पाकिस्तान के आतंकवादी अड्डों पर भारतीय हमले के बाद बुधवार दिन भर जो घटनाएं घटी हैं, उनसे हम क्या नतीजा निकालें ? किस पर विश्वास करें ? हर घंटे बयान बदले जा रहे हैं, पल्टियां खाई जा रही हैं और अपना पलड़ा भारी है, यह बताने की कोशिश भारत और पाकिस्तान, दोनों के प्रवक्ता कर रहे हैं। दोनों देशों के प्रवक्ता जहाजों, पायलटों और दुर्घटनाओं के बारे में परस्पर विरोधी दावे कर रहे हैं और उनमें फेर-बदल भी कर रहे हैं। दोनों तरफ़ की कोशिश यह है कि अपनी-अपनी सरकारों को जनता की नजर में ऊंचा उठाए रखें।
युद्ध के विरुद्ध हैं इमरान खान?
वास्तव में इमरान खान युद्ध के विरुद्ध हैं तो उन्हें बयानबाजी करने की बजाय सीधे नरेंद्र मोदी से बात करनी चाहिए थी। यदि वह वास्तव में आतंकवाद के विरोधी हैं तो उन्हें आतंकवादी अड्डों पर भारतीय हमले का स्वागत करना चाहिए था। फ़ौज के डर से वह स्वागत नहीं कर सकते थे तो उन्हें कम से कम मौन रहना चाहिए था। भारत ने कितना संयम रखा ! न तो किसी फ़ौजी अड्डे को अपना निशाना बनाया और न ही उसने एक भी नागरिक को नुक़सान पहुंचाया।ख़ुद पाकिस्तान के प्रवक्ता ने स्वीकार किया है कि भारतीय जहाजों की बमबारी बेकार हो गई, क्योंकि तीन मिनट में ही उन भारतीय जहाजों को भगा दिया गया। यदि यह सच है तो पाकिस्तान को गुस्सा होने का कोई कारण नहीं है। भारत कहता है कि उसने बालाकोट में 300 आतंकियों और मसूद अज़हर के रिश्तेदारों को मार गिराया है, लेकिन पाकिस्तान इस पर चुप है। इसका मतलब यह है कि पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कुछ हुआ ही नहीं।
उसकी भारत-नीति के सबसे बड़े हथियार आतंकवादी भी सुरक्षित हैं। तब पाकिस्तान की संसद, सरकार, अख़बार और चैनल युद्ध का उन्माद क्यों फैला रहे हैं? शर्म-शर्म क्यों कर रहे हैं?
आज दोनों तरफ़ के जहाज़ों और हेलिकाॅप्टरों के गिरने की ख़बर के बाद पाकिस्तानी फ़ौज और इमरान, दोनों ने शांति की अपील की है। यह अपील सुनने में बहुत अच्छी लगती है लेकिन यह सच्ची है, यह दिखाने के लिए भी तो इमरान को कोई ठोस क़दम उठाना था।
झगड़े की जड़ तो आतंकवादी ही हैं। यदि इमरान आतंकवादी सरगनाओं को पकड़कर जेल में डाल देते या उनमें से दो-तीन को भी भारत के हवाले कर देते तो माना जाता कि उनकी पहल में कुछ दम है। उनके साथ कुछ काम की बात हो सकती है। आज सारी दुनिया की नज़र में पाकिस्तान गुनहगार हो गया है।
उसकी आर्थिक हालत ख़स्ता है। यदि दोनों देश युद्ध की आग में कूद गए तो इस बार दोनों का बहुत गहरा नुक़सान होगा। इस समय दोनों देशों की सरकारों ने अपनी-अपनी जनता को संतुष्ट कर दिया है। अब भी वे दोनों देशों को युद्ध में झोकेंगे तो अपनी-अपनी जनता का ही भयंकर नुकसान करेंगे।
(डा. वेद प्रताप वैदिक के ब्लॉग से साभार)
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