन रही सरकार की छवि को लेकर भी सरकार खासी चिंतित है।
मोदी सरकार के आला मंत्रियों और बीजेपी के रणनीतिकारों की चिंता यह भी है कि अगर किसान आंदोलन इसी तरह चलता रहा तो आने वाले कुछ महीनों में कई राज्यों में होने जा रहे चुनावों में पार्टी को ख़ासा नुक़सान हो सकता है। ऐसे में सरकार के सामने इसके सिवा कोई रास्ता नहीं है कि वह कृषि क़ानूनों को वापस ले ले।
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