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गुजरात में इन दिनों जोर-शोर से चुनाव प्रचार चल रहा है क्योंकि राज्य में 1 व 5 दिसंबर को वोटिंग होनी है। टीवी और सोशल मीडिया पर बीजेपी और आम आदमी पार्टी के प्रचार का शोर दिखाई दे रहा है। लेकिन गुजरात में मुख्य मुकाबला बीजेपी-कांग्रेस के बीच ही रहा है। इस बार गुजरात में आम आदमी पार्टी और एआईएमआईएम के चुनाव लड़ने से सवाल ये उठ रहा है कि क्या ये दोनों दल कांग्रेस को नुकसान पहुंचाएंगे।
इसमें से भी मुस्लिम-दलित बहुल सीटों पर एआईएमआईएम के चुनाव मैदान में उतरने से क्या कांग्रेस को उन सीटों पर नुकसान हो सकता है।
2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 2012 के प्रदर्शन में जबरदस्त सुधार किया था। 2012 में कांग्रेस को जहां 61 सीटें मिली थी वहीं 2017 में यह आंकड़ा 77 हो गया था, दूसरी ओर बीजेपी 2012 में मिली 115 सीटों के मुक़ाबले 2017 में 99 सीटों पर आ गयी थी। लेकिन उसके बाद से कांग्रेस के 17 विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं।
आम आदमी पार्टी और एआईएमआईएम लंबे वक्त से गुजरात में चुनाव प्रचार कर रहे हैं। अरविंद केजरीवाल पूरे गुजरात में चुनाव प्रचार कर रहे हैं जबकि असदुद्दीन ओवैसी का जोर मुस्लिम-दलित मतदाताओं की अधिकता वाली सीटों पर है। कांग्रेस आम आदमी पार्टी और एआईएमआईएम को बीजेपी की बी टीम बताती रही है।
वरिष्ठ पत्रकार दर्शन देसाई के द्वारा एबीपी न्यूज़ के लिए लिखे गए लेख के मुताबिक, कांग्रेस इस बार फिर से अपने पुराने KHAM के फार्मूले पर काम कर रही है। इस फार्मूले में क्षत्रिय ओबीसी, हरिजन, आदिवासी और मुस्लिम मतदाता शामिल हैं और यह मतदाता राज्य में कुल 75 फीसद हैं। KHAM का यह समीकरण कांग्रेस के बड़े नेता और गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी ने बनाया था और इसके बूते 1985 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 182 सीटों वाले गुजरात में 149 सीटों पर जीत मिली थी। यह गुजरात में किसी भी दल द्वारा अब तक का जीत का सबसे बड़ा आंकड़ा है।
वरिष्ठ पत्रकार दर्शन देसाई लिखते हैं कि एआईएमआईएम ऐसी सीटों पर भी अपने उम्मीदवार उतार रही है जहां पर मुस्लिम मतदाता बहुमत में नहीं हैं। उन्होंने लिखा है कि एआईएमआईएम ने अहमदाबाद शहर की दानीलिम्डा सीट पर महिला प्रत्याशी कौशिका परमार को टिकट दिया है। यह सीट अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है। यहां पर एआईएमआईएम की उम्मीदवार कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा सकती हैं। कांग्रेस के विधायक शैलेश परमार यहां से दो बार चुनाव जीत चुके हैं। इस सीट पर दलित और मुस्लिम मिलकर बड़ी ताकत हैं।
इसी तरह एआईएमआईएम ने अहमदाबाद की बापूनगर सीट पर शाहनवाज खान को चुनाव मैदान में उतारा है। यह सामान्य सीट है और यहां से कांग्रेस के हिम्मत सिंह पटेल विधायक हैं। यहां पर पटेल, दलित, मुस्लिम व अन्य तबकों की मिली-जुली आबादी है। सौराष्ट्र इलाके की सीट मंगरोल से कांग्रेस के बाबू भाई बाजा विधायक हैं। एआईएमआईएम ने यहां से सुलेमान पटेल को चुनाव मैदान में उतार दिया है। मंगरोल में ओबीसी और पाटीदारों के अलावा दलित और मुस्लिम मतदाता अच्छी संख्या में हैं।
दर्शन देसाई के मुताबिक, कुछ सामान्य सीटों से जहां से बीजेपी के विधायक हैं, वहां से एआईएमआईएम ने मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा है जबकि कांग्रेस ने भी वहां से इस बार अपने मुस्लिम नेताओं को टिकट दिया है। निश्चित रूप से ऐसी स्थिति में मुस्लिम वोटों का बंटवारा होगा और इससे कांग्रेस को नुकसान हो सकता है।
उदाहरण के लिए, कांग्रेस ने सूरत ईस्ट सीट से असलम साइकिल वाला को उम्मीदवार बनाया है और यहां से एआईएमआईएम ने वासिम कुरैशी को चुनाव मैदान में उतार दिया है। इसी तरह सूरत की लिंबायत सीट पर और कच्छ जिले की भुज सीट पर एआईएमआईएम ने मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है।
