क्या आप बिना मोबाइल और इंटरनेट के रहने की कल्पना कर सकते हैं? कई साल, महीने या सप्ताह तो छोड़िए एक दिन भी बिना मोबाइल की ज़िंदगी कैसी होगी, वह भी तब जब आपके आसपास अधिकतर लोग मोबाइल इस्तेमाल कर रहे हों! दरअसल, जिस गुजरात से आने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिजिटल इंडिया लॉन्च किया है उसी गुजरात के कई गाँवों में बिना ब्याही लड़कियों के मोबाइल रखने पर पाबंदी लगाई गई है। यह पाबंदी लगाई है ठाकोर समाज ने। बनासकांठा के दंतीवाड़ा में क़रीब दर्जन भर गाँवों के ठाकोर समाज के लोगों ने बैठक कर इस पर फ़ैसला लिया। बैठक में तय किए गए नियमों के मुताबिक़ अगर कोई लड़की इस नियम का उल्लंघन कर मोबाइल का इस्तेमाल करती है तो इसे अपराध माना जाएगा। इसके लिए लड़की के पिता से जुर्माने के तौर पर डेढ़ लाख रुपये वसूले जाएँगे।
ग्रामीणों ने यह भी तय किया है कि अगर कोई लड़की अपने परिवार की इच्छा के बिना शादी करती है तो यह अपराध माना जाएगा। समाज ने समुदाय के बाहर शादी करने वाले पुरुषों और महिलाओं के माता-पिता के लिए भारी जुर्माना की घोषणा की। हालाँकि, क़ानूनी दांवपेंच से बचने के लिए शब्द सावधानीपूर्वक लिखे गए और अंतर-समुदाय विवाह साफ़-साफ़ नहीं लिखा गया। इसमें लिखा गया है, ‘जो भी लड़की समुदाय का मान-मर्दन करती है, उसकी ज़िम्मेदारी परिवार की होगी और माता-पिता समाज के संविधान के अनुसार जुर्माना देने के लिए उत्तरदायी होंगे। बेटियों के लिए उसके माता-पिता पर 1.5 लाख और ऐसे बेटों के लिए उनके माता-पिता पर 2 लाख जुर्माना लगाया जाएगा।’
लीजिए, कहाँ हम चाँद और मंगल पर जाने की बात कह रहे हैं और यहाँ धरती पर ही मोबाइल रखने पर ही पाबंदी भी लगा रहे हैं! हो गए डिजिटल! बन गए आधुनिक! कर ली दुनिया मुट्ठी में! ऐसे तो न्यू इंडिया बनने से रहा!
हर रोज़ नई-नई तकनीकें आ रही हैं, लेकिन लगता है इसके साथ-साथ मानकिसकता ज़्यादा दकियानूसी होती जा रही है। माना जाता है कि समाज के प्रतिनिधि वे चुने जाते हैं जो ज़्यादा प्रगतिशील होते हैं। यानी समाज की बैठकों में समाज में सुधार की बात होनी चाहिए। लेकिन गुजरात के बनासकांठा के दंतीवाड़ा क्षेत्र में ठाकोर समाज ने जलोल गांव में जब बैठक की तो अजीब नियम बनाए। इस गाँव में लड़कियों का मोबाइल इस्तेमाल करना गुनाह बताया गया है यानी इसे अपराध माना जाएगा और इसकी सज़ा के रूप में जुर्माना भी लगाया जाएगा। गाँव वालों ने इसे ख़ुद के संविधान का फ़ैसला बताया। यहाँ सवाल उठता है कि क्या जुर्माना अब क़ानून के तहत नहीं, बल्कि समाज के नियम-कायदों से लगाया जाएगा? क्या कोई भी तरक्की पसंद समाज ‘खाप पंचायतों’ के नियम से आगे बढ़ पाएगा?
जनप्रतिनिधि की सफ़ाई
इन नियमों पर समाज के लोग क्या कहते हैं? एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, ज़िला पंचायत सदस्य जयंतीभाई ठाकोर ने कहा, ‘हमने रविवार को एक बैठक बुलाई और तय किया कि शादी में डीजे और पटाखों पर होने वाले अनावश्यक ख़र्चों को रोका जाना चाहिए। इससे हमारे पैसों की बचत होगी। हमने मोबाइल इस्तेमाल को लेकर बनाया गया नियम अभी तक लागू नहीं किया है। लेकिन 10 दिन बाद एक बार दोबारा बैठक बुलाई गई है, जिसमें लड़कियों को मोबाइल नहीं देने वाले फ़ैसले पर चर्चा होगी।’
हालाँकि ठाकोर समाज की बैठक में कुछ सुधार की पहल भी की गई है। शादी में ख़र्चे कम करना निश्चित तौर पर अच्छी पहल मानी जाती है और अनावश्यक ख़र्चों में कटौती के लिए सराहनीय प्रयास भी किए जाते रहे हैं।
अल्पेश ठाकोर ने क्यों किया विरोध?
