दिल्ली और पंजाब में सरकार बनाने के बाद आम आदमी पार्टी की सियासी ख्वाहिश कुछ अन्य राज्यों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने की है। इस साल मार्च में पंजाब में मिली प्रचंड जीत के बाद से ही आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल लगातार हिमाचल और गुजरात के चुनावी दौरे कर रहे हैं। विशेषकर गुजरात में उन्होंने ज्यादा फोकस किया है।
लेकिन सवाल यह है कि आम आदमी पार्टी जितनी जोर-शोर से गुजरात में चुनाव लड़ रही है, क्या वहां वह कोई कमाल कर पाएगी।
बीजेपी और कांग्रेस
गुजरात में चुनावी लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही होती रही है। 182 सीटों वाली गुजरात की विधानसभा में मुश्किल से पांच-छह सीटों को छोड़कर बाकी सीटें इन्हीं दो राजनीतिक दलों की झोली में जाती हैं।
सूरत नगर निगम की जीत
लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी को उम्मीद है कि वह गुजरात में अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। विशेषकर शहरी इलाकों सूरत आदि में उसका संगठन जोर-शोर से चुनाव प्रचार कर रहा है। पिछले साल हुए स्थानीय निकाय के चुनाव में सूरत नगर निगम की 120 में से 27 सीटों पर आम आदमी पार्टी को जीत मिली थी।
अगर सोशल मीडिया और टीवी को देखें, तो ऐसा लगता है कि गुजरात में आम आदमी पार्टी और बीजेपी ही चुनावी लड़ाई में हैं। लेकिन ऐसा नहीं है क्योंकि कांग्रेस भले ही 1997 से गुजरात की सत्ता से बाहर है लेकिन उसे वहां हर विधानसभा चुनाव में 40 फीसद के आसपास वोट मिलते रहे हैं। ऐसे में निश्चित रूप से भले ही कांग्रेस इतने सालों तक राज्य में सरकार ना बना सकी हो, लेकिन वह राज्य के अंदर बड़ी सियासी ताकत जरूर है।
मंत्री का इस्तीफ़ा
दिल्ली और गुजरात में बीजेपी के तमाम नेताओं ने आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और इसके बाद केजरीवाल को अपने मंत्री का इस्तीफा लेना पड़ा था। तब बीजेपी ने केजरीवाल की मुसलिम टोपी पहने हुए फोटो उन प्रतिज्ञाओं के साथ लगाई थी जिनमें यह कहा गया था कि मैं राम, कृष्ण आदि को ईश्वर नहीं मानता। ऐसा करके बीजेपी ने अरविंद केजरीवाल की सॉफ्ट हिंदुत्व वाली राजनीति को एक तरह से ध्वस्त करने की कोशिश की थी क्योंकि अरविंद केजरीवाल बीते कुछ सालों से लगातार मंदिर जा रहे हैं और खुद को हनुमान भक्त बताते रहे हैं।
गोपाल इटालिया पर रार
गुजरात में आम आदमी पार्टी के संयोजक गोपाल इटालिया के द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी मां हीरा बा को लेकर की गई टिप्पणी पर भी दिल्ली से लेकर गुजरात तक बीजेपी के कार्यकर्ता सड़क पर हैं। दिल्ली में शुक्रवार को महिला मोर्चा की कार्यकर्ताओं ने इसे लेकर जोरदार प्रदर्शन किया है।
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने भी गोपाल इटालिया की टिप्पणियों को लेकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को निशाने पर लिया है। ऐसे में सवाल ये है कि क्या बीजेपी को वाकई आम आदमी पार्टी से किसी तरह का डर है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का गृह राज्य होने और 25 सालों से लगातार सत्ता में होने की वजह से यह कहना मुश्किल होगा कि गुजरात में आम आदमी पार्टी बीजेपी को सत्ता से हटाने जा रही है। लेकिन जिस तरह खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चुनावी सभाओं में गुजरात में अर्बन नक्सल का मुद्दा उठाया है उससे ऐसा जरूर लगता है कि कहीं ना कहीं बीजेपी को उसके शहरी वोटों में सेंध लगने का डर है।
यहां इस बात का जिक्र करना जरूरी होगा कि आम आदमी पार्टी ने साल 2012 में अपनी स्थापना के बाद 10 सालों के भीतर ही दिल्ली और पंजाब में प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बना ली है। दिल्ली में वह लगातार तीसरी बार सत्ता में आई है।
हालांकि आम आदमी पार्टी ने साल 2022 के फरवरी-मार्च में हुए पांच राज्यों के चुनाव में पंजाब के साथ ही गोवा और उत्तराखंड में भी पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ा था। लेकिन गोवा में उसे सिर्फ 2 सीटों पर जीत मिली थी जबकि उत्तराखंड में पूरी ताकत झोंकने के बाद भी अधिकतर सीटों पर उसके प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी।
क्या वाकई आम आदमी पार्टी गुजरात के अंदर कुछ कमाल कर सकती है, इसका पता चुनाव नतीजे आने के बाद ही चलेगा। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में गुजरात के अंदर अपनी उपस्थिति बनाने में फेल रही आम आदमी पार्टी पर बीजेपी इतना हमला क्यों कर रही है।
चुनाव नतीजों का इंतजार
आम आदमी पार्टी ने गुजरात की जनता से भी तमाम बड़े-बड़े वायदे किए हैं और उन्हें चुनावी गारंटियां भी दी हैं। अरविंद केजरीवाल को उम्मीद है कि ऐसे वायदों के दम पर उन्हें दिल्ली और पंजाब में जीत मिल चुकी है लेकिन क्या गुजरात की जनता उन्हें दिल्ली और पंजाब की तरह समर्थन देगी, इसके लिए चुनाव नतीजों का इंतजार करना होगा।
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