ज़रा कल्पना कीजिए कि दिल्ली में कांग्रेस की सरकार होती और पुलवामा जैसी कोई घटना हो जाती और उसी वक़्त सऊदी अरब का शाहज़ादा पाकिस्तान जाकर 20 बिलियन डॉलर के निवेश की घोषणा करता तो आप ही बताइए कि क्या बीजेपी उसे भारत आने देती? वह ऐसा हंगामा खड़ा करती कि राजीव गाँधी या मनमोहन सिंह के छक्के छूट जाते। इसीलिए कांग्रेस के प्रवक्ताओं ने सऊदी शाहज़ादे मुहम्मद बिन सलमान की भारत-यात्रा पर जो ताने मारे हैं, वे स्वाभाविक हैं।
शाहज़ादे का स्वागत उसके जहाज पर जाकर और गले लगाकर मोदी ने किया, इसमें नया क्या है? शाहज़ादे ने भी मोदी को बड़ा भाई कहा या नहीं? हम सऊदी अरब के शाहज़ादे से यह आशा कैसे कर सकते हैं कि वह उस भाषा का प्रयोग करे, जो हम पाकिस्तान के ख़िलाफ़ करते हैं। हमारी सरकार ने ख़ुद ही संयुक्त विज्ञप्ति में पाकिस्तान का नाम नहीं आने दिया है। तो फिर शाहज़ादा क्यों उसका नाम ले?
सऊदी अरब भारत की ख़ातिर पाकिस्तान से अपने संबंध क्यों बिगाड़े? उसने संयुक्त विज्ञप्ति में पुलवामा कांड की निंदा की है यानी इसलिए की है कि पाकिस्तान की तरह वह मानता है कि पुलवामा के आतंकी हमले से पाकिस्तान का कुछ लेना-देना नहीं है।
पाकिस्तान के साथ जारी की गई संयुक्त विज्ञप्ति में उसने पाकिस्तान को यह कहकर ख़ुश कर दिया है कि वह आतंकियों को संयुक्त राष्ट्र संघ की सूची में शामिल करने को 'राजनीतिकरण' मानता है यानी भारत उस सूची में जैश-ए-मुहम्मद के सरगना मसूद अज़हर का नाम जुड़वाने की जो कोशिश कर रहा है, वह फ़िजूल की कसरत है। शाहज़ादे ने पाकिस्तान की चौपड़ पर 20 बिलियन डॉलर का पासा फेंका तो भारत की चौपड़ पर 100 बिलियन डॉलर का फेंक दिया। शाहज़ादे ने संयुक्त विज्ञप्ति में पाकिस्तान से आतंक पर बातचीत करने का भारत से समर्थन करवाकर मोदी की लफ़्फ़ाज़ी को शीर्षासन करवा दिया है।
मैंने लिखा था, अब बात और लात, दोनों चलें। लेकिन मोदी बार-बार कहते रहे, बात का समय बीत गया है। सऊदी शाहज़ादे ने कमाल की कूटनीति की है। गंगा गए तो गंगादास और जमना गए तो जमनादास। शाहज़ादे ने अपने वक्तव्य और संयुक्त विज्ञप्ति में जहाँ भी आतंकवाद का विरोध किया है, उसे आप ज़रा गहराई से समझने की कोशिश करें, तो आपको पता चलेगा कि उसकी एक ही चिंता है, वह है, 'ईरानी आतंकवाद' की, जो उसे सीरिया, इराक़, लेबनान और सऊदी अरब में भी तंग करता रहता है। यदि अमेरिका और यूरोप ने भी आज तक सिर्फ़ उसी आतंकवाद के ख़िलाफ़ जंग छेड़ा है, जो उन्हें तंग करता है तो सऊदी अरब को क्या पड़ी है कि वह भारत का बोझ ढोए?
सियासत: रफ़ाल सौदे पर शक अब भी बाक़ी है
(डॉ. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग से साभार)
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