पंजाब और हरियाणा के किसानों के दिल्ली के बॉर्डर पर आ डटने के कारण मुश्किल में फंसी बीजेपी को अपने सहयोगियों की खरी-खोटी सुननी पड़ रही है। हरियाणा और राजस्थान में उसके दो सहयोगी- जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) ने उसे कृषि क़ानूनों को लेकर चेताया है।
बीजेपी जानती है कि जिस तरह हरियाणा और पंजाब के किसान लगातार इस आंदोलन से जुड़ रहे हैं, ऐसे में जल्द ही कोई हल खोजना होगा, वरना उसे पीछे हटना ही पड़ेगा।
2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत न मिलने के कारण बीजेपी ने जेजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। किसानों द्वारा कृषि क़ानूनों का पुरजोर विरोध करने के कारण जेजेपी तगड़े दबाव में है।
दुष्यंत पर सियासी हमले
सोशल मीडिया पर किसान और युवा लगातार दुष्यंत चौटाला पर सियासी हमले कर रहे हैं। किसानों और युवाओं का कहना है कि दुष्यंत ने बीजेपी के विरोध और किसानों की हिमायत करने के वादे के कारण पहले ही चुनाव में बड़ी सफ़लता हासिल की थी। लेकिन अब वह कुर्सी मोह के कारण किसानों का साथ नहीं देना चाहते।
किसानों की नाराज़गी से होने वाले सियासी ख़तरे को भांपते हुए ही जेजेपी संस्थापक अजय चौटाला सामने आए हैं। चौटाला ने कहा, ‘सरकार से कहा गया है कि इस मसले का जल्द से जल्द हल निकाला जाए।’ जेजेपी संस्थापक ने कहा, ‘जब सरकार बार-बार कह रही है कि एमएसपी को जारी रखेंगे तो उसको लिखने में क्या दिक्क़त है।’ उन्होंने कहा कि अन्नदाता परेशान है और सड़कों पर है, ऐसे में किसानों को जल्द राहत दी जानी चाहिए।
किसानों के साथ हैं जेजेपी विधायक
जेजेपी के सामने मुश्किल यह भी है कि उसके 10 विधायकों में से ज़्यादातर किसानों के सपोर्ट में हैं। क्योंकि वे जानते हैं कि किसानों के साथ नहीं खड़े होने का सियासी नुक़सान ज़रूर होगा। लेकिन मोदी सरकार कृषि क़ानूनों के मसले पर झुकने को बिलकुल तैयार नहीं दिखती है। ऐसे में दुष्यंत चौटाला कब तक पार्टी के भीतर उठ रही आवाज़ों को रोक पाएंगे, ये एक बड़ा सवाल है।
खट्टर का झूठ!
मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर बार-बार यह कहकर ख़ुद को केंद्र सरकार की नज़रों से बचाने की कोशिश कर रहे हैं कि किसान आंदोलन में हरियाणा के किसान नहीं हैं। लेकिन अगर आप टिकरी और सिंघू बॉर्डर के ज़मीनी हालात देखेंगे तो वहां हरियाणा के किसान लगातार बड़ी संख्या में जुटते जा रहे हैं और पंजाब और दूसरे राज्यों के किसानों की पूरी खातिरदारी और सपोर्ट कर रहे हैं।
सरकार से समर्थन वापस
हरियाणा के दादरी से निर्दलीय विधायक सोमवीर सांगवान ने हरियाणा पशुधन विकास बोर्ड के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और सरकार से समर्थन भी वापस ले लिया। अब वे पूरी सांगवान खाप के साथ किसानों के आंदोलन में शामिल हो रहे हैं। लेकिन खट्टर इसे कैसे नज़रअंदाज कर रहे हैं कि विधायक अपने सरकारी पदों को भी किसानों के लिए छोड़ रहे हैं, इस बात पर हैरानी है।
दुष्यंत के छोटे भाई और जेजेपी की स्टूडेंट विंग इनसो के अध्यक्ष दिग्विजय चौटाला ने कहा है कि उनकी पार्टी की रणनीति सरकार और किसानों के बीच बातचीत पर निर्भर करेगी।
अजय चौटाला की तरह किसान भी सैकड़ों बार इस बात को कह चुके हैं कि उन्हें एमएसपी का लिखित क़ानून चाहिए और जब सरकार कह रही है तो उसे इस बात को क़ानून में लिखकर देने में क्या दिक्कत है।
जेजेपी की हालात पर नज़र
बहरहाल, जेजेपी पूरे हालात पर नज़र रख रही है लेकिन पार्टी के विधायकों के भीतर किसानों के आंदोलन के साथ खड़े होने का दबाव है। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, पार्टी के विधायक जोगी राम सिहाग कहते हैं कि अगर आंदोलन जारी रहता है तो हरियाणा के किसानों की भागीदारी पंजाब से ज़्यादा होगी। विधायक ने कहा कि ये क़ानून किसानों के साथ ही ग़रीबों का भी नुक़सान करेंगे और इनमें संशोधन किए जाने की ज़रूरत है।
ख़ुद अजय चौटाला की पत्नी और पार्टी की विधायक नैना चौटाला 20 सितंबर को कुरुक्षेत्र में हुए किसानों के प्रदर्शन में शामिल हो चुकी हैं। जेजेपी का इस बात पर भी जोर है कि किसानों के आंदोलन को राजनीतिक नहीं कहा जाना चाहिए।
बीजेपी सांसदों ने मानी गड़बड़
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने हरियाणा के बीजेपी सांसदों से कृषि क़ानूनों को लेकर बातचीत की तो इसमें कई बीजेपी सांसदों ने माना कि किसानों के ख़िलाफ़ सरकार ने जिस तरह ताक़त का इस्तेमाल किया वह ग़लत था। कुछ सांसदों ने यह भी माना कि मोदी सरकार के कृषि क़ानूनों में गड़बड़ है। उन्होंने इस बात को भी स्वीकार किया कि बीजेपी किसानों को इन क़ानूनों के फ़ायदे बताने में असफल रही।
हनुमान बेनीवाल की चेतावनी
जेजेपी के बीच ही आरएलपी के नेता और राजस्थान के नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल की वजह से भी बीजेपी परेशान है। बेनीवाल ने 30 नवंबर को गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर कहा है कि इन तीनों नए कृषि क़ानूनों को तुरंत वापस लिया जाए वरना उनकी पार्टी एनडीए में बने रहने पर पुनर्विचार करेगी।
इससे पहले शिरोमणि अकाली दल बीजेपी का साथ छोड़ चुकी है। ये सभी दल जानते हैं कि किसानों की नाराजगी मोल लेकर सियासत में कामयाब नहीं हुआ जा सकता। ऐसे में जब किसानों का आंदोलन लगातार जोर पकड़ रहा है तो जेजेपी और आरएलपी को भी कहीं अकाली दल की तरह एनडीए से बाहर न निकलना पड़े। क्योंकि किसान और मरकज़ी सरकार अपने-अपने स्टैंड से टस से मस होने के लिए तैयार नहीं हैं।
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