एआईएमआईएम ने अपनी गुजरात इकाई के अध्यक्ष साबिर काबलीवाला को जमालपुर-खड़िया सीट से चुनाव मैदान में उतारा है। पिछले चुनाव में कांग्रेस के इमरान खेड़ावाला यहां से जीते थे और इसकी वजह यह थी कि तब काबलीवाला ने अपना नाम वापस ले लिया था। लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव में काबलीवाला ने निर्दलीय चुनाव लड़ा था और तब वोटों का बंटवारा होने की वजह से इस सीट पर बीजेपी को जीत मिली थी।
इसी तरह भुज, अबडासा, मांडवी, जामनगर ग्रामीण, मंगरोल, जूनागढ़, धोराजी, उमरेथ खंभालिया, सोमनाथ, सूरत-पश्चिम, भरूच और जंबूसर सीटों पर भी मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो सकता है।
बीजेपी की बी टीम होने के आरोपों के जवाब में एआईएमआईएम के गुजरात प्रवक्ता दानिश कुरैशी एबीपी न्यूज़ से कहते हैं कि कांग्रेस ने मुसलमानों के लिए क्या किया है। वह पूछते हैं कि न केवल गुजरात में बल्कि देशभर में कांग्रेस ने मुसलमानों के लिए क्या किया है। उन्होंने पूछा कि क्या कभी भी कांग्रेस मुसलमानों के खराब वक्त में उनके साथ खड़ी रही।
कुरैशी कहते हैं कि गुजरात में मुस्लिम आबादी लगभग 10 फीसद के आसपास है और इस हिसाब से राज्य की विधानसभा में मुस्लिम समुदाय के कम से कम 18 विधायक होने चाहिए। वह कहते हैं कि पटेलों की आबादी 11 फीसद है और उनके 47 विधायक हैं।
एआईएमआईएम के चुनाव लड़ने से बीजेपी और कांग्रेस के बीच कड़े मुकाबले वाली सीटों पर अगर कांग्रेस को नुकसान हुआ तो निश्चित रूप से बीजेपी को इसका फायदा होगा।
बिहार में 2020 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी को सीमांचल के इलाके में 5 सीटों पर जीत मिली थी और तब इसे हैदराबाद के बाहर उनकी पार्टी की एक बड़ी धमक माना गया था। हालांकि बाद में चार विधायक आरजेडी में शामिल हो गए थे लेकिन ओवैसी ने दिखाया था कि वह हैदराबाद के बाहर भी चुनाव जीत सकते हैं। ओवैसी पर यह आरोप लगता रहा है कि वह मुस्लिम वोटों का बंटवारा करते हैं और इस वजह से बीजेपी को फायदा होता है।
बिहार के चुनाव नतीजों के बाद कांग्रेस ने कहा था कि औवैसी की वजह से सीमांचल के इलाके में उसके और आरजेडी के वोटों में सेंध लगी और महागठबंधन की सरकार नहीं बनी और एनडीए को सत्ता मिली थी लेकिन ओवैसी इसके जवाब में कहते हैं कि देश के अंदर लोकतंत्र है और उनकी पार्टी कहीं से भी चुनाव लड़ सकती है।
उत्तर प्रदेश में भी ओवैसी की पार्टी ने जोर-शोर से चुनाव लड़ने की कोशिश की लेकिन उसे एक भी सीट पर जीत नहीं मिली। ओवैसी अपने भाषणों में कहते हैं कि वह देश भर के अंदर मुसलमानों की लीडरशिप खड़ी करना चाहते हैं और उनकी कोशिश हैदराबाद से बाहर निकलकर तमाम प्रदेशों में एआईएमआईएम का मजबूत संगठन खड़ा करने की है।
2019 के लोकसभा चुनाव में इसी कोशिश के तहत उन्हें महाराष्ट्र के औरंगाबाद में कामयाबी मिली थी लेकिन उत्तर प्रदेश की तरह पश्चिम बंगाल में भी वह खाली हाथ रहे थे।
इन दिनों ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम एमसीडी के चुनाव में सक्रिय है और मुस्लिम बहुल वार्डों पर उसने उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। मध्य प्रदेश में कुछ महीने पहले हुए निकाय चुनाव में भी एआईएमआईएम ने कुछ सीटें झटक ली थी। ओवैसी मध्य प्रदेश और राजस्थान का विधानसभा चुनाव लड़ने की भी तैयारी कर रहे हैं।
ओवैसी बीते कुछ सालों में मुस्लिम तबके के बीच खासे लोकप्रिय हुए हैं। उन्होंने लंदन से वकालत की पढ़ाई की है। हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी जुबान पर उनकी अच्छी पकड़ है। राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले, तीन तलाक़, सीएए, एनआरसी और मुस्लिमों से जुड़े मुद्दों पर ओवैसी ने बाकी सेक्युलर दलों के नेताओं से ज़्यादा ताक़त के साथ आवाज़ उठाई है और इसी वजह से हैदराबाद के बाहर भी ओवैसी मुसलमानों के बीच पहचाने जा रहे हैं।
देखना होगा कि गुजरात के चुनाव में वह कितना असर कर पाते हैं। लेकिन यह तय है कि अगर उनके उम्मीदवार ज्यादा वोट झटकने में कामयाब रहे तो कांग्रेस को इसका नुकसान जरूर होगा। क्या गुजरात के मुस्लिम मतदाता कांग्रेस के बजाए एआईएमआईएम का साथ देंगे?
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