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क्या गुजरात सरकार वैक्सीन ख़रीदने के लिए ‘पंचवर्षीय योजना” पर काम कर रही है: कोर्ट

कोरोना महामारी के दौरान कई बार गुजरात हाई कोर्ट से फटकार खा चुकी गुजरात सरकार को एक बार और अदालत की खरी-खोटी सुननी पड़ी है। अदालत ने राज्य सरकार से पूछा है कि क्या वह वैक्सीन ख़रीदने के लिए पांच साल की योजना पर काम कर रही है। 

सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से कहा गया कि 18-44 साल के आयु वर्ग वालों के लिए 6.5 करोड़ वैक्सीन की ज़रूरत है और सरकार ने दो कंपनियों को 3 करोड़ वैक्सीन का ऑर्डर दिया है लेकिन कंपनियों ने कहा है कि वे वैक्सीन की लगातार सप्लाई नहीं कर सकते। 

सरकार की ओर से यह कहे जाने पर कि वह ज़्यादा से ज़्यादा वैक्सीन का इंतजाम कर रही है, अदालत ने कहा कि उसे सरकार की नेक नीयत पर शक नहीं है लेकिन कुछ और क़दम उठाए जाने की ज़रूरत है। मामले में अगली सुनवाई 15 जून को होगी। 

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वैक्सीन की कमी को लेकर कई राज्यों में टीकाकरण केंद्रों को बंद करना पड़ा है और केंद्र सरकार यह बता पाने की स्थिति में नहीं है कि आख़िर कब राज्यों को पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन मिलेगी क्योंकि वैक्सीन की कमी के कारण कई राज्यों में 18-44 साल आयु वर्ग वालों का टीकाकरण रोकना पड़ा है। 

बेला त्रिवेदी और भार्गव डी. करिया की डिवीजन बेंच ने कहा है कि सरकार मौके़ पर ही रजिस्ट्रेशन कराने वालों के लिए 10 से 20 फ़ीसद वैक्सीन क्यों नहीं रख सकती। अदालत ने कहा, “मान लीजिए आपके पास किसी दिन 100 वैक्सीन हैं। आप 80 वैक्सीन को ऑनलाइन सिस्टम के लिए और बची हुई 20 वैक्सीन को स्पॉट रजिस्ट्रेशन के लिए रख सकते हैं।” 

अदालत ने कहा कि राज्य सरकार ऐसे लोगों के लिए जिनकी पहुंच ऑनलाइन तक नहीं है, उनके लिए स्पॉट रजिस्ट्रेशन की व्यवस्था क्यों नहीं करती। कोर्ट ने कहा कि ग्रामीण इलाक़ों में कम से कम ऐसा किया जा सकता है। 

गुजरात हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस विक्रम नाथ ने अदालत की रजिस्ट्री को आदेश दिया था कि वह इस मामले में स्वत: संज्ञान वाली याचिका लगाए। हाई कोर्ट ने पिछले साल भी इस तरह की एक याचिका ख़ुद ही लगवाई थी और इस पर बीच-बीच में सुनवाई की थी।

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स्वास्थ्य आपातकाल की टिप्पणी

हाई कोर्ट ने मीडिया में आ रही ख़बरों का हवाला देते हुए पिछले महीने कहा था कि राज्य स्वास्थ्य आपातकाल की जैसी स्थिति की ओर जा रहा है। चीफ़ जस्टिस विक्रम नाथ ने कहा था कि न्यूज़ चैनल्स कोरोना को लेकर बेहद दुखद ख़बरों से भरे पड़े हैं और बुनियादी ढांचे की स्थिति बेहद ख़राब है और ऐसी दुश्वारियां हैं जिनका जिक्र नहीं किया जा सकता। 

पिछले साल भी गुजरात में ऐसे ही हालात बने थे और हाई कोर्ट ने एक आदेश में कहा था कि अहमदाबाद स्थित सिविल अस्पताल की तुलना न सिर्फ़ ‘काल कोठरी’ से की जा सकती है, बल्कि यह ‘उससे भी बदतर’ है। अदालत ने विजय रुपाणी सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा था कि वह कोरोना पर ‘नकली तरीके’ से नियंत्रण पाना चाहती है। 

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क़मर वहीद नक़वी
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