मीडिया रिपोर्टों में गुजरात के विधायक अल्पेश ठाकोर का भी बयान छपा है। इन रिपोर्टों के अनुसार उन्होंने उनके समुदाय की तरफ़ से तय इन नियमों को लेकर कहा, ‘शादियों में ख़र्चे को कम करने वाले कुछ नियम काफ़ी अच्छे हैं। लेकिन लड़कियों के मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल करने पर बैन लगाना कुछ ठीक नहीं है। अगर ऐसा ही नियम लड़कों के लिए भी बनाया जाता है तो ये सही है। मैं लव मैरिज के बारे में कुछ नहीं कह सकता हूँ, क्योंकि मैंने भी लव मैरिज ही की है।’
विधायक ने किया समर्थन
हालाँकि कई प्रतिनिधि तो इसका खुलेआम समर्थन भी कर रहे हैं। इकोनॉमिक टाइम्स के अनुसार, बनासकांठा के वाव के कांग्रेस विधायक जिबीन ठाकोर ने समाज के इन नियमों का स्वागत किया और कहा कि लड़कियों को मोबाइल से दूर रखने का फ़ैसला उनके हित में लिया गया है। समुदाय के भीतर शिक्षा और जागरूकता फैलाना सर्वोच्च प्राथमिकता थी और मोबाइल फ़ोन पर प्रतिबंध लगाने जैसे क़दम लड़कियों को शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करेंगे।’
तीन साल पहले भी आया था ऐसा एक मामला
यह कोई पहला मामला नहीं है, बल्कि ऐसे मामले अक्सर आते रहे हैं। फ़रवरी 2016 में भी गुजरात में ही एक ऐसा मामला सामने आया था। अहमदाबाद से 100 किलोमीटर दूर सूरज गाँव में महिलाओं के फ़ोन रखने पर पकड़े जाने पर 2100 रुपये का जुर्माना लगाने और इसकी सूचना देने वाले के लिए 200 रुपये ईनाम देने का प्रावधान किया गया था।
‘हिंदुस्तान टाइम्स’ के अनुसार, तत्कालीन ग्राम प्रधान देवर्षि वणकर ने कहा, ‘लड़कियों को सेल फ़ोन की आवश्यकता क्यों है? इंटरनेट हमारे जैसे मध्यम वर्गीय समुदाय के लिए समय और धन की बर्बादी है। लड़कियों को अध्ययन और अन्य कार्यों के लिए अपने समय का बेहतर उपयोग करना चाहिए।’
प्रतिबंध का एकमात्र अपवाद यह है कि यदि कोई रिश्तेदार किसी महिला से बात करना चाहता है, तो उस स्थिति में उसे अपने माता-पिता के फ़ोन का उपयोग करने की अनुमति है। गाँव के बुजुर्गों ने महसूस किया कि अविवाहित महिलाओं द्वारा मोबाइल फ़ोन के इस्तेमाल से और पुरुषों द्वारा शराब के दुरुपयोग के कारण समाज में समस्याएँ पैदा हुई हैं।
ऐसे कैसे भरेंगे अंतरिक्ष की उड़ान?
देश भर में ‘खाप पंचायतें’ ऐसे तुगलकी फ़रमान समय-समय पर जारी करते रहे हैं। हरियाणा की खाप पंचायतें तो इस मामले में काफ़ी चर्चित रही हैं। ये फ़ैसले अक्सर महिला विरोधी होते हैं। महिलाओं के सशक्त होने से पुरुष प्रधान समाज को धक्का लगता है और उनकी सामंती सोच पर चोट पहुँचती है। इस चोट को वे बर्दाश्त नहीं कर पाते और तुगलकी फरमान जारी कर देते हैं। बिना देश के क़ानून के खौफ़ के। लेकिन क्या ऐसे उटपटांग नियम-कायदे उस प्रगतिशील सोच से मेल खाते हैं जो इस धरती से परे अंतरिक्ष में उड़ान भरने को तैयार है, जो मंगल और चंद्रमा पर घर बसाने की तैयारी में है?
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